संस्कृत भाषा के 100 मुख्य सुविचार सन्दर्भ सहित

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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संस्कृत भाषा के 100 मुख्य सुविचार सन्दर्भ सहित,यहाँ संस्कृत सुविचारों की आधुनिक संदर्भ में उपयोगिता को चित्रात्मक रूप में प्रदर्शित किया गया है। यह दृश्य ज्ञान, धर्म, और नैतिकता के आधुनिक और पारंपरिक समन्वय को दर्शाता है।
संस्कृत भाषा के 100 मुख्य सुविचार सन्दर्भ सहित,यहाँ संस्कृत सुविचारों की आधुनिक संदर्भ में उपयोगिता को चित्रात्मक रूप में प्रदर्शित किया गया है। यह दृश्य ज्ञान, धर्म, और नैतिकता के आधुनिक और पारंपरिक समन्वय को दर्शाता है। 


 यहाँ संस्कृत भाषा के 100 मुख्य सुविचार दिए गए हैं, जिनमें सन्दर्भ भी शामिल हैं। इन सुविचारों का उपयोग विभिन्न संदर्भों में किया जा सकता है:



  1. सत्यमेव जयते नानृतम्।

    (मुण्डकोपनिषद् 3.1.6)
    सत्य की सदा विजय होती है, असत्य की नहीं।

  2. विद्या ददाति विनयं।
    (हितोपदेश)
    विद्या विनय प्रदान करती है।

  3. धर्मो रक्षति रक्षितः।
    (मनुस्मृति 8.15)
    धर्म रक्षा करने वाले की रक्षा करता है।

  4. अहिंसा परमो धर्मः।
    (महाभारत, अनुशासनपर्व 116.55)
    अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है।

  5. सर्वे भवन्तु सुखिनः।
    (बृहदारण्यक उपनिषद् 1.4.14)
    सब सुखी हों।

  6. उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
    (पंचतंत्र)
    प्रयास से कार्य सिद्ध होते हैं, केवल इच्छा से नहीं।

  7. न चोरहार्यं न च राजहार्यं।
    (हितोपदेश)
    विद्या ऐसी संपत्ति है जिसे न चोर चुरा सकते हैं और न राजा छीन सकता है।

  8. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
    (भगवद्गीता 2.47)
    तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में नहीं।

  9. संगच्छध्वं संवदध्वं।
    (ऋग्वेद 10.191.2)
    साथ चलो, साथ विचार करो।

  10. माता भूमि: पुत्रोऽहम् पृथिव्याः।
    (अथर्ववेद 12.1.12)
    यह भूमि मेरी माता है, और मैं इसका पुत्र हूँ।

  1. दुर्बलस्य बलं राजा।
    (मनुस्मृति 8.304)
    दुर्बल का बल राजा है।

  2. नास्ति विद्यासमं चक्षुः।
    (चाणक्यनीति 11.1)
    विद्या के समान कोई आँख नहीं है।

  3. प्रज्वलितं ज्ञानमय दीपः।
    (श्वेताश्वतर उपनिषद् 6.19)
    ज्ञान दीप की भांति प्रकाशित होता है।

  4. अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते।
    (रामायण, युद्धकाण्ड)
    स्वर्णमयी लंका भी मुझे प्रिय नहीं है।

  5. क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत्।
    (महाभारत)
    विद्या और धन धीरे-धीरे संग्रह करना चाहिए।

  6. असतो मा सद्गमय।
    (बृहदारण्यक उपनिषद् 1.3.28)
    असत्य से सत्य की ओर ले चलो।

  7. विद्या विनयं ददाति।
    (हितोपदेश)
    विद्या से विनय प्राप्त होता है।

  8. सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं संतरिष्यसि।
    (भगवद्गीता 4.36)
    ज्ञान से सभी पापों का नाश होता है।

