अजामिल की कथा, भागवत पुराण, षष्ठ स्कंध, अध्याय 1-3

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अजामिल की कथा भागवत पुराण के षष्ठ स्कंध, अध्याय 1-3 में वर्णित है। यह कथा भक्ति, भगवान के नाम के महत्व, और उनके द्वारा मोक्ष प्राप्ति का एक अनुपम उदाह

 

इस चित्र में दिखाया गया है कि अजामिल और यमदूतों का दृश्य, अजामिल मृत्युशैया पर लेटे हुए हैं। यमदूत उसे लेने आते हैं, और उसका चेहरा भयभीत है। उसी समय विष्णुदूत प्रकट होकर यमदूतों को रोकते हैं।
इस चित्र में दिखाया गया है कि अजामिल और यमदूतों का दृश्य, अजामिल मृत्युशैया पर लेटे हुए हैं। यमदूत उसे लेने आते हैं, और उसका चेहरा भयभीत है। उसी समय विष्णुदूत प्रकट होकर यमदूतों को रोकते हैं।

 अजामिल की कथा भागवत पुराण के षष्ठ स्कंध, अध्याय 1-3 में वर्णित है। यह कथा भक्ति, भगवान के नाम के महत्व, और उनके द्वारा मोक्ष प्राप्ति का एक अनुपम उदाहरण है। अजामिल का जीवन हमें यह सिखाता है कि भगवान का नाम स्मरण, चाहे अनजाने में ही क्यों न हो, व्यक्ति को पाप से मुक्त कर सकता है।

अजामिल का जीवन परिचय

अजामिल एक ब्राह्मण था, जो धर्म और वेदों का ज्ञाता था। वह अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करता था और अपने कर्तव्यों का निष्ठा से निर्वाह करता था।

अजामिल का पतन

एक दिन अजामिल ने जंगल में एक पतिता स्त्री को देखा, जो मद्यपान कर रही थी और अधर्म में लिप्त थी। उसकी ओर आकर्षित होकर अजामिल ने अपनी धर्मपत्नी, माता-पिता और धार्मिक जीवन का त्याग कर दिया।

उसने उस स्त्री को पत्नी बना लिया और उसके साथ भोग-विलास में लिप्त हो गया।

श्लोक:

स नष्टसदाचारो दस्युसंघसमा गतिः।

आसीत्स्वैरिण्युपनीतो भिन्नचरणविग्रहः।।

(भागवत पुराण 6.1.12)

भावार्थ:

अजामिल अपने धर्म और सदाचार को भूलकर अधर्म में लिप्त हो गया और एक दस्यु की तरह जीवन व्यतीत करने लगा।

अजामिल के पाप कर्म

अजामिल ने धन, स्त्री और सुख के लिए अनेक पाप किए। उसने चोरी, कपट, और अधर्म के अन्य कार्यों से अपना जीवनयापन किया।

श्लोक:

चौर्यं कृतं च फलानि भुङ्क्ते।

पापानि कालेन भवेत्कुमारः।।

(भागवत पुराण 6.1.15)

भावार्थ:

अपने पाप कर्मों के कारण अजामिल के जीवन का हर क्षण अधर्म में बीता।

"नारायण" नाम की शक्ति

अजामिल की दसवीं संतान एक पुत्र था, जिसका नाम उसने नारायण रखा। अजामिल उसे बहुत प्रेम करता था और हर समय "नारायण, नारायण" कहकर पुकारता था। यह भगवान के नाम का अनजाने में स्मरण था, लेकिन यही उसकी मुक्ति का कारण बना।

श्लोक:

स हि स्वात्मजं नारायणनामकं नारायणायाभिधाय बालकं।

सदा तत्क्रिडनक्रीडामतिः सतां च नारायणोऽस्मानुकम्पते।।

(भागवत पुराण 6.1.23)

भावार्थ:

अजामिल अपने पुत्र को बार-बार "नारायण" कहकर बुलाता था। यह भगवान के नाम का अनजाने में जप था, जो उसे अनंत कृपा दिलाने वाला था।

अजामिल की मृत्यु और यमदूतों का आगमन

जब अजामिल का जीवन समाप्त होने वाला था, तब यमदूत उसे ले जाने के लिए आए। उन्होंने उसके पाप कर्मों की चर्चा की और उसे नरक में ले जाने की तैयारी की।

