उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 21-22 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण

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उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 21-22 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण,नीरन्ध्रबालकदलीवनमध्यवर्ति,नवकुलयस्निग्धैरङ्गैर्ददन्नयनोत्सवं,

 

Here is depiction of the serene, emotional scene with Rama, Sita in her radiant shadow form, and Vasanti. The atmosphere reflects deep sorrow, longing, and a mystical connection between the characters.

Here is depiction of the serene, emotional scene with Rama, Sita in her radiant shadow form, and Vasanti. The atmosphere reflects deep sorrow, longing, and a mystical connection between the characters.


संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद


संस्कृत पाठ:
वासन्ती:
अत्र तावदासनपरिग्रहं करोतु देवः। एतत्तु देवस्याश्रमम्।
(राम उपविशति।)
वासन्ती:
नीरन्ध्रबालकदलीवनमध्यवर्ति
कान्तासखस्य शयनीयशिलातलं ते।
अत्र स्थिता तृणमदाद्वनगोचरेभ्यः
सीता ततो हरिणकैर्न विमुच्यते स्म॥ २१ ॥

रामः:
इदमशक्यं द्रष्टुम्।
(इत्यन्यतो रुदन्नुपविशति।)

सीता:
सखि वासंति! किं त्वया कृतमार्यपुत्रस्य मम चैतद्दर्शयन्त्या।
हा धिक्! हा धिक्! स एवार्यपुत्रः, तदेव पञ्चवटीवनम्,
सैव प्रियसखी वासन्ती, त एव विविधविस्रम्भसाक्षिणो
गोदवरीकाननोद्देशाः, त एव जातनिर्विशेषा
मृगपक्षिणः पादपाश्च।
मम पुनर्मन्दभाग्याया दृश्यमानमपि सर्वमेवैतन्नास्ति।
ईदृशो जीवलोकस्य परिणामः संवृत्तः।

वासंती:
सखि सीते! कथं न पश्यसि रामभद्रस्यावस्थाम्।

नवकुलयस्निग्धैरङ्गैर्ददन्नयनोत्सवं
सततमपि नः स्वेच्छादृश्यो नवो नव एव सः।
विकलकरणः पाण्डुच्छायः शुचा परिदुर्बलः
कथमपि स इत्युन्नेतव्यस्तथापि दृशोः प्रियः॥ २२ ॥


हिन्दी अनुवाद:

वासंती:
हे देव! यहाँ बैठने की कृपा करें। यही आपका आश्रम है।
(राम बैठते हैं।)

वासंती:
यह स्थान, जो घने बालकदलीवन (केले के पेड़ों) के बीच स्थित है,
आपकी प्रिय सखी का शय्या-पथ (सोने का स्थान) है।
यहाँ सीता, वन्य जीवों को तृण (घास) से तृप्त करती थीं,
और उन्हें हरिणों ने कभी अकेला नहीं छोड़ा।

राम:
यह दृश्य सहन करना असंभव है।
(रोते हुए राम दूसरी ओर बैठ जाते हैं।)

सीता:
हे सखी वासंती!
तुमने यह दृश्य आर्यपुत्र और मुझे क्यों दिखाया?
हा धिक्! हा धिक्! यह वही आर्यपुत्र हैं, वही पञ्चवटी का वन,
वही प्रिय सखी वासंती, और वही गोदावरी के किनारे के स्थल,
जो हमारे निकटता के साक्षी थे।
वही पशु-पक्षी और वृक्ष हैं, जो अब पहले जैसे प्रतीत होते हैं।
लेकिन मेरे दुर्भाग्य के कारण, यह सब होते हुए भी,
मेरे लिए कुछ भी शेष नहीं है।
जीवन में ऐसा परिवर्तन आ गया है।

वासंती:
हे सखी सीते!
क्या तुम रामभद्र की स्थिति को नहीं देख रही हो?

उनका शरीर, नवोदित पत्तों की नमी जैसा चमकदार था,
जो हमारी आँखों के लिए हमेशा एक उत्सव जैसा था।
वह हमेशा नई ऊर्जा और उल्लास से भरे रहते थे।
लेकिन अब वे विकल इंद्रियों वाले, पांडु (फीके) और शोक से दुर्बल हो गए हैं।
फिर भी, वह हमारे लिए प्रिय हैं, और किसी तरह
हमें उनकी ओर देखना ही होगा।


शब्द-विश्लेषण

1. नीरन्ध्रबालकदलीवनमध्यवर्ति

  • समास: कर्मधारय समास (नीरन्ध्र + बालकदलीवन + मध्यवर्ति)।
    • नीरन्ध्र: घना;
    • बालकदलीवन: छोटे केले के पेड़ों का जंगल;
    • मध्यवर्ति: मध्य में स्थित।
  • अर्थ: घने बालकदलीवन के बीच स्थित।

2. तृणमदाद्वनगोचरेभ्यः

  • संधि-विच्छेद: तृण + मदात् + वनगोचरेभ्यः।
    • तृण: घास;
    • मद: संतोष या प्रसन्नता;
    • वनगोचर: जंगल में विचरण करने वाले।
  • अर्थ: घास से संतुष्ट हुए वन्य जीव।

3. विविधविस्रम्भसाक्षिणः

  • समास: तत्पुरुष समास (विविध + विस्रम्भ + साक्षिणः)।
    • विविध: विभिन्न;
    • विस्रम्भ: विश्वास और घनिष्ठता;
    • साक्षिणः: गवाह।
  • अर्थ: विभिन्न घनिष्ठताओं के गवाह।

4. नवकुलयस्निग्धैः

  • संधि-विच्छेद: नव + कुलय + स्निग्धैः।
    • नव: नया;
    • कुलय: घोंसला;
    • स्निग्धैः: कोमल।
  • अर्थ: नए घोंसलों की कोमलता से युक्त।

5. विकलकरणः

  • समास: कर्मधारय समास (विकल + करणः)।
    • विकल: अशक्त;
    • करणः: इंद्रियाँ।
  • अर्थ: इंद्रियों से दुर्बल।

6. परिणामः संवृत्तः

  • संधि-विच्छेद: परिणामः + संवृत्तः।
    • परिणामः: परिवर्तन;
    • संवृत्तः: हो गया।
  • अर्थ: परिवर्तन हुआ।

7. तिर्यञ्चोऽपि परिचयमनुरुन्धन्ते

  • संधि-विच्छेद: तिर्यञ्चः + अपि + परिचयम् + अनुरुन्धन्ते।
    • तिर्यञ्चः: पशु-पक्षी;
    • अनुरुन्धन्ते: स्मरण करते हैं।
  • अर्थ: पशु-पक्षी भी परिचय को स्मरण करते हैं।

व्याख्या:

इस अंश में राम और सीता के अतीत की स्मृतियाँ और उनके बीच का गहरा भावनात्मक जुड़ाव व्यक्त होता है। वासंती सीता को उनके प्रिय स्थान और उन जगहों का स्मरण कराती हैं, जहाँ राम और सीता ने घनिष्ठता का अनुभव किया था। राम इस दृश्य को देखकर अत्यंत दुखी हो जाते हैं, और सीता अपने दुर्भाग्य को दोष देती हैं। वासंती राम की वर्तमान अवस्था पर ध्यान आकर्षित करती हैं, जो उनके शोक और वियोग के कारण अत्यंत दुर्बल हो चुके हैं।

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