रघुवंश-महाकाव्य सर्ग 2 श्लोक संख्या 1(मल्लिनाथ टीका के अनुवाद सहित)

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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Mahakavi kalidas praneetam raghuvansh -mahakavyam - chapter 2
Mahakavi kalidas praneetam
raghuvansh -mahakavyam - chapter 2

संस्कृत पाठ:

अथ प्रजानामधिपः प्रभाते जायाप्रतिग्राहितगन्धमाल्याम्।
वनाय पीतप्रतिवद्धवत्सां यशोधनो धेनुमृषेर्मुमोच॥1॥

हिन्दी अनुवाद:

प्रातःकाल में प्रजा के स्वामी राजा दिलीप, जिन्होंने अपनी पत्नी सुदक्षिणा द्वारा पहनाई गई सुगंधित पुष्पमाला धारण की थी, ऋषि वसिष्ठ की गाय नंदिनी को, जिसका बछड़ा बंधा हुआ था, वन में चरने के लिए छोड़ दिया।


संस्कृत पाठ:

आशासु राशीभवदङ्गवल्लीभासैव दासीकृतदुग्धसिन्धुम्।
मन्दस्मितैर्निन्दितशारदेन्दुं वन्देऽरविन्दासनसुन्दरि त्वाम्॥

हिन्दी अनुवाद:

मैं उन सुंदर देवी की वंदना करता हूँ, जिनकी अंगों की आभा दिशाओं को आलोकित करती है, जिन्होंने दूध के समुद्र (गाय) को भी अपना सेवक बना लिया है और जिनकी मन्द मुस्कान शरद ऋतु के चंद्रमा को भी तुच्छ कर देती है।


संस्कृत पाठ:

अथ निशातिक्रमणानन्तरं यशोधनः प्रजानामधिपः प्रजेश्वरः प्रभाते प्रातःकाले जायया सुदक्षिणया। प्रतिग्राहयित्र्या। प्रतिग्राहिते स्वीकारिते गन्धमाल्ये यया सा जायामतिग्राहितगन्धमाल्या तां तथोक्ताम्।

हिन्दी अनुवाद:

रात्रि के समाप्त होने के बाद, प्रातःकाल में, प्रजा के राजा दिलीप ने अपनी पत्नी सुदक्षिणा द्वारा पहनाई गई सुगंधित पुष्पमाला को धारण किया और इस प्रकार सुसज्जित हुए।


संस्कृत पाठ:

पीतं पानमस्यास्तीति पीतः पीतवानित्यर्थः। "अर्शआदिभ्योऽच्" इत्यच्प्रत्ययः"

हिन्दी अनुवाद:

यहां "पीतः" का अर्थ है "जिसने पान किया है" या "पिया है"। यह "अर्शआदिभ्योऽच्" इस व्याकरण नियम से उत्पन्न हुआ है।


संस्कृत पाठ:

"पीता गावो भुक्ता ब्राह्मणाः" इति महाभाष्ये दर्शनात्। पीतः प्रतिवद्धो वत्सो यस्यास्तामृपेर्वसिष्ठस्य धेनुं नन्दिनीं वनायवनं प्रतिगन्तुम्।

हिन्दी अनुवाद:

महाभाष्य में कहा गया है कि "गायों को चरने दिया गया और ब्राह्मणों ने भोजन किया।" यहां ऋषि वसिष्ठ की गाय नंदिनी को, जिसका बछड़ा बंधा हुआ था, वन में चरने के लिए भेजा गया।


संस्कृत पाठ:

"क्रियार्थोपपद" इत्यादिना चतुर्थी। मुमोच मुक्तवान।

हिन्दी अनुवाद:

"क्रियार्थोपपद" व्याकरण नियम के अनुसार चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त हुई है। "मुमोच" का अर्थ है "स्वतंत्र किया।"


संस्कृत पाठ:

जायापदसामर्थ्यात्सुद‌क्षिणायाः पुत्रजननयोग्यत्वमनुसंधेयम्।

हिन्दी अनुवाद:

