गजेंद्र मोक्ष की कथा भागवत पुराण के अष्टम स्कंध, अध्याय 2-4 में वर्णित है। यह कथा भक्ति, समर्पण और भगवान की असीम कृपा का अद्भुत उदाहरण है। यह सिखाती है कि संकट के समय भगवान का स्मरण करने वाला व्यक्ति निश्चित रूप से उनकी शरण पाता है।
गजेंद्र की पृष्ठभूमि
गजेंद्र, एक स्वर्गीय राजा इंद्रद्युम्न का पुनर्जन्म था। इंद्रद्युम्न भगवान विष्णु के परम भक्त थे। एक बार, जब वे तपस्या में लीन थे, तो अग्निहोत्र न करने के कारण ऋषि अगस्त्य ने उन्हें शाप दिया कि वे अगले जन्म में हाथी बनेंगे।
इंद्रद्युम्न का हाथी के रूप में जन्म
अगले जन्म में इंद्रद्युम्न ने गजेंद्र के रूप में जन्म लिया। गजेंद्र त्रिकूट पर्वत के एक बड़े झुंड का राजा था। वह शक्तिशाली, गौरवशाली और सभी हाथियों का प्रिय था।
गजेंद्र और मगरमच्छ का संघर्ष
एक दिन, गजेंद्र अपने झुंड के साथ पर्वत की तलहटी में एक सुंदर जलाशय पर गया। वह जल में प्रवेश कर आनंद ले रहा था। उसी समय, एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया।
संकट और संघर्ष
गजेंद्र ने मगरमच्छ से स्वयं को छुड़ाने का हर संभव प्रयास किया। उसने अपनी पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन मगरमच्छ के बल के आगे वह असफल रहा। यह संघर्ष हजारों वर्षों तक चलता रहा।
श्लोक:
स गजो गजयूथेन परितः परिवारितः।
तृणानि स्रंसयन्नीशं जिघांसोः प्रतिपद्यते।।
(भागवत पुराण 8.2.18)
भावार्थ:
गजेंद्र अपने झुंड की मदद से मगरमच्छ से संघर्ष करता रहा, लेकिन अंततः वह कमजोर पड़ने लगा।
भगवान विष्णु का स्मरण
जब गजेंद्र ने देखा कि उसके प्रयास व्यर्थ हैं, तो उसने भगवान की शरण ली। पिछले जन्म के पुण्य और भक्ति के प्रभाव से उसे भगवान विष्णु का स्मरण हुआ। उसने भगवान को पुकारते हुए एक स्तुति गाई।
गजेंद्र की प्रार्थना
गजेंद्र ने भगवान को सर्वोच्च सत्य, अनंत, और सभी संकटों से मुक्ति दिलाने वाला बताया। उसकी प्रार्थना अत्यंत मार्मिक और भक्तिपूर्ण थी।
श्लोक:
नारायणाखिलगुरो भगवन् नमस्ते।
नमः पराय गुणसेव्यपाद्मूर्तये।
आत्मात्मजापतिगृहादिषु सङ्गमोऽयं।
तेषां पुनर्भवमिहैति हि तत्क्षणार्धम्।।
(भागवत पुराण 8.3.2)
भावार्थ:
गजेंद्र ने भगवान विष्णु को नमन करते हुए कहा, "हे भगवान! आप सभी के गुरु और उद्धारकर्ता हैं। मैं आपकी शरण में हूँ। कृपया मुझे इस संकट से बचाइए।"
भगवान विष्णु का आगमन
गजेंद्र की स्तुति से भगवान विष्णु तुरंत गरुड़ पर सवार होकर वहाँ प्रकट हुए। उन्होंने देखा कि गजेंद्र संकट में है और उसकी प्रार्थना अत्यंत भक्तिपूर्ण है।
श्लोक:
तं वै शरण्यं शरणं समीयुः।
अलक्ष्यं अनंतं वृषभं प्रशान्तम्।
गजेन्द्रमोक्षाय समागतं हरिं।
नमामि भक्तप्रणतानुकम्पिनम्।।
(भागवत पुराण 8.3.29)
भावार्थ:
भगवान विष्णु, जो भक्तों की प्रार्थना सुनकर तुरंत उनकी सहायता करते हैं, गजेंद्र को बचाने के लिए आए।
मगरमच्छ का वध और गजेंद्र का उद्धार
भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ का वध किया और गजेंद्र को मुक्त किया। मगरमच्छ अपने पूर्वजन्म में एक गंधर्व था जिसे ऋषि का शाप मिला था। भगवान विष्णु ने उसे भी शापमुक्त कर दिया।
श्लोक:
स च मुक्तो हरिणा गजेन्द्रो।
नारायणं श्रीनिवासं प्रपन्नः।
(भागवत पुराण 8.4.8)
भावार्थ:
मगरमच्छ को शापमुक्त कर भगवान ने गजेंद्र को संकट से उबारा और उसे मोक्ष प्रदान किया।
गजेंद्र को मोक्ष
भगवान विष्णु ने गजेंद्र को अपने दिव्य धाम ले जाने का आशीर्वाद दिया। गजेंद्र का आत्मसमर्पण और भक्ति उसकी मुक्ति का कारण बना।
श्लोक:
एवं गजेन्द्रमभयाय हरिर्निविष्टः।
मुक्त्वा गजेन्द्रं धिषणं च दत्तः।
(भागवत पुराण 8.4.10)
भावार्थ:
भगवान ने गजेंद्र को अभय प्रदान किया और अपने धाम ले गए।
गजेंद्र मोक्ष कथा का संदेश
1. भगवान का नाम स्मरण:
संकट के समय भगवान का स्मरण सबसे बड़ा सहारा है।
2. आत्मसमर्पण:
गजेंद्र ने अपनी सीमित शक्ति को पहचानकर भगवान के प्रति आत्मसमर्पण किया।
3. भगवान की कृपा:
भगवान अपने भक्तों की प्रार्थना को कभी अनसुना नहीं करते।
4. भक्ति का फल:
गजेंद्र की भक्ति और प्रार्थना ने उसे मोक्ष दिलाया।
निष्कर्ष
गजेंद्र मोक्ष की कथा यह सिखाती है कि जब हम अपनी शक्ति से परे किसी समस्या में फँस जाते हैं, तो भगवान का स्मरण और भक्ति ही हमें मुक्ति दिला सकती है। भगवान विष्णु हर युग में अपने भक्तों की रक्षा के लिए प्रकट होते हैं। यह कथा भक्ति, आत्मसमर्पण और भगवान की असीम कृपा का प्रतीक है।
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