उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 25-26 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण

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उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 25-26 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण,करकमलवितीर्णैरम्बुनीवारशष्पै,त्वं जीवितं, त्वमसि मे हृदयं, द्वितीयं,

 

Here is depiction of the serene, emotional scene with Rama, Sita in her radiant shadow form, and Vasanti. The atmosphere reflects deep sorrow, longing, and a mystical connection between the characters.
Here is depiction of the serene, emotional scene with Rama, Sita in her radiant shadow form, and Vasanti. The atmosphere reflects deep sorrow, longing, and a mystical connection between the characters.

संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद


संस्कृत पाठ:
रामः:
एहि सखि वासन्ति! नन्वितः स्थीयताम्।

वासन्ती:
(उपविश्य सास्रम्)
महाराज! अपि कुशलं कुमारलक्ष्मणस्य?

रामः:
(अनाकर्णनमभिनीय)
करकमलवितीर्णैरम्बुनीवारशष्पै-
स्तरुशकुनिकुरङ्गान्मैथिली यानपुष्यत्।
भवति मम विकारस्तेषु दृष्टेषु कोऽपि
द्रव इव दयस्य प्रस्रवोद्भेदयोग्यः॥ २५ ॥

वासन्ती:
महाराज! ननु पृच्छामि कुशलं कुमारलक्ष्मणस्येति?

रामः:
(आत्मगतम्)
अये! 'महाराजेति' निष्प्रणयमामन्त्रणपदम्।
सौमित्रिमात्रके बाष्पस्खलिताक्षरः कुशलप्रश्नः।
तथा मन्ये विदितसीतावृत्तान्तेयमिति।

(प्रकाशम्)
आः? कुशलं कुमारलक्ष्मणस्य।

वासंती:
(रोदिति)
अयि देव! किं परं दारुणः खल्वसि।

सीता:
सखि वासंती! किं त्वमेवंवादिनी भवसि?
पूजार्हः सर्वस्यार्यपुत्रः विशेषतः मम प्रियसख्याः।

वासंती:
त्वं जीवितं, त्वमसि मे हृदयं, द्वितीयं
त्वं कौमुदी नयनयोरमृतं त्वमङ्गे।
इत्यादिभिः प्रियशतैरनुरुध्य मुग्धां
तामेव शान्तमथवा किमतः परेण?॥ २६ ॥


हिन्दी अनुवाद:

राम:
हे सखी वासंती! यहाँ ठहरो।

वासंती:
(आँसुओं के साथ बैठकर)
महाराज! क्या कुमार लक्ष्मण कुशलपूर्वक हैं?

राम:
(मानो प्रश्न को सुन न सके, इस प्रकार अभिनय करते हुए)
मैथिली (सीता) ने अपने करकमल से,
जिन जलकुमुदों, घासों, और छोटे पशु-पक्षियों को पाला,
उनके दर्शन से मेरे भीतर एक अद्भुत बदलाव होता है।
मानो मेरी करुणा का स्रोत फूटने के लिए तैयार हो।

वासंती:
महाराज! मैं पुनः पूछती हूँ, क्या कुमार लक्ष्मण कुशलपूर्वक हैं?

राम:
(आत्मगत)
अरे! ‘महाराज’ शब्द निष्प्रणय (अप्रेमपूर्ण) आमंत्रण है।
सौमित्र (लक्ष्मण) का नाम पूछते समय उसकी आँखों में आँसू हैं।
यह निश्चित है कि इसे सीता के बारे में सब कुछ ज्ञात है।

(प्रकाश में)
आह! कुमार लक्ष्मण कुशल हैं।

वासंती:
(रोते हुए)
हे देव! आप कितने कठोर हैं!

सीता:
हे सखी वासंती! तुम ऐसा क्यों कह रही हो?
आर्यपुत्र सभी के पूज्य हैं, और विशेषतः मेरी प्रिय सखी के भी।

वासंती:
तुम्हीं मेरा जीवन हो, तुम ही मेरे लिए दया हो।
तुम मेरे लिए दूसरी चाँदनी हो,
तुम्हारी दृष्टि मेरे नेत्रों के लिए अमृत है,
और तुम्हारा स्पर्श मेरे अंगों के लिए जीवन है।
तुम्हारे जैसे सौ प्रियजन भी
तुम्हारी इस ममता को नहीं हरा सकते।
और यदि तुम्हारे बिना शांति हो,
तो इससे अधिक और क्या दुःख हो सकता है?


शब्द-विश्लेषण

1. करकमलवितीर्णैरम्बुनीवारशष्पैः

  • संधि-विच्छेद: कर + कमल + वितीर्णैः + अम्बुनीवार + शष्पैः।
    • करकमल: हाथ जैसा कमल;
    • वितीर्णैः: फैलाए हुए;
    • अम्बुनीवार: जलकुमुद;
    • शष्पैः: घास।
  • अर्थ: हाथों से फैलाए गए जलकुमुद और घास।

2. प्रस्रवोद्भेदयोग्यः

  • समास: कर्मधारय समास (प्रस्रव + उद्भेद + योग्यः)।
    • प्रस्रव: बहाव;
    • उद्भेद: फूटना;
    • योग्यः: सक्षम।
  • अर्थ: बहने और फूटने के योग्य।

3. सौमित्रिमात्रके

  • समास: षष्ठी तत्पुरुष समास (सौमित्रि + मात्रक)।
    • सौमित्रि: लक्ष्मण का नाम;
    • मात्रक: मात्र उसका।
  • अर्थ: केवल लक्ष्मण के विषय में।

4. बाष्पस्खलिताक्षरः

  • समास: कर्मधारय समास (बाष्प + स्खलित + अक्षर)।
    • बाष्प: आँसू;
    • स्खलित: गिरा हुआ;
    • अक्षर: शब्द।
  • अर्थ: आँसुओं के कारण टूटे हुए शब्द।

5. त्वं कौमुदी

  • समास: उपमान कर्मधारय समास (त्वं + कौमुदी)।
    • कौमुदी: चाँदनी।
  • अर्थ: तुम चाँदनी के समान हो।

6. द्रव इव दयस्य

  • संधि-विच्छेद: द्रव + इव + दयस्य।
    • द्रव: तरल;
    • दयस्य: करुणा का।
  • अर्थ: करुणा का प्रवाह।

7. इत्यादिभिः प्रियशतैः

  • समास: बहुव्रीहि समास (इत्यादिभिः + प्रिय + शतैः)।
    • इत्यादिभिः: आदि के द्वारा;
    • प्रियशतैः: सैकड़ों प्रिय व्यक्तियों से।
  • अर्थ: प्रिय व्यक्तियों के सैकड़ों वचनों से।

व्याख्या:

इस अंश में राम की भावनात्मक स्थिति, सीता के प्रति उनका प्रेम, और वासंती की करुणा स्पष्ट रूप से उभरती है।
राम मैथिली के साथ बिताए गए पलों को याद करते हुए इतने भावुक हो जाते हैं कि उनकी करुणा का स्रोत फूटने के लिए तैयार हो जाता है।
वासंती, राम और सीता की स्थिति को देखकर अत्यंत दुखी हैं।
सीता अपने पति राम के लिए सम्मान और प्रेम व्यक्त करती हैं और वासंती को समझाती हैं कि राम पूज्य हैं।

यह अंश प्रेम, करुणा और स्मृतियों का प्रतीक है।

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