उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 11 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण
उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 11 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण |
संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत पाठ:
सीता:
यद्भवतु तद्भवतु। यथा भगवत्याज्ञापयति।
(इति ससंभ्रमं निष्क्रान्ता।)
(ततः प्रविशति भूम्यां निपतितः सास्रया सीतया स्पृश्यमानः साह्लादोच्छ्वासो रामः।)
सीता (किञ्चित्सहर्षम्):
जाने पुनः प्रत्यागतमिव जीवितं त्रैलोक्यस्य।
रामः:
हन्त भोः! किमेतत्?
आश्च्योतनं नु हरिचन्दनपल्लवानां
निष्पीडितेन्दुकरकन्दलजो नु सेकः।
आतप्तजीवितमनःपरितर्पणोऽयं
सञ्जीवनौषधिरसो दि नु प्रसक्तः॥ ११ ॥
हिन्दी अनुवाद:
सीता:
जो होना है, वह होगा। जैसा भगवती ने आज्ञा दी है, मैं वैसा ही करूँगी।
(यह कहते हुए सीता शीघ्र मंच से बाहर चली जाती हैं।)
(इसके बाद राम मंच पर प्रवेश करते हैं, जो जमीन पर गिरे हुए हैं। सीता की आँसू भरी स्पर्शमय सेवा से वे गहरी खुशी से श्वास लेते हुए जागते हैं।)
सीता (कुछ प्रसन्नता से):
मुझे ऐसा प्रतीत होता है जैसे त्रैलोक्य (तीनों लोकों) का जीवन फिर से लौट आया हो।
राम:
अरे! यह क्या हो रहा है?
क्या यह हरिचन्दन के पत्तों का झरता हुआ रस है,
या चंद्रमा की किरणों से निकला कोई अमृत-स्राव?
क्या यह मेरे जले हुए जीवन और मन को तृप्त करने वाला
सञ्जीवनी औषधि का रस है जो मुझ पर छिड़का गया है?
शब्द-विश्लेषण:
-
ससंभ्रमं -
- स - साथ;
- संभ्रम - घबराहट।
- अर्थ: घबराहट के साथ।
-
साह्लादोच्छ्वासः -
- साह्लाद - आनंद के साथ;
- उच्छ्वास - श्वास लेना।
- अर्थ: आनंद के साथ श्वास।
-
त्रैलोक्यस्य -
- त्रि - तीन;
- लोक्य - लोक (दुनिया)।
- अर्थ: तीनों लोकों का।
-
आश्च्योतनं -
- आश्च्यु - टपकना;
- तनं - फैलाव।
- अर्थ: टपकता हुआ तरल।
-
हरिचन्दनपल्लवानां -
- हरिचन्दन - सुगंधित चन्दन;
- पल्लव - पत्ता।
- अर्थ: हरिचन्दन के पत्ते।
-
निष्पीडितेन्दुकरकन्दलजः -
- निष्पीडित - निचोड़ा हुआ;
- इन्दुकर - चंद्रमा की किरणें;
- कन्दलजः - रस।
- अर्थ: चंद्रमा की किरणों से निकला रस।
-
सञ्जीवनौषधिरसो -
- सञ्जीवन - पुनः जीवित करने वाला;
- औषधि - औषध;
- रसः - तरल।
- अर्थ: सञ्जीवनी औषध का रस।
-
प्रसक्तः -
- प्रसक्त - छिड़का गया।
- अर्थ: फैलाया गया।
व्याख्या:
यह अंश राम के पुनः जीवन और सीता के स्नेह व प्रेम की शक्ति को दर्शाता है। सीता का करुणामय स्पर्श राम के लिए सञ्जीवनी के समान है। राम यह सोचने लगते हैं कि उनके जीवन में लौटने का कारण क्या है—हरिचन्दन की शीतलता, चंद्रमा की अमृतमयी किरणें, या सीता के प्रेम और समर्पण की ऊर्जा। इस अंश में प्रेम और करुणा की शक्ति को अत्यंत सुंदर तरीके से व्यक्त किया गया है।