बलि प्रसंग भागवत पुराण के अष्टम स्कंध, अध्याय 15-23 में वर्णित है। यह कथा असुरराज बलि और भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी हुई है। यह प्रसंग धर्म, सत्य, दान, और भगवान की कृपा का अद्भुत उदाहरण है। असुरराज बलि ने अपनी तपस्या, दानशीलता, और सत्यनिष्ठा से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त की और मोक्ष को प्राप्त किया।
बलि का परिचय
- बलि असुरों का राजा था और प्रह्लाद का पौत्र था।
- वह अत्यंत शक्तिशाली, धर्मनिष्ठ, और तपस्वी था।
- उसने अपनी भक्ति और तपस्या से इंद्र सहित सभी देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।
बलि की शक्ति और स्वर्ग विजय
- बलि ने अपने गुरु शुक्राचार्य के निर्देश पर कई यज्ञ किए, जिनसे उसे अपार शक्ति मिली। उसने देवताओं को पराजित कर दिया और स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।
श्लोक:
स बलिर्ब्रह्मवर्चस्वी यज्ञैरद्भुतदक्षिणैः।
विजित्य त्रिदिवं यज्ञैः बभूवामरपूजितः।।
(भागवत पुराण 8.15.10)
भावार्थ:
बलि ने अपने यज्ञों और तपस्या के बल पर देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।
देवताओं की पराजय और प्रार्थना
- देवता, असुरराज बलि से पराजित होकर भयभीत हुए और भगवान विष्णु की शरण में गए।
श्लोक:
शरणागतिनाथाय विष्णवे सर्वलोकिने।
देवाः प्रपन्ना हरिं त्राहि त्रैलोक्यं प्रभो।।
(भागवत पुराण 8.16.12)
भावार्थ:
देवताओं ने भगवान विष्णु से कहा, "हे प्रभु! आप ही हमारी शरण हैं। कृपया त्रिलोक की रक्षा करें।"
भगवान विष्णु का वामन अवतार
- देवताओं की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया।
- उन्होंने अदिति के गर्भ से ब्राह्मण बालक के रूप में जन्म लिया।
- भगवान वामन ने ब्राह्मण का रूप लेकर बलि के यज्ञ में जाने का निश्चय किया।
श्लोक:
सर्वेभ्यः कर्मसु धर्मिष्ठो जातो वामनरूपधृक्।
चक्रे च ब्राह्मणं रूपं लोकानां हितमात्मनः।।
(भागवत पुराण 8.18.12)
भगवान ने वामन रूप धारण कर ब्राह्मण के रूप में बलि के यज्ञ में जाने का निश्चय किया।
बलि और वामन का संवाद
- भगवान वामन की तीन पग भूमि की मांग
- बलि ने भगवान वामन का स्वागत किया और कहा, "हे ब्राह्मण देव! आप जो चाहें, मुझसे मांग सकते हैं।"
- भगवान वामन ने तीन पग भूमि की मांग की।
श्लोक:
पदत्रयं मे विप्रर्षे यावदर्थं वृतं त्वया।
विश्वेश्वरस्य दातव्यमिच्छतस्तेऽपि कीर्तये।।
(भागवत पुराण 8.19.17)
भावार्थ:
भगवान वामन ने बलि से कहा, "हे राजन! मुझे केवल तीन पग भूमि चाहिए। यह मेरे लिए पर्याप्त है।"
बलि का दान देना और शुक्राचार्य की चेतावनी
- बलि ने वामन को तीन पग भूमि देने का वचन दिया। लेकिन उसके गुरु शुक्राचार्य ने उसे चेतावनी दी कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं, बल्कि भगवान विष्णु हैं, जो स्वर्ग को पुनः देवताओं को लौटाने के लिए आए हैं।
श्लोक:
एष वै भगवान् विष्णुः प्रलंबाय सुरद्विषाम्।
यज्ञविघ्नं च कर्तासौ भविष्यति न संशयः।।
(भागवत पुराण 8.20.5)
भावार्थ:
शुक्राचार्य ने कहा, "यह ब्राह्मण स्वयं भगवान विष्णु हैं, जो असुरों को हराने और देवताओं को स्वर्ग लौटाने के लिए आए हैं।"
बलि का उत्तर
- बलि ने अपने गुरु की चेतावनी को अस्वीकार करते हुए कहा कि वह अपने वचन से पीछे नहीं हट सकता।
श्लोक:
सत्यं कर्तुं मया निश्चितं यद्यदिष्टं तु विप्रकृतम्।
न ब्रह्मवाक्यं विप्रर्षेः स्वल्पं दुर्बलं कथंचन।।
(भागवत पुराण 8.20.24)
भावार्थ:
बलि ने कहा, "मैं अपने वचन का पालन करूंगा, चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी खोना पड़े।"
भगवान वामन का विराट रूप
बलि ने जब तीन पग भूमि देने का वचन दिया, तो भगवान वामन ने अपना विराट रूप धारण कर लिया।1. पहले पग में उन्होंने संपूर्ण पृथ्वी और पाताल को नाप लिया।
2. दूसरे पग में उन्होंने स्वर्गलोक को नाप लिया।
3. तीसरे पग के लिए बलि ने अपना सिर भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया।
श्लोक:
पादेनैकं पृथिवीं द्वितीयेन दिवं ययौ।
त्रितीयं तु बलिर्मूर्ध्नि ददौ भगवते हरिः।।
(भागवत पुराण 8.20.29)
भावार्थ:
भगवान वामन ने पहले पग से पृथ्वी, दूसरे पग से स्वर्ग को नाप लिया और तीसरे पग के लिए बलि ने अपना सिर समर्पित कर दिया।
बलि का अभिमान नष्ट और मोक्ष प्राप्ति
- भगवान ने बलि का अभिमान नष्ट किया और उसकी सत्यनिष्ठा और दानशीलता से प्रसन्न होकर उसे पाताल लोक का राजा बना दिया।
- बलि को भगवान विष्णु ने अपने परमधाम का आशीर्वाद भी दिया।
श्लोक:
प्रह्लादस्य प्रसादेन बलिर्महात्मा हरिं गतः।
मोक्षं च दत्तवान्ते विष्णुः सर्वमहोदयम्।।
(भागवत पुराण 8.22.32)
भावार्थ:
भगवान विष्णु ने बलि को मोक्ष का वरदान दिया और उसकी भक्ति को स्वीकार किया।
बलि और धर्म की स्थापना
- भगवान ने बलि को यह शिक्षा दी कि दान, सत्य, और धर्म का पालन ही वास्तविक शक्ति है।
- बलि की सत्यनिष्ठा और भक्ति के कारण ही वह असुरों का राजा होते हुए भी भगवान विष्णु का परम भक्त बन गया।
कथा का संदेश
1. दान और सत्यनिष्ठा का महत्व:बलि ने अपनी शक्ति, संपत्ति, और अभिमान को त्यागकर भगवान की शरण ली।
2. भगवान की कृपा:
भगवान भक्त के अभिमान को नष्ट कर उसे मोक्ष प्रदान करते हैं।
3. धर्म की विजय:
देवताओं और असुरों के बीच यह संघर्ष धर्म और अधर्म के बीच का संघर्ष है, जिसमें अंततः धर्म की विजय होती है।
4. विनम्रता का महत्व:
भगवान वामन ने छोटे ब्राह्मण बालक का रूप धारण कर विनम्रता का आदर्श प्रस्तुत किया।
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