मन्त्र 10 (ईशावास्य उपनिषद) मूल पाठ अन्यदेवाहुर्विद्यया अन्यदाहुरविद्यया। इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचक्षिरे।
मन्त्र 10 (ईशावास्य उपनिषद) |
मन्त्र 10 (ईशावास्य उपनिषद)
मूल पाठ
शब्दार्थ
- अन्यत्: भिन्न।
- देव: कहा गया।
- विद्यया: विद्या (आध्यात्मिक ज्ञान) के द्वारा।
- अविद्यया: अविद्या (कर्मकांड या भौतिक ज्ञान) के द्वारा।
- इति: ऐसा।
- शुश्रुम: हमने सुना है।
- धीराणाम्: ज्ञानी लोगों से।
- यः: जो।
- नः: हमें।
- तत्: वह।
- विचचक्षिरे: स्पष्ट किया।
अनुवाद
विद्या (ज्ञान) से कुछ एक प्रकार का फल प्राप्त होता है और अविद्या (कर्म) से कुछ और प्रकार का। ऐसा हमने ज्ञानी लोगों से सुना है जिन्होंने हमें यह स्पष्ट किया है।
व्याख्या
यह मन्त्र विद्या और अविद्या के विभिन्न फलों और उनके उद्देश्यों के बारे में जानकारी देता है।
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विद्या और अविद्या का अंतर:
- विद्या: इसका अर्थ है आत्मज्ञान, ध्यान, और ब्रह्म को जानने की प्रक्रिया।
- अविद्या: इसका अर्थ है कर्मकांड, भौतिक कर्तव्य, और सांसारिक जीवन।
दोनों ही अलग-अलग मार्ग हैं और उनके फल भी अलग हैं।
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दोनों का महत्व:
- अविद्या से व्यक्ति संसार में अपने कर्तव्यों को निभाता है और अपने जीवन को व्यवस्थित करता है।
- विद्या से व्यक्ति आत्मा और ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त करता है और मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।
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ज्ञानी लोगों का उपदेश:इस मन्त्र में यह स्वीकार किया गया है कि विद्या और अविद्या के संबंध में ज्ञानी लोगों ने स्पष्ट किया है कि दोनों का अलग-अलग महत्व है और उन्हें संतुलित करके जीवन को सफल बनाया जा सकता है।
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संपूर्णता का सिद्धांत:केवल विद्या (ज्ञान) या केवल अविद्या (कर्म) जीवन को पूर्णता नहीं देते। दोनों का समन्वय जीवन में संतुलन लाता है।
आध्यात्मिक संदेश
- ज्ञान और कर्म का भेद: यह मन्त्र ज्ञान और कर्म के भिन्न मार्गों और उनके अलग-अलग फलों को समझने का आग्रह करता है।
- दोनों का संतुलन: यह स्पष्ट करता है कि दोनों का संयुक्त पालन ही व्यक्ति को पूर्णता की ओर ले जाता है।
- ज्ञानी का दृष्टिकोण: जीवन में विद्या और अविद्या दोनों के महत्व को समझने के लिए ज्ञानी लोगों की शिक्षाओं का पालन करना चाहिए।
आधुनिक संदर्भ में उपयोग
- यह मन्त्र सिखाता है कि केवल भौतिक सफलता (कर्म) या केवल आत्मिक ध्यान (ज्ञान) पर्याप्त नहीं है। जीवन में दोनों का संतुलन आवश्यक है।
- यह दृष्टिकोण व्यक्ति को समाज और आत्मा, दोनों के प्रति जिम्मेदारी निभाने की प्रेरणा देता है।
विशेष बात
यह मन्त्र हमें विद्या और अविद्या के बीच संतुलन बनाए रखने का मार्गदर्शन करता है। जीवन को सही तरीके से जीने के लिए ज्ञान और कर्म दोनों का समन्वय आवश्यक है।
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