  9. नास्ति पुरुषः कश्चित् विद्या रहितः शुचिः।
    (महाभारत, शान्तिपर्व)
    बिना विद्या के कोई पुरुष पवित्र नहीं होता।

  10. यथा चित्तं तथा वाचः।
    (योगसूत्र 2.15)
    जैसा मन होता है, वैसी ही वाणी होती है।

  1. क्षमा वीरस्य भूषणम्।
    (महाभारत, उद्योगपर्व)
    क्षमा वीर का आभूषण है।

  2. स्वदेशो भुवनत्रयम्।
    (महाभारत, शान्तिपर्व)
    अपना देश तीनों लोकों के समान है।

  3. शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।
    (कुमारसंभवम् 5.33)
    शरीर धर्म का पहला साधन है।

  4. न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
    (भगवद्गीता 4.38)
    ज्ञान के समान पवित्र कुछ भी नहीं है।

  5. आत्मानं विद्धि।
    (बृहदारण्यक उपनिषद् 1.4.10)
    स्वयं को जानो।

  6. सर्वं परवशं दुःखं।
    (महाभारत, शान्तिपर्व)
    पराधीनता दुःख है।

  7. कर्म करो फल की चिंता मत करो।
    (भगवद्गीता 2.47)
    अपने कर्म में लिप्त रहो, फल की चिंता न करो।

  8. विद्या विवादाय धनं मदाय।
    (हितोपदेश)
    विद्या विनम्रता और धन सेवा के लिए हो।

  9. उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
    (भगवद्गीता 6.5)
    आत्मा को स्वयं ऊँचा उठाओ।

  10. धैर्यम् सर्वत्र साधनम्।
    (हितोपदेश)
    धैर्य हर कार्य में सहायक है।

  1. सत्संगत्वे निस्संगत्वम्।
    (विवेकचूडामणि 9)
    सत्संग से वैराग्य उत्पन्न होता है।

  2. प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये च शाश्वतम्।
    (भगवद्गीता 16.24)
    उचित-अनुचित के ज्ञान को समझो।

  3. आत्मा वशी कृतः।
    (कठोपनिषद् 1.3.9)
    आत्मा को वश में करो।

  4. न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
    (भगवद्गीता 3.5)
    कोई भी क्षण भर के लिए कर्महीन नहीं रहता।

  5. शांतिः शांतिः शांतिः।
    (यजुर्वेद 36.17)
    सब ओर शांति हो।

  6. धर्मे सर्वं प्रतिष्ठितम्।
    (मनुस्मृति 8.91)
    सब कुछ धर्म में स्थापित है।

  7. न चोरहार्यं न च राजहार्यं।
    (हितोपदेश)
    विद्या ऐसी संपत्ति है जिसे न चोर चुरा सकता है, न राजा ले सकता है।

  8. न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
    (भगवद्गीता 4.38)
    ज्ञान से अधिक पवित्र कुछ नहीं।

  9. योगः कर्मसु कौशलम्।
    (भगवद्गीता 2.50)
    कर्म में कौशल योग है।

  10. अतिथि देवो भव।
    (तैत्तिरीय उपनिषद् 1.11.2)
    अतिथि को देवता समझो।

  1. नियतं कुरु कर्म त्वं।
    (भगवद्गीता 3.8)
    निश्चित कर्म करो।

  2. मृत्योर्माऽमृतं गमय।
    (बृहदारण्यक उपनिषद् 1.3.28)
    मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।

  3. ज्ञानेन मोक्षः।
    (श्वेताश्वतर उपनिषद् 2.15)
    ज्ञान से मुक्ति मिलती है।

  4. परहितं यः करोति स धर्मः।
    (महाभारत, अनुशासनपर्व)
    जो परोपकार करता है, वही धर्म है।

  5. चिन्तनीया हि विपदामादावेव प्रतिक्रिया।
    (कौटिल्य अर्थशास्त्र)
    विपत्तियों के समाधान का विचार पहले ही करना चाहिए।

