रघुवंश-महाकाव्य सर्ग 2 श्लोक संख्या 3 (मल्लिनाथ टीका के अनुवाद सहित)

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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Mahakavi kalidas praneetam raghuvansh -mahakavyam - chapter 2
Mahakavi kalidas praneetam
raghuvansh -mahakavyam - chapter 2


श्लोक:-

निवर्त्य राजा दयितां दयालुस्तां सौरभेयीं सुरभिर्यशोभिः।
पयोधरीभूतचतुःसमुद्रां जुगोप गोरूपधरामिवोर्वीम्॥3॥

हिन्दी अनुवाद

  1. निवर्त्य राजा दयितां दयालुः तां सौरभेयीं सुरभिः यशोभिः।

    • राजा, जो दयालु (करुणाशील) था, अपनी प्रिय (पत्नी) को वापस लौटा कर, यश (कीर्ति) के कारण सुगंधित (मनोज्ञ) बना।
  2. पयोधरीभूतचतुःसमुद्रां जुगोप गोरूपधरामिवोर्वीम्।

    • राजा ने चार समुद्रों से परिपूर्ण पृथ्वी को, जो गाय का रूप धारण कर रही थी, उसी प्रकार सुरक्षित रखा जैसे वह गाय (गोरूपधरा) को रक्षा करता हो।
  3. दयालुः

    • "दयालु" का अर्थ है करुणाशील। अमरकोश में इसे "स्यादयालुः कारुणिकः" कहा गया है।
  4. सौरभेयीं

    • "सौरभेयी" का अर्थ है कामधेनु की पुत्री, अर्थात नंदिनी।
  5. पयोधरीभूतचतुःसमुद्रां

    • "पयोधर" का अर्थ है स्तन।
    • चार समुद्रों को यहां "पयोधरीभूत" कहा गया है, क्योंकि वे पृथ्वी के लिए उसी प्रकार हैं जैसे स्तन शरीर के लिए।
  6. जुगोप

    • "जुगोप" का अर्थ है रक्षा करना।
  7. गोरूपधरामिवोर्वीम्

    • "गोरूपधरा" का अर्थ है पृथ्वी, जिसे गाय के रूप में देखा गया है।

भावार्थ

राजा दिलीप ने अपनी धर्मपत्नी को लौटने के लिए कहा और कामधेनु की पुत्री नंदिनी (गाय) की रक्षा की। इस रक्षा को उन्होंने उसी प्रकार किया जैसे पृथ्वी, जो चार समुद्रों से परिपूर्ण है और गाय के रूप में प्रतीकात्मक रूप से मानी जाती है, की रक्षा की जाती है। राजा का कर्तव्य पृथ्वी और प्रजा की रक्षा करना था, जिसे उन्होंने पूर्णतः निभाया।


शब्दशः हिन्दी अनुवाद

  1. निवर्त्य राजा दयितां दयालुः:

    • राजा, जो दयालु था, अपनी प्रिय पत्नी (दयिता) को वापस लौटा दिया।
    • निवर्त्य का अर्थ है, "लौटाना" या "वापस भेजना।"
  2. तां सौरभेयीं सुरभिर्यशोभिः:

    • राजा ने कामधेनु की पुत्री नंदिनी की रक्षा की।
    • "सौरभेयी" का अर्थ है "सुरभि (कामधेनु) की पुत्री," अर्थात नंदिनी।
    • "सुरभिः" का अर्थ है "सुगंधित," जो यहाँ यश (कीर्ति) के कारण आकर्षक और पवित्र रूप में संदर्भित है।
  3. पयोधरीभूतचतुःसमुद्रां:

    • चार समुद्रों से परिपूर्ण पृथ्वी, जो पयोधरी (स्तनधारी) के समान है।
    • "पयोधर" का अर्थ स्तन है, और "पयोधरीभूत" का अर्थ है "पृथ्वी," जिसे समुद्रों द्वारा पोषित किया गया है, ठीक उसी प्रकार जैसे स्तन से पोषण मिलता है।
  4. जुगोप गोरूपधरामिवोर्वीम्:

    • राजा ने उस पृथ्वी की रक्षा की, जो गाय (गोरूपधरा) के रूप में मानी जाती है।
    • "जुगोप" का अर्थ है "रक्षा की।"
    • "गोरूपधरा" का अर्थ है "गाय के रूप में मानी गई पृथ्वी।"

व्याख्या और भावार्थ

  1. राजा का धर्म और कर्तव्य:
    इस श्लोक में राजा दिलीप के धर्म और कर्तव्यपरायणता का वर्णन है। राजा ने अपनी धर्मपत्नी (दयिता) को लौटाकर नंदिनी (गाय) की सेवा और रक्षा का दायित्व निभाया। यह कार्य उनके धर्म, करुणा, और कर्तव्यपरायणता का प्रतीक है।

  2. गाय का प्रतीकात्मक महत्व:

    • नंदिनी (कामधेनु की पुत्री) यहाँ केवल एक गाय नहीं है, बल्कि उसे पृथ्वी का प्रतीक माना गया है।
    • गाय और पृथ्वी दोनों को पोषण, धैर्य और करुणा का प्रतीक माना गया है।
    • राजा ने नंदिनी की रक्षा उसी तरह की जैसे पृथ्वी, जो चार समुद्रों से घिरी है और जीवन का आधार है, की रक्षा की जाती है।
  3. चार समुद्रों का उल्लेख:

    • "पयोधरीभूतचतुःसमुद्रां" का अर्थ है "चार समुद्रों से घिरी हुई पृथ्वी।"
    • समुद्र पृथ्वी को पोषण देते हैं, ठीक वैसे ही जैसे स्तन से शरीर का पोषण होता है।
  4. गाय का गोरूपधरा होना:

    • यहाँ पृथ्वी को गाय के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह भारतीय परंपरा में "गोमाता" की अवधारणा से जुड़ा है, जहाँ गाय को माँ की तरह पोषण देने वाली मानी जाती है।
  5. राजा की यशस्विता:

    • "सुरभिः यशोभिः" का अर्थ है राजा का यश, जो सुगंध की तरह चारों ओर फैलता है।
    • राजा दिलीप की करुणा, धर्मनिष्ठा और प्रजा तथा पृथ्वी की रक्षा करने की उनकी क्षमता उनके यश को महान बनाती है।

विशेष काव्यात्मक तत्व:

  1. उपमा:

    • राजा ने पृथ्वी की रक्षा गाय के समान की। यह उपमा दर्शाती है कि राजा के लिए पृथ्वी और प्रजा गाय के समान पवित्र और पूजनीय थीं।
  2. संकेतात्मकता:

    • गाय और पृथ्वी दोनों को पोषण देने वाली माँ के रूप में दिखाया गया है।
    • राजा का कार्य न केवल एक पशु की रक्षा करना है, बल्कि पूरी पृथ्वी और प्रजा की रक्षा करना है।
  3. गाय और समुद्रों का संबंध:

    • समुद्र पृथ्वी के स्तनों (पयोधरों) के समान हैं, जो सभी जीवों को पोषण देते हैं।

शिक्षा और संदेश:

  1. धर्म और करुणा का महत्व:

    • राजा का दायित्व केवल शासन करना नहीं, बल्कि प्रजा और प्रकृति दोनों की रक्षा करना है।
    • राजा दिलीप ने न केवल अपनी प्रजा, बल्कि पृथ्वी और पशुओं के प्रति भी करुणा और जिम्मेदारी का भाव रखा।
  2. पृथ्वी और प्रकृति की महत्ता:

    • इस श्लोक में गाय और पृथ्वी को एक समान बताया गया है। यह हमें सिखाता है कि हमें प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा उसी श्रद्धा से करनी चाहिए जैसे हम अपनी माँ की करते हैं।
  3. आदर्श राजा:

    • राजा दिलीप की धर्मनिष्ठा और कर्तव्यपरायणता का उदाहरण हमें आदर्श नेतृत्व का पाठ पढ़ाता है।
    • एक सच्चा नेता वह है जो अपनी प्रजा, भूमि, और सभी जीवों के प्रति करुणा और समर्पण रखता है।

हिन्दी अनुवाद

राजा, जो करुणाशील था, ने अपनी प्रिय पत्नी को लौटा दिया और सौरभेयी (कामधेनु की पुत्री नंदिनी) की रक्षा की। वह मनोहर कीर्ति (यश) से सुगंधित था। चार समुद्रों से परिपूर्ण पृथ्वी, जो स्तनों के समान पोषण देने वाली है, उसकी उसी प्रकार रक्षा की जैसे गाय के रूप में मानी गई धरती की रक्षा की जाती है।

शब्दार्थ:

  1. दयालुः कारुणिकः

    • दयालु का अर्थ है करुणाशील।
    • 'स्यादयालुः कारुणिकः' (अमरकोश)।
    • "स्पृहि गृहि" के समान अलुच् प्रत्यय।
  2. सुरभिर्यशोभिः

    • "यशोभिः सुरभि" का अर्थ है मनोहर और सुगंधित।
    • 'सुरभिः स्यान्मनोज्ञेऽपि' (विश्व)।
  3. पयोधरीभूतचतुःसमुद्रां

    • चार समुद्रों से पोषित पृथ्वी।
    • 'पयसां धराः पयोधराः स्तनाः' (अमरकोश)।
    • "अपयोधराः" का अर्थ "दूध रहित स्तन"।
  4. गोरूपधरामिवोर्वीम्

    • गाय के रूप में मानी गई पृथ्वी।
    • "धरन्तीति धराः" (पचाद्यच्)।
  5. जुगोप ररक्ष

    • "जुगोप" का अर्थ है "रक्षा की।"
    • "भूरक्षणप्रयत्नेनेव ररक्ष" (भाव)।

अन्य विवरण:

  • धेनुपले: पयसा (दूध) से पोषित।
  • दुग्धतिरस्कृतसागराम्: पृथ्वी के चार समुद्र दूध के समान हैं।

समग्र निष्कर्ष:

यह श्लोक राजा दिलीप के आदर्श चरित्र का वर्णन करता है, जो अपने धर्म और कर्तव्य का पालन करते हुए न केवल गाय (नंदिनी) की रक्षा करते हैं, बल्कि पृथ्वी और प्रजा की रक्षा भी उसी भावना से करते हैं। उनकी करुणा, धर्मपरायणता, और नेतृत्व क्षमता का वर्णन भारतीय काव्य परंपरा में एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है।

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