मन्त्र 16 (ईशावास्य उपनिषद) मूल पाठ पूषन्नेकर्षे यम सूर्य प्राजापत्य। व्यूह रश्मीन् समूह तेजो यत् ते रूपं कल्याणतमं तत्ते पश्यामि। योऽसावसौ पुरुषः सोऽ
मन्त्र 16 (ईशावास्य उपनिषद) |
मन्त्र 16 (ईशावास्य उपनिषद)
मूल पाठ
शब्दार्थ
- पूषण: सूर्यदेव, जो पोषण करते हैं।
- एकर्षे: एकमात्र गति देने वाले।
- यम: यमराज, मृत्यु के देवता।
- सूर्य: प्रकाश और ज्ञान का प्रतीक।
- प्राजापत्य: प्रजापति के पुत्र।
- व्यूह: हटा दें।
- रश्मीन्: किरणें।
- समूह: समेट लें।
- तेजः: प्रकाश, दैवी शक्ति।
- यत्: जो।
- ते रूपं: आपका स्वरूप।
- कल्याणतमं: सबसे कल्याणकारी।
- तत् ते पश्यामि: मैं उसे देखूं।
- यः: जो।
- असौ: वह।
- पुरुषः: परम पुरुष (परमात्मा)।
- सः अहम् अस्मि: वही मैं हूँ।
अनुवाद
हे पूषण, हे एकमात्र गति देने वाले, हे यमराज, हे सूर्य, हे प्रजापति के पुत्र, कृपया अपनी किरणों को समेट लें और अपना तेजस्वी स्वरूप प्रकट करें। मैं आपके सबसे कल्याणकारी रूप का दर्शन करना चाहता हूँ। जो परम पुरुष (परमात्मा) है, वही मैं हूँ।
व्याख्या
यह मन्त्र साधक की प्रार्थना है, जिसमें वह सूर्य से, जो प्रकाश और ज्ञान के प्रतीक हैं, सत्य स्वरूप का दर्शन कराने की प्रार्थना करता है।
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सूर्य का प्रतीकात्मक अर्थ:सूर्य को यहाँ परमात्मा के तेज और ज्ञान का प्रतीक माना गया है। सूर्य की किरणें संसारिकता और अज्ञान का आवरण हैं, और साधक उनसे सत्य स्वरूप को देखने की प्रार्थना करता है।
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किरणों को हटाने की प्रार्थना:साधक सूर्य से कहता है कि अपनी किरणों (आवरण) को समेट लें ताकि वह उनके वास्तविक स्वरूप (सत्य) को देख सके।
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कल्याणकारी स्वरूप:साधक उस दिव्य स्वरूप को देखना चाहता है जो सबसे कल्याणकारी है। यह स्वरूप परमात्मा का शुद्ध और स्पष्ट रूप है।
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अद्वैत का अनुभव:अन्त में साधक अद्वैत वेदांत का सिद्धांत प्रकट करता है – "सोऽहमस्मि" (वही परम पुरुष मैं हूँ)। यह आत्मा और परमात्मा की एकता का प्रतीक है।
आध्यात्मिक संदेश
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ज्ञान का प्रकाश:साधक को सत्य का अनुभव करने के लिए सभी आवरणों को हटाने का प्रयास करना चाहिए।
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आत्मा और परमात्मा की एकता:यह मन्त्र आत्मा और परमात्मा के बीच किसी भेद को अस्वीकार करता है। सत्य का अनुभव यह है कि आत्मा और परमात्मा एक ही हैं।
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दृष्टि की शुद्धता:केवल जब मन, इंद्रियाँ, और सांसारिक आसक्ति शांत होती हैं, तब सत्य का दर्शन संभव है।
आधुनिक संदर्भ में उपयोग
- यह मन्त्र हमें सिखाता है कि अपने जीवन की जटिलताओं (किरणों) को शांत करके अपने भीतर छिपे सत्य (परमात्मा) को पहचानने का प्रयास करना चाहिए।
- आध्यात्मिक साधना में आत्मा की दिव्यता का अनुभव करना ही अंतिम लक्ष्य है।
- "सोऽहम" (वही मैं हूँ) का अनुभव हमें आत्मविश्वास और ईश्वर के प्रति एकत्व का बोध कराता है।
विशेष बात
यह मन्त्र अद्वैत वेदांत का सार प्रस्तुत करता है और साधक को आत्मा और परमात्मा की एकता का अनुभव करने की प्रेरणा देता है।
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