भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 15 में पांडवों के संन्यास ग्रहण और भगवान श्रीकृष्ण की लीला समाप्ति के बाद उनके पृथ्वी से प्रस्थान का वर्णन किया गया
भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 15 में पांडवों के संन्यास ग्रहण और भगवान श्रीकृष्ण की लीला समाप्ति के बाद उनके पृथ्वी से प्रस्थान का वर्णन किया गया है। इस अध्याय में अर्जुन की व्याकुलता, भगवान श्रीकृष्ण के प्रति पांडवों का प्रेम, और उनके द्वारा संसारिक जीवन का त्याग कर मोक्षमार्ग अपनाने की कथा है।
अध्याय 15 का सारांश:
1. अर्जुन का दु:ख और व्याकुलता:
- अर्जुन द्वारका से लौटते हैं और युधिष्ठिर के सामने अत्यंत दु:खी और अशांत अवस्था में आते हैं।
- युधिष्ठिर ने अर्जुन से उनके चेहरे की उदासी का कारण पूछा। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण और यदुवंश के बारे में जानना चाहा।
2. अर्जुन द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की लीला समाप्ति का वर्णन:
- अर्जुन ने युधिष्ठिर को बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीला समाप्त कर दी है और द्वारका सहित यदुवंश का विनाश हो गया है।
- अर्जुन ने कहा कि अब द्वारका भगवान श्रीकृष्ण की अनुपस्थिति में निर्जीव और वीरान लगती है।
3. अर्जुन की असमर्थता:
- अर्जुन ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के बिना वे स्वयं को कमजोर और शक्तिहीन महसूस कर रहे हैं।
- उन्होंने कहा कि जिन धनुष-बाणों से उन्होंने महाभारत युद्ध में इतने वीरों को पराजित किया था, अब वे उन्हें साधारण प्रतीत हो रहे हैं।
- अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी गहरी भक्ति और उनके साथ बिताए हुए क्षणों का स्मरण किया।
4. श्रीकृष्ण की महिमा का स्मरण:
- अर्जुन ने भगवान की महिमा, उनकी लीलाओं और उनकी दिव्य उपस्थिति का वर्णन किया।
- उन्होंने कहा कि भगवान की कृपा से ही पांडवों ने महाभारत युद्ध में विजय प्राप्त की थी।
- अर्जुन ने भगवान की भक्ति और उनकी कृपा को जीवन का सबसे बड़ा आधार बताया।
5. पांडवों का संन्यास ग्रहण:
- भगवान श्रीकृष्ण के पृथ्वी से प्रस्थान के बाद पांडवों ने संसारिक जीवन छोड़ने का निर्णय लिया।
- युधिष्ठिर ने अपने राज्य और संपत्ति को परीक्षित को सौंप दिया और वन की ओर प्रस्थान कर गए।
- अन्य पांडवों ने भी उनके साथ सभी सांसारिक बंधनों का त्याग कर दिया।
6. द्रौपदी और कुन्ती का त्याग:
- द्रौपदी और कुन्ती ने भी भक्ति और ध्यान के मार्ग को अपनाया और भगवान के स्मरण में लीन हो गईं।
- सभी पांडवों ने अपने जीवन के अंतिम समय में भगवान की भक्ति करते हुए आत्मा की मुक्ति प्राप्त की।
मुख्य श्लोक:
1. सूत उवाच:
- "अर्जुन ने अपने हृदय में भगवान श्रीकृष्ण के गुणों और उनकी लीलाओं का स्मरण किया।"
2. कृष्णं मन्ये जगद्गुरुम्।
- अर्जुन ने कहा कि श्रीकृष्ण ही इस जगत के परम गुरु और अधिष्ठाता हैं।
3. यत्र धर्मः सुतश्च राजा गदापाणिर्वृकोदरः।
- "जहाँ धर्मराज युधिष्ठिर, बलवान भीम, और भगवान श्रीकृष्ण हों, वहाँ धर्म और विजय निश्चित है।"
4. सर्वं कालकृतं मन्ये भवान्भगवतोऽनघ।
"सब कुछ काल और भगवान की इच्छा से होता है।"
मुख्य संदेश:
1. भगवान के बिना जीवन का शून्य: अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण के बिना अपनी शक्ति और जीवन को शून्य के समान अनुभव किया। यह सिखाता है कि भगवान ही जीवन का आधार हैं।
2. धर्म का पालन और त्याग: पांडवों ने धर्म और न्यायपूर्वक राज्य किया, लेकिन अंत में उन्होंने संसारिक बंधनों का त्याग कर मोक्ष का मार्ग अपनाया।
3. भक्ति और आत्मसमर्पण: भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और उनके चरणों में आत्मसमर्पण ही मुक्ति का मार्ग है।
4. संसार की अस्थिरता: यह अध्याय सिखाता है कि संसारिक वस्तुएँ नश्वर हैं और केवल भगवान की भक्ति शाश्वत है।
विशेषता:
यह अध्याय भगवान श्रीकृष्ण की लीला समाप्ति और पांडवों के त्याग को दिखाता है। अर्जुन का भगवान के प्रति प्रेम, उनकी महिमा का वर्णन, और पांडवों का संसार का त्याग भक्ति और मोक्ष का आदर्श प्रस्तुत करते हैं।