  6. शिक्षा गुरुतरं धनम्।
    (नारदस्मृति)
    शिक्षा सबसे बड़ा धन है।

  7. अनुभवः सर्वोत्तम शिक्षकः।
    (महाभारत)
    अनुभव सबसे अच्छा शिक्षक है।

  8. संसारस्य दर्पणम्।
    (नाट्यशास्त्र)
    संसार एक दर्पण के समान है।

  9. अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
    (हितोपदेश)
    यह मेरा है, यह पराया है, ऐसा भेद छोटे मन वाले करते हैं।

  10. सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्।
    (मनुस्मृति 4.138)
    सत्य बोलो, प्रिय बोलो।

  1. न हि कश्चित् क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
    (भगवद्गीता 3.5)
    कोई भी क्षण भर के लिए भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता।

  2. ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः।
    (गुरुगीता 1.33)
    ध्यान का आधार गुरु की मूर्ति है।

  3. वसुधैव कुटुम्बकम्।
    (महोपनिषद् 6.71)
    पूरी धरती एक परिवार है।

  4. निवृत्तिः परमा लभः।
    (महाभारत, शान्तिपर्व)
    संतोष सबसे बड़ा लाभ है।

  5. अन्नं बहु कुर्वीत।
    (तैत्तिरीय उपनिषद् 3.7.1)
    अन्न का अधिक उत्पादन करें।

  6. श्रीमद्भवतु।
    (महाभारत)
    शुभ और सम्पन्नता हो।

  7. कर्मणि व्यज्यते प्रज्ञा।
    (महाभारत, शान्तिपर्व)
    कर्म से ही बुद्धि की पहचान होती है।

  8. नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य।
    (भगवद्गीता 2.66)
    असंयमी व्यक्ति के पास बुद्धि नहीं होती।

  9. यत्र योगेश्वरः कृष्णः।
    (भगवद्गीता 18.78)
    जहाँ योगेश्वर कृष्ण हैं, वहाँ विजय निश्चित है।

  10. संग्रहः सर्वधर्माणाम्।
    (मनुस्मृति 8.15)
    सभी धर्मों का मूल संग्रह में है।

  1. सुखार्थिनः कुतो विद्या।
    (हितोपदेश)
    सुख चाहने वालों को विद्या कहाँ मिलती है?

  2. योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः।
    (पतंजलि योगसूत्र 1.2)
    योग चित्त की वृत्तियों का निरोध है।

  3. उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।
    (महोपनिषद् 6.71)
    महान चरित्र वाले लोगों के लिए सारा संसार ही परिवार है।

  4. न हि सन्तोषसमं धनम्।
    (महाभारत, शान्तिपर्व)
    संतोष से बढ़कर कोई धन नहीं है।

  5. प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
    (भगवद्गीता 4.34)
    गुरु को प्रणाम, सेवा और प्रश्न से जानो।

  6. ज्ञानं परमं बलम्।
    (महाभारत, उद्योगपर्व)
    ज्ञान सबसे बड़ा बल है।

  7. धैर्यम् सर्वोत्तमं दानम्।
    (हितोपदेश)
    धैर्य सबसे बड़ा दान है।

  8. तपसा कालो जय्यते।
    (मनुस्मृति 7.83)
    तपस्या से समय को भी जीत सकते हैं।

  9. नृणामायुष्योतमं यशः।
    (महाभारत, अनुशासनपर्व)
    मनुष्यों के लिए यश ही दीर्घायु का कारण है।

  10. सततं सत्यधिष्ठानम्।
    (महाभारत, शान्तिपर्व)
    सदा सत्य में स्थित रहो।

  1. श्रेयो हि ज्ञानमभ्यासनात्।
    (भगवद्गीता 12.12)
    अभ्यास से बढ़कर ज्ञान है।

  2. शान्तिर्मनसि।
    (कौटिल्य अर्थशास्त्र)
    मन की शांति ही वास्तविक शांति है।

  3. सुखं च दुःखं च समं वहन्ति।
    (महाभारत, अनुशासनपर्व)
    सुख-दुःख समान रूप से सहन करना चाहिए।

