श्लोक:
यः स्वानुभावमखिलश्रुतिसारमेकम्
अध्यात्मदीपम् अतितितीर्षतां तमोऽन्धम्।
संसारिणां करुणयाऽऽह पुराणगुह्यं
तं व्याससूनुमुपयामि गुरुं मुनीनाम्॥(भागवत 1.2.3)
संदर्भ:
यह श्लोक श्रीमद्भागवत महापुराण के प्रारंभिक भाग का तीसरा श्लोक है। इसमें श्री शुकदेव मुनि की महिमा का वर्णन किया गया है। इस श्लोक में महर्षि वेदव्यास के पुत्र शुकदेव जी को सभी मुनियों के गुरु के रूप में स्वीकार किया गया है। वेदांत और भागवत की गहन शिक्षा प्रदान करने वाले शुकदेव मुनि को यहाँ श्रद्धा और नमन व्यक्त किया गया है।
शब्दार्थ:
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यः:
- जो (शुकदेव मुनि)।
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स्वानुभावम्:
- अपने अनुभव द्वारा।
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अखिलश्रुतिसारम्:
- समस्त श्रुतियों (वेदों) का सार।
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एकम्:
- एकमात्र अद्वितीय।
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अध्यात्मदीपम्:
- आत्मज्ञान का दीपक।
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अतितितीर्षताम्:
- जो लोग अज्ञान (तमस) के अंधकार को पार करना चाहते हैं।
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तमोऽन्धम्:
- अज्ञान रूपी अंधकार।
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संसारिणाम्:
- संसार में फंसे हुए जीवों के लिए।
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करुणया:
- करुणा के कारण।
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आह:
- कहा, उपदेश दिया।
- पुराणगुह्यम्:
- पुराणों का रहस्य।
- तं व्याससूनुम्:
- वेदव्यास के पुत्र।
- उपयामि:
- मैं शरण लेता हूँ।
- गुरुम्:
- गुरु।
- मुनीनाम्:
- सभी मुनियों में श्रेष्ठ।
भावार्थ:
प्रथम पंक्ति:
यः स्वानुभावमखिलश्रुतिसारमेकम्।
- श्री शुकदेव मुनि, जो वेदों के समस्त सार (वेदांत) को अपने अनुभव द्वारा जानते थे।
- वे अद्वितीय हैं, क्योंकि उन्होंने आत्मसाक्षात्कार किया और स्वयं ब्रह्मस्वरूप हैं।
द्वितीय पंक्ति:
अध्यात्मदीपम् अतितितीर्षतां तमोऽन्धम्।
- वे आत्मज्ञान का ऐसा दीपक हैं, जो अज्ञान (तमस) के अंधकार को मिटाने और पार करने के इच्छुक साधकों को मार्ग दिखाते हैं।
- यह अज्ञान रूपी अंधकार संसार के मोह, दुख, और भ्रम का प्रतीक है।
तृतीय पंक्ति:
संसारिणां करुणयाऽऽह पुराणगुह्यं।
- संसार में फंसे जीवों पर करुणा करके, उन्होंने भागवत पुराण जैसे गूढ़ और पवित्र ग्रंथ का उपदेश दिया।
- इस उपदेश ने उन्हें संसार से मुक्त होने का मार्ग दिखाया।
चतुर्थ पंक्ति:
तं व्याससूनुमुपयामि गुरुं मुनीनाम्।
- ऐसे श्री शुकदेव मुनि, जो सभी मुनियों के गुरु हैं और महर्षि वेदव्यास के पुत्र हैं, उन्हें मैं अपना गुरु मानकर उनकी शरण ग्रहण करता हूँ।
विशेषताएँ:
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स्वानुभाव:
- शुकदेव मुनि केवल वेदों के सिद्धांतों को जानते भर नहीं थे, बल्कि उन्होंने स्वयं ब्रह्म का अनुभव किया था।
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अध्यात्मदीप:
- उनका ज्ञान आत्मा और परमात्मा के ज्ञान का प्रकाश है, जो अज्ञान और मोह को दूर करता है।
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करुणा:
- शुकदेव मुनि ने संसार के पीड़ित जीवों पर करुणा करके उन्हें मोक्ष का मार्ग बताया।
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पुराणगुह्यम:
- भागवत जैसे गूढ़ रहस्य वाले पुराण को सरल भाषा में राजा परीक्षित को सुनाया और समस्त मानवता को आत्मज्ञान प्रदान किया।
प्रेरणा:
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ज्ञान और अनुभव:
- शुकदेव मुनि के जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि सच्चा ज्ञान वह है जो अनुभव और साक्षात्कार पर आधारित हो।
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करुणा:
- उनके द्वारा भागवत कथा का उपदेश यह दिखाता है कि ज्ञानी व्यक्ति अपनी करुणा के कारण अन्य लोगों को भी मुक्ति का मार्ग दिखाता है।
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अध्यात्म और वैराग्य:
- यह श्लोक आत्मज्ञान और वैराग्य की महत्ता को व्यक्त करता है।
उपसंहार:
श्री शुकदेव मुनि न केवल महर्षि वेदव्यास के पुत्र थे, बल्कि वे सभी मुनियों के गुरु थे। उनके द्वारा उपदेशित भागवत पुराण ने अज्ञान के अंधकार में फंसे प्राणियों को आत्मज्ञान का मार्ग दिखाया। यह श्लोक उनके ज्ञान, करुणा, और वैराग्य की प्रशंसा करता है और उन्हें आदर्श गुरु के रूप में प्रस्तुत करता है।
🙏 श्री शुकदेव मुनि को शत-शत नमन।
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