Mahakavi kalidas praneetam raghuvansh -mahakavyam - chapter 2 |
तस्याः खुरन्यासपवित्रपांसुमपांसुलानां धुरि कीर्तनीया।
मार्गं मनुष्येश्वरधर्मपत्नी श्रुतेरिवार्थ स्मृतिरन्वगच्छत्॥2॥
हिन्दी अनुवाद
उस गाय के खुरों से जो पवित्र धूल उड़ रही थी, वह उन अपवित्र स्वभाव वाली स्त्रियों (स्वैरिणियों) के लिए भी प्रशंसा योग्य है। राजा की धर्मपत्नी, जो मनुष्यराज की पत्नी थीं, उस गाय के मार्ग का अनुसरण उसी प्रकार कर रही थीं जैसे स्मृति (धर्मशास्त्र) वेदवाक्य (श्रुति) के अर्थ का अनुसरण करती है।
श्लोक की व्याख्या
तस्याः खुरन्यासपवित्रपांसुमपांसुलानां धुरि कीर्तनीया ।। मार्गं मनुष्येश्वरधर्मपत्नी श्रुतेरिवार्थ स्मृतिरन्वगच्छत् ॥ २ ॥ रुस्या इति ।। पांसवो दोषा आसां सन्तीति पांसुलाः स्वैरिण्यः । 'स्वैरिणी पांसुला' इत्यमरः । " सिध्मादिभ्यश्च " इति लच्प्रत्ययः । अपांसुलानां प्रतिव्रतानां धुर्यग्रे कीर्तनीया परिगणनीया मनुष्येश्वरधर्मपत्नी । खुरन्यासैः पवित्राः पांसवो यस्य तम् । • रेणुर्द्वयोः स्त्रियां धूलिः पांसुर्ना न द्वयो रजः ।' इत्यमरः । तस्या धेनोर्मार्गम् । स्मृ तिर्मन्वादिवाक्यं श्रुतेर्वेदवाक्यस्यार्थमभिधेयमिव । अन्वगच्छदनुसृतवत्ती च । यथा स्मृतिः श्रुतिक्षुण्णमेवार्थमनुसरति तथा सापि गोखुरक्षुण्णमेव मार्गमनुससारेत्यर्थः । धर्म पत्नीत्यत्राश्वघासादिवत्तादर्ये षष्ठीसमासः प्रकृतिविकाराभावात् । पांसुलपथमवृत्तावप्य पांसुलानामिति विरोधालंकारो ध्वन्यते ।। २ ।।
श्लोक का विश्लेषण
श्लोक और उसके पदों में संस्कृत भाषा की गहराई और काव्यात्मकता के साथ राजा दिलीप और उनकी धर्मपत्नी सुदक्षिणा के आदर्श चरित्र और गाय की महिमा का चित्रण किया गया है। नीचे इसका विस्तृत व्याख्यान प्रस्तुत है:
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तस्याः खुरन्यासपवित्रपांसुमपांसुलानां धुरि कीर्तनीया।
- यहाँ गाय के खुरों से उठने वाली धूल को पवित्र और गुणगान के योग्य बताया गया है।
- विशेष रूप से, यह धूल उन स्त्रियों के लिए भी कीर्तनीय है, जिनके आचरण में दोष (पांसुला) हैं।
- भावार्थ: गाय की महिमा इतनी अद्भुत है कि उसके खुरों से उठी धूल भी पवित्र बन जाती है और दूसरों को भी शुद्ध कर सकती है।
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मार्गं मनुष्येश्वरधर्मपत्नी श्रुतेरिवार्थ स्मृतिरन्वगच्छत्॥
- यहाँ सुदक्षिणा के गाय के पीछे चलने की तुलना वेद (श्रुति) और धर्मशास्त्र (स्मृति) के संबंध से की गई है।
- वेद अर्थ बताते हैं, और स्मृति उस अर्थ का अनुसरण करती है। इसी प्रकार, सुदक्षिणा ने गाय के खुरों से बनाए मार्ग का अनुसरण किया।
- भावार्थ: राजा की धर्मपत्नी पूर्ण समर्पण और भक्ति के साथ गाय के पदचिन्हों पर चल रही थीं। यह उनके कर्तव्य और धर्म के प्रति आदर को दर्शाता है।
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पांसुलाः स्वैरिण्यः
- अमरकोश में "पांसुला" का अर्थ "स्वैरिणी" दिया गया है, जो उन स्त्रियों को दर्शाता है जिनमें दोष या अशुद्धता हो।
- इसके विपरीत, अपांसुला वे हैं, जो दोषरहित और पवित्र (जैसे पतिव्रता) हैं।
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धुर्यग्रे कीर्तनीया
- गाय की महिमा यहाँ अत्यंत ऊँचे स्तर पर स्थापित की गई है। उसकी खुर-धूल को अग्रणी और प्रशंसा योग्य बताया गया है।
- भावार्थ: गाय केवल भौतिक रूप से ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी जीवन को पवित्र करती है।
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रेणु, पांसु और रज का वर्णन
- अमरकोश के अनुसार, धूल के लिए "रेणु," "पांसु," और "रज" शब्द का उपयोग किया गया है। यहाँ "पांसु" शब्द को गहराई से चुना गया है, जो गाय के खुरों की धूल की पवित्रता का संकेत देता है।
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स्मृति और श्रुति का संबंध
- जैसे स्मृति (धर्मशास्त्र) वेद (श्रुति) के अर्थ का पालन करती है, वैसे ही सुदक्षिणा ने गाय के खुरों से निर्मित मार्ग का पालन किया।
- यह धर्म और आचरण के प्रति उनकी निष्ठा और कर्तव्यपरायणता को उजागर करता है।
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विरोधालंकार
- "पांसुलानाम्" शब्द का उपयोग करके विरोध (कंट्रास्ट) दिखाया गया है।
- गाय की खुर-धूल को पवित्र बताते हुए यह कहा गया कि भले ही वह धूल पांसुल (अपवित्र) प्रतीत हो, लेकिन वह वास्तव में सभी को पवित्र करने वाली है।
काव्यात्मक सौंदर्य और शिक्षा
- गाय का महत्व: गाय के खुरों से उठने वाली धूल तक को पवित्र और शुद्धिकारी बताया गया है। यह भारतीय संस्कृति में गाय के आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व को रेखांकित करता है।
- धर्मपत्नी का आचरण: सुदक्षिणा का गाय के पीछे चलना यह दिखाता है कि धर्मपत्नी अपने पति और धर्म के प्रति पूरी निष्ठा और समर्पण रखती है।
- स्मृति और श्रुति का संबंध: यह बताता है कि धर्मशास्त्र (स्मृति) का उद्देश्य वेद (श्रुति) के अर्थ को स्पष्ट करना और उनका अनुसरण करना है।
- विरोधालंकार का उपयोग: "पांसुल" (धूल, जो अशुद्ध मानी जाती है) और "अपांसुल" (दोषरहित) के बीच विरोध दिखाकर यह समझाया गया कि गाय की धूल भी अशुद्ध को पवित्र कर सकती है।
समग्र निष्कर्ष
यह श्लोक धर्म, कर्तव्य और पवित्रता के आदर्श स्वरूप का परिचायक है। राजा दिलीप और उनकी धर्मपत्नी सुदक्षिणा का गाय के प्रति यह समर्पण, उनकी धर्मपरायणता और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है। गाय की महिमा और धर्म के पालन के इस वर्णन में गहरे आध्यात्मिक और नैतिक संदेश छिपे हैं।
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