"जायापद" शब्द से यह संकेत मिलता है कि सुदक्षिणा पुत्र उत्पन्न करने योग्य थीं।


संस्कृत पाठ:

तथाहि श्रुतिः "पतिर्जायां प्रविशति गर्यो भूत्वेह मातरम्। तस्यां पुनर्नबो भुत्वा दशमे मासि जायते। तज्जाया जाया भवति यदस्यां जायते पुनः।"

हिन्दी अनुवाद:

श्रुति कहती है: "पति पत्नी के गर्भ में प्रवेश करता है और वह माता बनती है। दसवें महीने में उस गर्भ से संतान उत्पन्न होती है। वही स्त्री सच्चे अर्थों में पत्नी कहलाती है, जो संतान को जन्म देती है।"


संस्कृत पाठ:

यशोधन इत्यनेन पुत्रवत्ताकीर्तिलोभाद्राजानर्हे गोरक्षणे मवृत्त इति गम्यते।

हिन्दी अनुवाद:

"यशोधन" शब्द इस तथ्य को प्रकट करता है कि राजा दिलीप, पुत्र की कामना और कीर्ति प्राप्त करने की इच्छा रखते हुए, गौ-रक्षण के लिए तत्पर थे।


संस्कृत पाठ:

अस्मिन्सर्गे वृत्तमुप जातिः "अनन्तरोदीरितलक्ष्मभाजौ पादौ यदीयावुपजातयस्ताः”।

हिन्दी अनुवाद:

इस सर्ग में "उपजाति" छंद का प्रयोग किया गया है, जैसा कि "अनन्तरोदीरितलक्ष्मभाजौ पादौ यदीयावुपजातयस्ताः" में स्पष्ट होता है।


अथ प्रजानामधिपः प्रभाते जायाप्रतिग्राहितगन्धमाल्याम्।

वनाय पीतप्रतिवद्धवत्सां यशोधनो धेनुमृषेर्मुमोच॥1॥


शब्दशः अनुवाद:

  1. अथ: इसके पश्चात।
  2. प्रजानामधिपः: प्रजा का स्वामी (राजा)।
  3. प्रभाते: प्रातःकाल में।
  4. जायाप्रतिग्राहितगन्धमाल्याम्:
    • जाया: पत्नी।
    • प्रतिग्राहित: स्वीकार की हुई।
    • गन्धमाल्याम्: सुगंधित पुष्पमाला।
      → पत्नी द्वारा पहनाई गई सुगंधित पुष्पमाला।
  5. वनाय: वन के लिए।
  6. पीतप्रतिवद्धवत्साम्:
    • पीत: दूध पिया हुआ।
    • प्रतिवद्ध: बंधा हुआ।
    • वत्साम्: बछड़ा।
      → जिसका बछड़ा दूध पीकर बंधा हुआ था।
  7. यशोधनः: यशस्वी धन से संपन्न (राजा दिलीप)।
  8. धेनुमृषेः: ऋषि (वसिष्ठ) की गाय।
  9. मुमोच: छोड़ दिया।

पूर्ण शब्दशः अनुवाद:

इसके पश्चात, प्रजा का स्वामी (राजा दिलीप) प्रातःकाल में, अपनी पत्नी सुदक्षिणा द्वारा पहनाई गई सुगंधित पुष्पमाला धारण कर, ऋषि वसिष्ठ की गाय, जिसका बछड़ा दूध पीकर बंधा हुआ था, को वन में चरने के लिए छोड़ दिया।

सारांश (अनुवाद का उद्देश्य):

  • पाठ राजा दिलीप के धर्म, कर्तव्य और गौ सेवा के आदर्श का परिचायक है।
  • इसमें संस्कृत व्याकरण के नियमों और छंदों का भी उल्लेख है, जो महाकाव्य की संरचना को स्पष्ट करते हैं।
  • पाठ में सुदक्षिणा के दाम्पत्य संबंध और पुत्र योग्यता पर भी प्रकाश डाला गया है, जो वंश परंपरा का आधार है।

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