भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 16 का सार

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 16 में कलियुग के आगमन और धर्म एवं पृथ्वी के बीच संवाद का वर्णन किया गया है। यह अध्याय धर्म के चार स्तंभों और उनके ह्रास, कलियुग के प्रभाव, और राजा परीक्षित के धर्म की रक्षा के प्रयासों पर केंद्रित है।

अध्याय 16 का सारांश:

1. कलियुग का आगमन:

  • भगवान श्रीकृष्ण के पृथ्वी से प्रस्थान के बाद, कलियुग का प्रभाव बढ़ने लगा। अधर्म, पाप, और असत्य का विस्तार हुआ।
  • धर्म (जो बैल के रूप में वर्णित है) को अधर्म (कलियुग) के कारण अत्यंत कष्ट हो रहा था।

2. धर्म और पृथ्वी का संवाद:

  • धर्म, बैल के रूप में, केवल एक पाँव पर खड़ा है। उसने पृथ्वी से अपनी व्यथा प्रकट की।
  • धर्म के चार पाँव (सत्य, तप, शौच, दया) हैं, लेकिन कलियुग के प्रभाव से ये तीन पाँव टूट चुके हैं और केवल सत्य बचा है।
  • धर्म ने पृथ्वी से पूछा कि वह इतनी व्यथित क्यों है। पृथ्वी ने उत्तर दिया कि भगवान श्रीकृष्ण के प्रस्थान से वह अत्यंत शोकाकुल है।
  • पृथ्वी ने कहा कि भगवान ने अपने धर्म स्थापना के कार्य से उसकी रक्षा की थी। उनके जाने के बाद, अधर्म और पाप बढ़ने लगे हैं।

3. कलियुग का प्रभाव:

  • कलियुग में धर्म और सत्य का पतन होता है। पाप, लोभ, और असत्य का विस्तार होता है।
  • मनुष्य स्वार्थी, क्रूर, और अधर्मी हो जाते हैं। परिवार, समाज, और धर्म के प्रति उनका आदर कम हो जाता है।
  • धर्म और पृथ्वी दोनों कलियुग के प्रभाव से दुखी हैं और मानव समाज के पतन के लिए चिंतित हैं।

4. राजा परीक्षित का आगमन:

  • इसी समय, राजा परीक्षित (अभिमन्यु के पुत्र) का आगमन होता है। वे एक धर्मपरायण और न्यायप्रिय राजा थे।
  • परीक्षित ने देखा कि एक शूद्र, जो कलियुग का प्रतीक था, धर्म (बैल) और पृथ्वी (गाय) को कष्ट पहुँचा रहा था।
  • राजा परीक्षित ने शूद्र को रोककर उससे पूछा कि वह ऐसा अधर्मपूर्ण कार्य क्यों कर रहा है।

5. राजा परीक्षित का धर्म की रक्षा का संकल्प:

  • परीक्षित ने धर्म और पृथ्वी को आश्वासन दिया कि वे अधर्म को समाप्त करेंगे और धर्म की रक्षा करेंगे।
  • उन्होंने कहा कि कलियुग का प्रभाव उनके राज्य में सहन नहीं किया जाएगा और धर्म का पालन किया जाएगा।

मुख्य श्लोक:

1. धर्मो वदति कः त्वं चहेतुः स्मन्यथां गतः।

  • धर्म ने पृथ्वी से पूछा कि वह किस कारण से दुखी और अस्थिर हो रही है।

2. सत्यं शौचं दया क्षान्तिस्त्यागः सन्तोष आर्जवम्।

  • धर्म के चार पाँव सत्य, शौच (पवित्रता), दया, और क्षमा हैं, लेकिन कलियुग में इनमें से केवल सत्य शेष रह गया है।

3. तस्मात्सर्वात्मना राजन् हृषीकेशं ईश्वरे।

  • राजा को धर्म और सत्य की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहना चाहिए।

मुख्य संदेश:

1. धर्म के पतन का कारण: कलियुग में धर्म के चार पाँवों (सत्य, शौच, दया, तप) का पतन होता है, जिससे अधर्म बढ़ता है।

2. कलियुग का प्रभाव: कलियुग में मनुष्य में पाप, लोभ, और असत्य का विस्तार होता है। समाज में धर्म, न्याय, और करुणा का ह्रास होता है।

3. धर्म की रक्षा का कर्तव्य: राजा का कर्तव्य है कि वह धर्म और सत्य की रक्षा करे और अधर्म का नाश करे। राजा परीक्षित ने इस कर्तव्य का पालन किया।

4. भगवान की अनुपस्थिति में धर्म: पृथ्वी और धर्म ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रस्थान के बाद शोक व्यक्त किया, जो यह दर्शाता है कि भगवान की उपस्थिति से ही धर्म और न्याय की स्थापना संभव है।

विशेषता:

 यह अध्याय कलियुग के प्रभाव, धर्म के ह्रास, और राजा परीक्षित के धर्म की स्थापना के प्रयासों को वर्णित करता है। यह सिखाता है कि धर्म और सत्य की रक्षा के लिए प्रयासरत रहना मनुष्य और राजा का मुख्य कर्तव्य है।




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