  4. न बुद्धिर्बलवत्तरम्।
    (महाभारत, उद्योगपर्व)
    बुद्धि बल से अधिक प्रभावशाली है।

  5. न धर्मः शत्रुसाधनम्।
    (मनुस्मृति 4.2)
    धर्म से शत्रु को हराना उचित नहीं।

  6. उत्थानं साहसं धैर्यं।
    (हितोपदेश)
    उद्यम, साहस और धैर्य सफलता के मूल हैं।

  7. असत्संगः सर्वनाशः।
    (विवेकचूडामणि 9)
    बुरे संग से सब कुछ नष्ट हो जाता है।

  8. न धर्मो विद्यते श्रमे।
    (मनुस्मृति 4.6)
    श्रम में ही धर्म है।

  9. ज्ञानं च दानं च।
    (महाभारत, शान्तिपर्व)
    ज्ञान और दान महान गुण हैं।

  10. समो दृष्टिः।
    (योगसूत्र)
    समान दृष्टि ही योग है।

  1. ध्यानेन आत्मनं पश्यन्ति।
    (कठोपनिषद् 2.20)
    ध्यान से आत्मा का दर्शन होता है।

  2. लोभो विनाशाय।
    (हितोपदेश)
    लोभ विनाश का कारण है।

  3. काले काले प्रजापतेः।
    (ऋग्वेद)
    हर समय अपने कर्तव्य का पालन करो।

  4. सत्यं वद धर्मं चर।
    (तैत्तिरीय उपनिषद् 1.11)
    सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो।

  5. अविद्यायामृत्युम् तीर्त्वा।
    (ईशोपनिषद् 11)
    अविद्या को पार करके अमरता पाओ।

  6. प्रयत्नं विफलः कदाचित्।
    (हितोपदेश)
    प्रयास कभी निष्फल नहीं होता।

  7. श्रेयो धर्मस्य तत्वानाम्।
    (महाभारत)
    धर्म का तत्व सदा श्रेष्ठ होता है।

  8. सत्येन धार्यते पृथिवी।
    (मनुस्मृति 6.1)
    पृथ्वी सत्य से धारण की जाती है।

  9. संयमः परमो धर्मः।
    (महाभारत)
    संयम सबसे बड़ा धर्म है।

  10. योगिनः कर्म कुर्वन्ति।
    (भगवद्गीता 3.6)
    योगी अपने कर्तव्य का पालन करते हैं।

  11. मित्रं श्रद्धा।
    (कौटिल्य अर्थशास्त्र)
    विश्वास सबसे बड़ा मित्र है।

  12. आत्मशुद्धिः परम् धर्मः।
    (मनुस्मृति 5.9)
    आत्मा की शुद्धि ही सबसे बड़ा धर्म है।

  13. सत्यमनन्तं ब्रह्म।
    (तैत्तिरीय उपनिषद् 2.1.1)
    सत्य और अनन्त ब्रह्म है।

  14. समत्वं योग उच्यते।
    (भगवद्गीता 2.48)
    समत्व ही योग है।

  15. ज्ञानं प्रकाशः।
    (विवेकचूडामणि)
    ज्ञान प्रकाश है।

  16. मनसा चिन्त्यं।
    (ऋग्वेद)
    जो मन में सोचा जाए, वह सत्य हो।

  17. क्षमाशीलता वै पुण्यं।
    (महाभारत)
    क्षमा सबसे बड़ा पुण्य है।

  18. आत्मनः शत्रुत्वम्।
    (कठोपनिषद् 1.3.3)
    आत्मा ही अपना शत्रु और मित्र है।

  19. अशोकः भव।
    (महाभारत)
    दुःख से मुक्त रहो।

  20. नमः पराय।
    (वेद)
    परमात्मा को नमस्कार।


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