भगवान विष्णु के मत्स्यावतार की कथा भागवत पुराण के अष्टम स्कंध, अध्याय 24 में वर्णित है। यह कथा भगवान विष्णु के प्रथम अवतार की है, जो सृष्टि की रक्षा, वेदों की पुनः स्थापना, और भक्त राजा सत्यव्रत की सहायता के लिए हुआ था। मत्स्यावतार में भगवान ने मछली का रूप धारण किया और प्रलय के समय संपूर्ण सृष्टि को सुरक्षित रखा।
कथा की पृष्ठभूमि
प्रलय का समय
कल्प के अंत में, जब प्रलय का समय आया, तो सृष्टि जल में डूबने लगी। भगवान विष्णु ने इस प्रलय के दौरान वेदों की रक्षा और सृष्टि को पुनः आरंभ करने के लिए मत्स्यावतार लिया।
श्लोक:
कालकल्पेऽतितीव्रेण वृष्ट्या वर्षशतं गते।
सम्प्राप्ते प्रतिसन्धाने सर्गस्योपरमे तदा।।
(भागवत पुराण 8.24.7)
भावार्थ:
प्रलय के समय जब सृष्टि का अंत हो रहा था, भगवान विष्णु ने सृष्टि को पुनः आरंभ करने की योजना बनाई।
राजा सत्यव्रत का परिचय
- राजा सत्यव्रत एक धर्मनिष्ठ और विष्णु भक्त राजा थे।
- उन्होंने अपने जीवन का उद्देश्य भगवान विष्णु की भक्ति और धर्म की स्थापना को बना लिया था।
- वे प्रत्येक दिन गंगा में स्नान करते और भगवान का ध्यान करते थे।
मछली के रूप में भगवान का प्रकट होना
- एक दिन, जब सत्यव्रत नदी में स्नान कर रहे थे, उन्होंने अपने कर में एक छोटी मछली देखी। वह मछली उनसे बोली, "हे राजन! मुझे इस नदी के बड़े जीवों से बचाइए।"
- सत्यव्रत ने करुणा के भाव से उसे अपने कमंडल में डाल लिया।
श्लोक:
प्रहसन्निव तां मीनः पुनरेवाब्रवीदिदम्।
बृंहि मां गदतो विप्र स्वस्थानं प्रत्युपाकुरु।।
(भागवत पुराण 8.24.12)
भावार्थ:
मछली ने राजा सत्यव्रत से कहा, "मुझे बड़ा कीजिए और सुरक्षित स्थान पर ले जाइए।"
मछली का बढ़ना और भगवान का रहस्योद्घाटन
- मछली धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। राजा ने उसे नदी से तालाब, फिर समुद्र में डाला, लेकिन मछली इतनी बड़ी हो गई कि समुद्र भी उसके लिए छोटा पड़ गया।
- तब राजा को समझ में आया कि यह कोई साधारण मछली नहीं है। भगवान विष्णु ने मछली के रूप में प्रकट होकर कहा, "हे राजन! मैं तुम्हारे समक्ष मत्स्य रूप में प्रकट हुआ हूँ।"
श्लोक:
मां विद्ध्यात्मानमक्षय्यं त्रिलोक्यगुरुमव्ययम्।
मत्स्यरूपेण तीर्थानामवनेतुः प्रयोजनम्।।
(भागवत पुराण 8.24.16)
भावार्थ:
भगवान विष्णु ने कहा, "हे सत्यव्रत! मैं स्वयं भगवान विष्णु हूँ, और प्रलय के समय सृष्टि की रक्षा के लिए मत्स्य रूप में प्रकट हुआ हूँ।"
प्रलय के समय भगवान का कार्य
- भगवान ने सत्यव्रत को निर्देश दिया कि वे एक विशाल नौका तैयार करें।
- उन्होंने कहा कि प्रलय के समय यह नौका उन्हें और सभी जीवों को सुरक्षित रखेगी।
