भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 9 का सार

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 9 में भीष्म पितामह की कथा का वर्णन है। इस अध्याय में भीष्म पितामह के जीवन के अंतिम क्षणों, भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति, और धर्मराज युधिष्ठिर को दिए गए उनके उपदेशों का विस्तृत वर्णन है। यह अध्याय धर्म, भक्ति, और भगवान श्रीकृष्ण की महिमा को उजागर करता है।

अध्याय 9 का सारांश:

1. भीष्म पितामह का अंतिम समय:

  • महाभारत युद्ध के बाद, भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटे हुए थे। उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने तक देह त्याग नहीं किया।
  • धर्मराज युधिष्ठिर, श्रीकृष्ण, और पांडव उनके दर्शन के लिए गए। सभी ने उनके ज्ञान और धर्म का स्मरण किया।

2. श्रीकृष्ण का भीष्म पितामह को दर्शन:

  • भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं भीष्म पितामह के पास जाकर उन्हें सांत्वना दी।
  • भीष्म पितामह ने भगवान के दर्शन पाकर अपने मन को शांत किया और भगवान की स्तुति की।

3. भीष्म स्तुति:

  • भीष्म पितामह ने भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का गुणगान किया। उनकी स्तुति के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
क) भगवान का अनंत स्वरूप: 
  • भगवान श्रीकृष्ण अनादि, अनंत, और संपूर्ण सृष्टि के कर्ता हैं।
  • उन्होंने भगवान को "नारायण" और "जगत के पालनकर्ता" के रूप में वर्णित किया।
ख) गीता का उपदेश:
  • भगवान श्रीकृष्ण अनादि, अनंत, और संपूर्ण सृष्टि के कर्ता हैं।
  • उन्होंने भगवान को "नारायण" और "जगत के पालनकर्ता" के रूप में वर्णित किया।
  • भीष्म पितामह ने युद्ध के समय श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए गीता के उपदेश की महिमा का वर्णन किया।

ग) भक्ति का महत्त्व:

  • उन्होंने कहा कि भगवान की भक्ति से ही मनुष्य संसार के बंधनों से मुक्त हो सकता है।

घ) कुरुक्षेत्र युद्ध में भगवान की लीला:

  • भीष्म पितामह ने भगवान के युद्ध में सारथी बनने की लीला का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि भगवान ने धर्म की रक्षा के लिए अपने हाथ में शस्त्र उठाया, भले ही उन्होंने शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की थी।

ङ) भगवान का प्रेममय स्वरूप:

  • भीष्म पितामह ने कहा कि भगवान अपने भक्तों के लिए हमेशा उपस्थित रहते हैं और उनकी रक्षा करते हैं।

4. युधिष्ठिर को उपदेश:

  • भीष्म पितामह ने धर्मराज युधिष्ठिर को राजधर्म, आपद्धर्म (संकट के समय का धर्म), और सामान्य धर्म का उपदेश दिया।
  • उन्होंने राजा के कर्तव्यों और प्रजा के प्रति उनकी जिम्मेदारियों का वर्णन किया।
  • उन्होंने कहा कि धर्म, सत्य, और न्याय के साथ राज्य का संचालन करना ही राजा का मुख्य कर्तव्य है।

5. भीष्म पितामह का निर्वाण:

  • भीष्म पितामह ने भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप का ध्यान करते हुए अपने प्राण त्याग दिए।
  • उन्होंने भगवान के चरणों में अपने मन को स्थिर कर आत्मा को मुक्त किया।

मुख्य श्लोक:

1. श्रीकृष्णं चतुरभुजम्।

  • भीष्म पितामह ने अपने अंतिम समय में भगवान के चतुर्भुज रूप का ध्यान किया।

2. अहो बकी यं स्तनकालकूटं जिघांसयापाययदप्यसाध्वी।

  • भीष्म पितामह ने भगवान की करुणा की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने पापिनी पूतना को भी मोक्ष प्रदान किया।

3. धर्मं तु साक्षाद्भगवत्प्रणीतं।

  • धर्म भगवान द्वारा निर्धारित है, और धर्म का पालन करना मनुष्य का सर्वोच्च कर्तव्य है।

मुख्य संदेश:

1. भक्ति की महिमा: भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति से ही जीव को मोक्ष प्राप्त होता है।

2. धर्म का पालन: धर्म का पालन जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है। भीष्म पितामह ने धर्मराज युधिष्ठिर को धर्म के सभी पहलुओं का ज्ञान दिया।

3. भगवान का करुणामय स्वरूप: भगवान अपने भक्तों के लिए सदैव उपस्थित रहते हैं और उन्हें संसार के बंधनों से मुक्त करते हैं।

4. मृत्यु का आदर्श: भीष्म पितामह ने यह सिखाया कि मृत्यु के समय भगवान का स्मरण और ध्यान जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है।

विशेषता:

 यह अध्याय धर्म और भक्ति के आदर्शों को स्थापित करता है। भीष्म पितामह का जीवन, उनके उपदेश, और उनकी भक्ति प्रेरणादायक हैं। भगवान श्रीकृष्ण के साथ उनकी भक्ति का संबंध और उनकी स्तुति भागवत महापुराण के महत्वपूर्ण अंशों में से एक है।



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