श्लोक:

प्रायाणकाले मनसा चलेन।

भक्त्या दयानं तव नारदस्य।।

(भागवत पुराण 6.1.31)

भावार्थ:

अजामिल के पाप इतने अधिक थे कि यमदूत उसे नरक ले जाने के लिए तत्पर हो गए।

विष्णुदूतों का आगमन

अजामिल ने मृत्यु के समय अपने पुत्र "नारायण" को पुकारा। यह सुनकर भगवान विष्णु के दूत (विष्णुदूत) तुरंत वहाँ प्रकट हुए।

श्लोक:

तस्मिन् काले यमदूताः।

विष्णुपार्षदाः संप्राप्ताः।

अवरुद्धाः प्रजापतेः।।

(भागवत पुराण 6.1.37)

भावार्थ:

जब यमदूत अजामिल को ले जाने लगे, तब विष्णुदूत प्रकट हुए और उन्हें रोका।

विष्णुदूतों और यमदूतों का संवाद

विष्णुदूतों ने यमदूतों से पूछा कि वे किस आधार पर अजामिल को ले जा रहे हैं। यमदूतों ने उसके पापों का वर्णन किया। लेकिन विष्णुदूतों ने कहा कि जिसने भगवान का नाम स्मरण किया है, वह पापमुक्त हो जाता है।

श्लोक:

नारायणायेतिसमस्तदोषः।

स्मृतः पुनानः स्मरते मुक्तिमार्गम्।।

(भागवत पुराण 6.2.7)

भावार्थ:

विष्णुदूतों ने कहा, "जो व्यक्ति भगवान नारायण का नाम स्मरण करता है, वह पापमुक्त हो जाता है।"

अजामिल का प्रायश्चित और मोक्ष

विष्णुदूतों के तर्क से यमदूतों को अपनी गलती का एहसास हुआ, और वे वहाँ से चले गए। अजामिल को अपने पापों का बोध हुआ और उसने सच्चे हृदय से भगवान विष्णु की भक्ति करना प्रारंभ किया।

अजामिल का वैराग्य और तपस्या

अजामिल ने अपनी शेष आयु भगवान की भक्ति और तपस्या में व्यतीत की। उसने अपनी आत्मा को शुद्ध किया और अंततः भगवान के धाम को प्राप्त किया।

श्लोक:

स त्रिवर्गं च भुक्त्वेमं।

त्यक्त्वा देहं दिवं गतः।

विष्णुलोकं स गच्छति।।

(भागवत पुराण 6.3.30)

भावार्थ:

अजामिल ने अपने जीवन के अंत में वैराग्य धारण किया और भगवान विष्णु के परमधाम को प्राप्त किया।

कथा का संदेश

1. भगवान के नाम की शक्ति: भगवान के नाम का स्मरण व्यक्ति को पापों से मुक्त कर सकता है, चाहे वह अनजाने में ही क्यों न हो।

2. भक्ति का महत्त्व: पापी से पापी व्यक्ति भी भगवान की शरण में जाकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

3. सत्संग और उपदेश: यमदूतों और विष्णुदूतों के संवाद से धर्म और भक्ति का महत्व स्पष्ट होता है।

4. प्रायश्चित का अवसर: जीवन में किया गया पाप प्रायश्चित और भक्ति से समाप्त किया जा सकता है।

निष्कर्ष

अजामिल की कथा यह सिखाती है कि भगवान का नाम स्मरण ही पापों से मुक्ति और मोक्ष का मार्ग है। यह कथा हमें भगवान की असीम कृपा और उनके नाम की महिमा को समझने का अद्भुत अवसर प्रदान करती है।

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भागवत दर्शन: अजामिल की कथा, भागवत पुराण, षष्ठ स्कंध, अध्याय 1-3
अजामिल की कथा, भागवत पुराण, षष्ठ स्कंध, अध्याय 1-3
अजामिल की कथा भागवत पुराण के षष्ठ स्कंध, अध्याय 1-3 में वर्णित है। यह कथा भक्ति, भगवान के नाम के महत्व, और उनके द्वारा मोक्ष प्राप्ति का एक अनुपम उदाह
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