भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 2 का सार

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 2 में भगवान के गुण, भक्तों के लिए भक्ति का महत्व, और भगवान की भक्ति से प्राप्त होने वाली परम सिद्धि के विषय में विस्तार से बताया गया है। इस अध्याय को "सृष्टि, धर्म और भक्ति का विवेचन" कहा जा सकता है।

अध्याय 2 का सारांश:

1. सूतजी का उत्तर:

  • सूतजी नैमिषारण्य में ऋषियों के प्रश्नों का उत्तर देते हैं। वे धर्म, ईश्वर और भक्ति के परस्पर संबंध की व्याख्या करते हैं। वे बताते हैं कि भगवान के गुणों का कीर्तन और भक्ति करने से ही जीव आत्मज्ञान प्राप्त करता है।

2. धर्म का सार:

  • प्रत्येक युग में धर्म का पालन करना मनुष्य का मुख्य कर्तव्य है।
  • धर्म का मुख्य उद्देश्य भगवान की भक्ति करना और उनके चरणों में समर्पित होना है।
  • यह भक्ति मनुष्य को संसार के बंधन से मुक्त कर देती है।

3. भक्ति, ज्ञान, और वैराग्य:

  • भक्ति ज्ञान और वैराग्य का मूल स्रोत है।
  • ईश्वर को समर्पित होकर, भक्त संसार के मोह और बंधनों से छूट जाता है।
  • बिना किसी स्वार्थ के, भगवान का ध्यान करना ही सच्चा धर्म है।

4. परम धर्म का वर्णन:

  • श्लोक: "सवई पुंसां परो धर्मो यतो भक्तिरधोक्षजे"
  • मनुष्य का परम धर्म वही है जो भगवान श्रीकृष्ण के प्रति शुद्ध और निरंतर भक्ति उत्पन्न करे।

5. भगवान की लीलाओं का महत्त्व:

  • भगवान की लीलाओं का श्रवण करने से जीव में पवित्रता आती है।
  • शुद्ध भक्ति से मनुष्य के हृदय में समस्त पापों का नाश होता है।

6. भक्ति का प्रभाव:

  • भगवान की भक्ति से व्यक्ति जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।
  • श्लोक: "शृण्वतां स्वकथाः कृष्णः पुण्यश्रवणकीर्तनः।"
  • जो भगवान की कथा सुनते और गाते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

7. सृष्टि का उद्भव और भगवान का स्वरूप:

  • भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के माध्यम से सृष्टि का निर्माण, पालन और संहार करते हैं।
  • ब्रह्मांड के सभी जीव भगवान के अधीन हैं।

8. धर्म का उद्देश्य:

  • धर्म का उद्देश्य है, भगवान की कृपा प्राप्त करना।
  • यह केवल भक्ति और समर्पण के माध्यम से संभव है।

मुख्य श्लोक:

1. स वै पुंसां परो धर्मो यतो भक्तिरधोक्षजे।

  • मनुष्य का सर्वोच्च धर्म वही है जो भगवान के प्रति निष्काम भक्ति उत्पन्न करे।

2. शृण्वतां स्वकथाः कृष्णः पुण्यश्रवणकीर्तनः।

  • भगवान श्रीकृष्ण की कथाओं को सुनने और गाने से पापों का नाश होता है।

3. धर्मः स्वनुष्ठितः पुंसां विष्वक्सेनकथासु यः।

  • धर्म का पालन तभी सार्थक है जब वह भगवान की कथाओं में रुचि उत्पन्न करे।

मुख्य संदेश:

1. जीवन का उद्देश्य भगवान की भक्ति करना है।

2. ईश्वर की कथा सुनने और उनके नाम का कीर्तन करने से जीव को मोक्ष मिलता है।

3. सच्ची भक्ति आत्मा को शुद्ध करती है और संसार के मोह से मुक्त कराती है।


  यह अध्याय भक्ति, ज्ञान और वैराग्य के महत्व को समझाने वाला है।


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