चंद्रवंश की कथा,भागवत पुराण, नवम स्कंध,अध्याय 14-22, चंद्रवंश का प्रारंभ,चंद्रमा के वंशज, ययाति और उनके पुत्रों की कथा,ययाति का श्राप और पुरु का धर्म।
चंद्रवंश की कथा भागवत पुराण के नौवें स्कंध, अध्याय 14-22 में वर्णित है। चंद्रवंश का प्रारंभ चंद्रमा (सोम) से हुआ, जो महर्षि अत्रि के पुत्र थे। चंद्रवंश में ययाति, पुरु, कुरु, यदु, कौरव, और वृष्णि वंश के प्रमुख राजा हुए। भगवान श्रीकृष्ण इसी वंश के वृष्णि कुल में अवतरित हुए। इस वंश की कथा धर्म, भक्ति, और मानवता के लिए आदर्श शासन की स्थापना का प्रतीक है।
चंद्रवंश का प्रारंभ
चंद्रमा (सोम) महर्षि अत्रि और उनकी पत्नी अनसूया के तप से उत्पन्न हुए। उन्हें ब्रह्माजी ने त्रिलोक का अधिपति बनाया और उनकी सुंदरता, तप, और प्रभाव के कारण उनका यश चंद्रवंश के रूप में फैला।
श्लोक:
चन्द्रमाः कलाधरः सोम इत्यभिविश्रुतः।
अत्रेः पुत्रः पतिः स्त्रीणां त्रैलोक्यं व्यभवत्प्रभुः।।
(भागवत पुराण 9.14.2)
भावार्थ:
चंद्रमा महर्षि अत्रि के पुत्र थे, जिन्होंने अपनी कृपा से त्रिलोक पर शासन किया।
चंद्रमा के वंशज
1. बुध
चंद्रमा के पुत्र बुध हुए, जो ज्ञान, तपस्या, और धर्म में निपुण थे।
बुध का विवाह पृथ्वी की पुत्री इला से हुआ।
श्लोक:
चन्द्रस्याभूत्सुतः श्रीमान्बुधो धर्मविशारदः।
स राजा इला देव्यां सुतं विदुरशेषितम्।।
(भागवत पुराण 9.14.3)
भावार्थ:
चंद्रमा के पुत्र बुध धर्म और ज्ञान में श्रेष्ठ थे, और उनका विवाह इला से हुआ।
2. पुरुरवा
- बुध और इला के पुत्र पुरुरवा हुए।
- पुरुरवा राजा धर्म और सौंदर्य में अतुलनीय थे।
- उनका विवाह स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी से हुआ।
श्लोक:
पुरुरवा उर्वशीश्च संयोगो देवलोकतः।
तस्य पुत्राः क्षत्रियाश्चत्रः प्रजा धर्मसंहिताः।।
(भागवत पुराण 9.14.6)
भावार्थ:
पुरुरवा ने उर्वशी से विवाह किया और उनके वंश में कई धर्मनिष्ठ क्षत्रिय राजा हुए।
3. आयु और उनके वंशज
- पुरुरवा के पुत्र आयु हुए।
- आयु के वंश में अनेक प्रसिद्ध राजा हुए, जिनमें नहुष और ययाति प्रमुख हैं।
ययाति और उनके पुत्रों की कथा
ययाति चंद्रवंश के महान राजा थे। उनका विवाह असुरराज शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और शर्याति की पुत्री शर्मिष्ठा से हुआ। ययाति के पाँच पुत्र हुए:
1. यदु
2. तुर्वसु
3. द्रुहु
4. अनु
5. पुरु
ययाति का श्राप और पुरु का धर्म
- ययाति को शुक्राचार्य ने भोगवृत्ति के कारण वृद्ध होने का श्राप दिया।
- ययाति ने अपने पुत्रों से युवावस्था मांगी। केवल पुरु ने अपने पिता को अपनी युवावस्था दी।
- इस कृत्य से ययाति ने पुरु को अपना उत्तराधिकारी बनाया।
श्लोक:
पुरुर्वंशधरः श्रेष्ठः पितृभक्तो नराधिपः।
ययातिः श्रापमोक्षाय यौवनं दत्तवान्परम्।।
(भागवत पुराण 9.18.41)
भावार्थ:
पुरु ने अपने पिता की सेवा के लिए अपनी युवावस्था दे दी और ययाति ने उन्हें वंश का उत्तराधिकारी बनाया।
चंद्रवंश की शाखाएँ
1. यदु वंश
- यदु, ययाति के सबसे बड़े पुत्र थे।
- यदु वंश में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।
- यदु वंश में वृष्णि, शूरसेन, और सात्वत जैसे पराक्रमी राजा हुए।
श्लोक:
यदुवंशे वृष्णिसुते कृष्णो भगवान्स्वयम्।
धर्मं स्थापयते लोकं म्लेच्छानां च विनाशनम्।।
(भागवत पुराण 9.24.48)
भावार्थ:
यदु वंश में भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लेकर धर्म की स्थापना की और अधर्म का नाश किया।
2. पुरु वंश
- पुरु ययाति के सबसे धर्मप्रिय पुत्र थे।
- उनका वंश कुरु वंश के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
- कुरु वंश में पांडव और कौरव जैसे महापुरुष हुए।
श्लोक:
पुरुवंशे महायशाः पाण्डवाः कुरवश्चता।
धर्मस्थापनकर्तारः धर्मराजेन पालिताः।।
(भागवत पुराण 9.22.11)
भावार्थ:
पुरु वंश के राजा धर्मप्रिय थे, जिनमें पांडव और कौरव प्रसिद्ध हुए।
3. अन्य शाखाएँ
1. तुर्वसु वंश: तुर्वसु के वंशज दक्षिण भारत में बस गए।
2. द्रुहु वंश: द्रुहु के वंशज पश्चिम भारत और मध्य एशिया में बसे।
3. अनु वंश: अनु के वंशज उत्तर-पश्चिमी भारत में बसे।
चंद्रवंश की विशेषताएँ
1. धर्म और भक्ति का पालन:
चंद्रवंश के राजा धर्म और भक्ति के प्रतीक थे।
2. भगवान श्रीकृष्ण का जन्म:
यदु वंश में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, जिन्होंने धर्म की पुनः स्थापना की।
3. महाभारत और कुरु वंश:
पुरु वंश से ही कुरु वंश का विस्तार हुआ, जिसमें महाभारत का युद्ध हुआ।
4. शाखाओं का विस्तार:
चंद्रवंश से कई शाखाएँ उत्पन्न हुईं, जिन्होंने भारत और अन्य क्षेत्रों में संस्कृति का प्रचार किया।
कथा का संदेश
1. धर्म का पालन:
चंद्रवंश के राजा धर्म और कर्तव्य के पालन में आदर्श थे।
2. त्याग का महत्व:
ययाति और पुरु की कथा यह सिखाती है कि त्याग और सेवा से महानता प्राप्त होती है।
3. अधर्म का नाश:
यदु वंश में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म यह दर्शाता है कि अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना निश्चित है।
निष्कर्ष
चंद्रवंश भागवत पुराण में धर्म, त्याग, और भक्ति का प्रतीक है। इस वंश में पुरु, यदु, और कुरु जैसे महान राजा हुए, जिन्होंने भारत की संस्कृति और धर्म को उच्चतम शिखर पर पहुँचाया। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म इसी वंश में हुआ, जिससे यह वंश और भी पवित्र और गौरवशाली बन गया।
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