भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 14 का सार

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 14 में महाराज युधिष्ठिर के मन में बुरे शक और अशुभ संकेतों का वर्णन किया गया है। यह अध्याय महाभारत युद्ध के बाद के समय का है, जब भगवान श्रीकृष्ण द्वारका लौट चुके थे। युधिष्ठिर को कई अशुभ लक्षण दिखाई देने लगे, जिनसे उनके मन में श्रीकृष्ण के कुशलक्षेम को लेकर चिंता उत्पन्न होती है।

अध्याय 14 का सारांश:

1. युधिष्ठिर का अशुभ संकेत देखना:

  • महाराज युधिष्ठिर ने देखा कि राज्य में कई अशुभ घटनाएँ हो रही हैं। उन्होंने इन संकेतों को लेकर गहरा चिंतन किया।
  • अशुभ लक्षणों में प्राकृतिक विपदाएँ, समाज में व्याप्त अधर्म, और प्रजा के दु:खद जीवन शामिल थे।

2. अशुभ संकेतों का वर्णन:

युधिष्ठिर ने अर्जुन से बात करते हुए इन संकेतों का वर्णन किया:

  1. प्रकृति के संकेत: सूर्य की तेजस्विता कम हो रही है, चंद्रमा और तारे धुंधले दिख रहे हैं, और हवाएँ अशांत हो गई हैं।
  2. मानव समाज में परिवर्तन: प्रजा में धर्म, सत्य, क्षमा, और दया का अभाव दिखने लगा है।
  3. जीवों का व्यवहार: गायें दूध देना बंद कर रही हैं, पशु असामान्य व्यवहार कर रहे हैं, और पवित्र नदियाँ सूख रही हैं।
  4. अद्भुत घटनाएँ: आग, भूकंप, और अन्य आपदाओं ने राज्य को घेर लिया है।
  5. आत्मा की बेचैनी: युधिष्ठिर के मन में बेचैनी और अशांति व्याप्त है, जिसे वे समझ नहीं पा रहे हैं।

3. अर्जुन का आगमन:

  • युधिष्ठिर ने अर्जुन को द्वारका भेजा था, ताकि वे भगवान श्रीकृष्ण और यदुवंश का कुशलक्षेम जान सकें।
  • अर्जुन के लौटने में देर हो रही थी, जिससे युधिष्ठिर अधिक चिंतित हो गए।
  • अर्जुन के चेहरे को देखकर युधिष्ठिर को और भी शंका हुई।

4. युधिष्ठिर के प्रश्न:

  • युधिष्ठिर ने अर्जुन से भगवान श्रीकृष्ण और द्वारका के बारे में पूछा। उन्होंने कहा कि उनकी आत्मा श्रीकृष्ण के बिना शांत नहीं है।
  • उन्होंने पूछा कि कहीं भगवान श्रीकृष्ण ने पृथ्वी से अपना लीला-विलास तो समाप्त नहीं कर दिया?
  • युधिष्ठिर ने अर्जुन से यह भी पूछा कि कहीं द्वारका में कोई विपत्ति तो नहीं आई?

5. भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और चिंता:

  • युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी गहरी भक्ति और प्रेम व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ही उनके जीवन का आधार हैं।
  • भगवान के बिना उन्हें अपने जीवन में शून्यता और निरर्थकता का अनुभव हो रहा था।

मुख्य श्लोक:

1. काचिद्भूतेषु सौहार्दं परं सन्दध्य आसुराः।

  • युधिष्ठिर ने पूछा कि क्या प्रजा में अब भी आपसी सौहार्द्र और धर्म बना हुआ है, या कहीं अशांति फैल रही है?

2. काचिन्मे भगवान्प्रीतिमात्मजेषु सदा यथा।

  • क्या भगवान श्रीकृष्ण, जो हमारे जीवन के आधार हैं, अब भी हमसे प्रसन्न हैं?

3. धर्मेण राजा पृथिवीं सिषेवे धर्मेण चायं तपसा लीलया च।

  • क्या राजा धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन कर रहा है और भगवान की कृपा बनी हुई है?

मुख्य संदेश:

1. भगवान के बिना जीवन का शून्य: युधिष्ठिर ने यह प्रकट किया कि भगवान श्रीकृष्ण के बिना जीवन निरर्थक हो जाता है। उनकी अनुपस्थिति से संसार अधर्म और अशांति की ओर बढ़ता है।

2. अधर्म और अशुभ संकेत: यह अध्याय दर्शाता है कि जब धर्म और भक्ति का ह्रास होता है, तो समाज में अशांति और अशुभ घटनाएँ प्रकट होती हैं।

3. भगवान की लीला: युधिष्ठिर को यह आशंका होती है कि भगवान श्रीकृष्ण ने पृथ्वी पर अपनी लीला समाप्त कर दी है। यह उनके मन की गहरी चिंता और प्रेम को दर्शाता है।

विशेषता:

 यह अध्याय युधिष्ठिर की धर्मपरायणता और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति उनके प्रेम का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। अशुभ संकेतों के माध्यम से यह अध्याय दर्शाता है कि जब भगवान का आशीर्वाद नहीं होता, तो संसार अधर्म और विनाश की ओर अग्रसर होता है।



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