उत्तररामचरितम्, श्लोक 1और 2 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण,उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 4 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण,
उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 1और 2 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण |
अनुवाद और शब्द-विश्लेषण:
संस्कृत पाठ:
(ततः प्रविशति नदीद्वयम्)
एका— सखि मुरले! किमसि सम्भ्रान्तेव?
मुरला— सखि तमसे! प्रेषितास्मि भगवतोऽगस्त्यस्य पत्न्या लोपामुद्रया सरिद्वरां गोदावरीमभिधातुम्। जानास्येव यथा वधूपरित्यागात्प्रभृति-
अनिर्भिन्नो गभीरत्वादन्तर्गूढघनव्यथः।
पुटपाकप्रतीकाशो रामस्य करुणो रसः॥ १॥
हिन्दी अनुवाद:
(मंच पर दो नदियाँ प्रवेश करती हैं।)
एक नदी— सखी मुरला! क्या तुम घबराई हुई-सी लग रही हो?
मुरला— सखी तमसा! मुझे महर्षि अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा ने पवित्र नदी गोदावरी तक संदेश पहुँचाने के लिए भेजा है।
तुम्हें तो ज्ञात है, जैसे वधू के त्याग के बाद से—
राम का करुण रस अनिर्भिन्न (अखंड) है,
जो अपनी गहराई के कारण भीतरी पीड़ा को छिपाए हुए है।
वह पुटपाक की भाँति शुद्ध और गंभीर है।
शब्द-विश्लेषण:
- प्रविशति - धातु: √विश् (प्रवेश करना), लट् लकार।
अर्थ: प्रवेश करती है। - नदीद्वयम् - समास: नदी + द्वय (दो)।
अर्थ: दो नदियाँ। - सम्भ्रान्तेव - सम्भ्रान्त + इव।
अर्थ: घबराई हुई-सी। - प्रेषितास्मि - प्रेषित + अस्मि।
अर्थ: मुझे भेजा गया है। - भगवतोऽगस्त्यस्य - भगवान अगस्त्य का।
- पुटपाकप्रतीकाशः - पुटपाक + प्रतीकाश।
- पुटपाक - शुद्धि के लिए अग्नि में पकाया गया;
- प्रतीकाश - जैसा प्रतीत होना।
संस्कृत पाठ:
तेन च तथाविधेष्टजनकष्टविनिपातजन्मना
प्रकृष्टगद्गदेन दीर्घशोकसन्तानेन सम्प्रति परिक्षीणो रामभद्रः।
तमवलोक्य कम्पितमिव कुसुमसमबन्धनं मे दयम्।
अधुना च रामभद्रेण प्रतिनिवर्तमानेन नियतमेव पञ्चवटीवने वधूसहनिवासविस्रम्भसाक्षिणः प्रदेशा द्रष्टव्याः।
तत्र च निसर्गधीरस्याप्येवंविधायामवस्थायामतिगम्भीराभोगशोकक्षोभसंवेगात्पदे पदे महाप्रमादानि शोकस्थानानि शङ्कनीयानि।
तद्भगवति गोदावरि! त्वया तत्रभवत्या सावधानया भवितव्यम्।
हिन्दी अनुवाद:
और उसी प्रकार, जैसे कठिन दुखों से उत्पन्न गहन शोक और गद्गद वाणी ने,
दीर्घ शोक से ग्रस्त रामभद्र को आज थका दिया है।
उनकी ओर देख कर, मेरा मन एक फूलों से बने माला के डोर की तरह थरथरा रहा है।
अब, रामभद्र जब पञ्चवटी के वन में लौट रहे हैं,
तो निश्चित ही उन स्थानों को देखना होगा, जो उनके वधू-संग के निवास के साक्षी हैं।
ऐसी अवस्था में, उनके लिए भी, जो स्वभाव से गंभीर और शांत हैं,
यह गहन शोक, पीड़ा और भय का कारण बनेगा।
भगवती गोदावरी! तुम्हें सतर्क रहना होगा।
शब्द-विश्लेषण:
- तथाविधेष्टजनकष्टविनिपातजन्मना -
- तथाविध - ऐसा ही;
- इष्टजन - प्रियजन;
- कष्टविनिपात - कष्टों का पतन।
- प्रकृष्टगद्गदेन -
- प्रकृष्ट - अत्यधिक;
- गद्गद - भाव-विह्वल।
- दीर्घशोकसन्तानेन -
- दीर्घ - लंबा;
- शोकसन्तान - शोक की शृंखला।
- कम्पितमिव - कम्पित + इव।
अर्थ: काँपता हुआ-सा। - विस्रम्भसाक्षिणः - विस्रम्भ (घनिष्ठता) + साक्षि।
अर्थ: जो निकटता का साक्षी हो।
संस्कृत पाठ:
वीचीवातैः सीकरक्षोदशीतैराकर्षद्भिः पह्मकिञ्जल्कगन्धान्।
मोहे मोहे रामभद्रस्य जीवं स्वैरं स्वैरं प्रेरितैस्तर्पयेति॥ २॥
हिन्दी अनुवाद:
लहरों की शीतल हवा से,
जो कमल के पराग की महक लेकर बहती है,
बार-बार रामभद्र को मोहित करती है।
और उनकी आत्मा को स्वच्छंदता से तृप्त कर देती है।
शब्द-विश्लेषण:
- वीचीवातैः -
- वीची - लहर;
- वातैः - पवन से।
- सीकरक्षोदशीतैः -
- सीकर - जल की बूँदें;
- क्षोद - हलचल;
- शीतैः - ठंडक से युक्त।
- पद्मकिञ्जल्कगन्धान् -
- पद्म - कमल;
- किञ्जल्क - पराग;
- गन्धान् - सुगंध।
- स्वैरं स्वैरं - स्वतंत्रता से।
- तर्पयेति - धातु: √तृप् (संतुष्ट करना), लट् लकार।
अर्थ: तृप्त करती है।
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