- भगवान ने वादा किया कि वे स्वयं शेषनाग के रूप में नौका को प्रलय के जल में सुरक्षित मार्ग दिखाएंगे।
श्लोक:
यावदाब्रह्मणः कालः परस्परगतो महान्।
तावद्युगपदाकृष्येत सांयुगान्तिकमारुतैः।।
(भागवत पुराण 8.24.20)
भावार्थ:
भगवान ने कहा, "प्रलय के समय मैं स्वयं तुम्हारी रक्षा करूंगा और सृष्टि को पुनः आरंभ करने के लिए मार्गदर्शन दूंगा।"
प्रलय और नौका पर जीवों की रक्षा
- जब प्रलय का समय आया, तो संपूर्ण सृष्टि जलमग्न हो गई।
- सत्यव्रत ने भगवान के आदेशानुसार ऋषियों, बीजों, और आवश्यक वस्तुओं को लेकर नौका में स्थान लिया।
- भगवान मत्स्य ने नौका को अपनी सींग से बांध लिया और उसे सुरक्षित रूप से प्रलय के जल से पार कराया।
श्लोक:
शृङ्गे न्यस्य हरिर्हस्तं नौकां सम्प्रतिषेधयत्।
प्रलयं व्यतिक्रान्तं सत्यव्रतं हरिः स्वयम्।।
(भागवत पुराण 8.24.24)
भावार्थ:
भगवान ने नौका को अपनी सींग से बाँधा और सत्यव्रत तथा अन्य जीवों को प्रलय के जल से सुरक्षित पार कराया।
वेदों की रक्षा
- इस प्रलय के समय असुर हयग्रीव ने वेदों को चुरा लिया था।
- भगवान मत्स्य ने हयग्रीव का वध किया और वेदों को पुनः स्थापित किया।
श्लोक:
हयग्रीवं हतं दृष्ट्वा सत्यव्रतोऽनुगृहितवान्।
श्रुतिर्मथ्य हरिः स्वर्णं त्रैलोक्यं शास्त्रसंग्रहः।।
(भागवत पुराण 8.24.28)
भावार्थ:
भगवान मत्स्य ने हयग्रीव का वध कर वेदों को पुनः स्थापित किया और सत्यव्रत को ज्ञान दिया।
सत्यव्रत का मोक्ष और मनु बनना
- सत्यव्रत ने भगवान की भक्ति और सेवा की।
- भगवान ने उन्हें अगले मन्वंतर का मनु (वैवस्वत मनु) बनने का आशीर्वाद दिया।
श्लोक:
स सत्यव्रतो राजन् वैवस्वतमनुर्भव।
भविष्यस्य प्रभविता सर्गे प्रलयवारिधौ।।
(भागवत पुराण 8.24.32)
भावार्थ:
भगवान ने सत्यव्रत को आशीर्वाद दिया कि वे अगले मन्वंतर में वैवस्वत मनु बनेंगे और सृष्टि के सृजन में सहायता करेंगे।
कथा का संदेश
1. भगवान की शरणागति:
संकट के समय भगवान अपनी भक्ति और विश्वास रखने वालों की रक्षा करते हैं।
2. विनम्रता और भक्ति:
सत्यव्रत ने अपनी भक्ति और धर्मपरायणता से भगवान को प्रसन्न किया।
3. ज्ञान और धर्म की पुनः स्थापना:
भगवान ने वेदों को पुनः स्थापित करके धर्म की रक्षा की।
4. सृष्टि की चक्रीय प्रकृति:
यह कथा सिखाती है कि प्रलय के बाद सृष्टि का पुनः निर्माण होता है।
निष्कर्ष
मत्स्यावतार की कथा भगवान विष्णु के प्रथम अवतार की महानता और उनकी करुणा का प्रतीक है। यह कथा धर्म, भक्ति, और सृष्टि की पुनः स्थापना का अद्भुत उदाहरण है। भागवत पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु सृष्टि की रक्षा और भक्तों की सहायता के लिए हर युग में अवतार लेते हैं।
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