मन्त्र 12 (ईशावास्य उपनिषद) मूल पाठ अन्धं तमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते। ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायां रताः।
मन्त्र 12 (ईशावास्य उपनिषद) |
मन्त्र 12 (ईशावास्य उपनिषद)
मूल पाठ
अन्धं तमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते।
ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायां रताः।
शब्दार्थ
- अन्धं तमः: घोर अंधकार।
- प्रविशन्ति: प्रवेश करते हैं।
- ये: जो।
- अविद्याम्: अज्ञान (कर्मकांड या केवल भौतिक ज्ञान)।
- उपासते: उपासना करते हैं या पालन करते हैं।
- ततः भूयः इव: उससे भी अधिक गहरा।
- ते तमः: वे अंधकार।
- यः: जो।
- विद्यायाम्: ज्ञान (आध्यात्मिक ज्ञान)।
- रताः: लीन रहते हैं।
अनुवाद
जो लोग अविद्या (अज्ञान) का पालन करते हैं, वे अंधकार में प्रवेश करते हैं। लेकिन जो केवल विद्या (आध्यात्मिक ज्ञान) में लीन रहते हैं, वे उससे भी गहरे अंधकार में चले जाते हैं।
व्याख्या
यह मन्त्र विद्या (ज्ञान) और अविद्या (कर्म) के असंतुलित अभ्यास और उनके परिणामों पर प्रकाश डालता है।
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अविद्या का अर्थ:अविद्या से तात्पर्य केवल कर्मकांड, भौतिक गतिविधियाँ, या संसारिक कार्यकलापों से है।
- जो लोग केवल भौतिक ज्ञान और कर्मों तक सीमित रहते हैं, वे आत्मा के सत्य को नहीं जान पाते।
- यह अज्ञान उन्हें अंधकार (मोह, लोभ, और भटकाव) में डालता है।
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विद्या का अर्थ:विद्या से तात्पर्य आध्यात्मिक ज्ञान और ब्रह्म की खोज है।
- लेकिन जो लोग केवल आत्मज्ञान में ही लीन रहते हैं और संसारिक कर्तव्यों की अनदेखी करते हैं, वे भी गहरे अंधकार (असंतुलन और समाज से विमुखता) में चले जाते हैं।
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असंतुलन का परिणाम:
- केवल कर्म (अविद्या) से आत्मा का साक्षात्कार नहीं होता।
- केवल ज्ञान (विद्या) में लीन रहने से संसारिक जीवन का संतुलन बिगड़ जाता है।
- दोनों का असंतुलित पालन व्यक्ति को अंधकार में डालता है।
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संतुलन की आवश्यकता:इस मन्त्र में विद्या और अविद्या दोनों के महत्व को समझने और उन्हें संतुलित रूप से अपनाने पर जोर दिया गया है।
आध्यात्मिक संदेश
- ज्ञान और कर्म का संतुलन:जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक पहलुओं के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है।
- एकांगी दृष्टिकोण का त्याग:केवल भौतिकता या केवल आध्यात्मिकता जीवन को अधूरा बनाती है।
- पूर्णता का मार्ग:विद्या और अविद्या दोनों का सामंजस्य जीवन को पूर्ण और सार्थक बनाता है।
आधुनिक संदर्भ में उपयोग
- यह मन्त्र सिखाता है कि जीवन केवल भौतिक सुखों या केवल आध्यात्मिक साधना तक सीमित नहीं होना चाहिए।
- व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए आत्मा के सत्य को जानने की कोशिश करनी चाहिए।
- जीवन का उद्देश्य संतुलित रूप से संसार और आत्मा दोनों की ओर ध्यान देना है।
विशेष बात
यह मन्त्र हमें आत्मज्ञान और कर्म के महत्व को समझने और उनके बीच सामंजस्य स्थापित करने की प्रेरणा देता है। संतुलन ही जीवन को अंधकार (अज्ञान और भ्रम) से मुक्त कर सकता है।
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