भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 13 में विदुर और धृतराष्ट्र के संवाद का वर्णन है। यह अध्याय धृतराष्ट्र के जीवन के अंतिम दिनों और विदुर द्वारा उन्हें मोक्षमार्ग की ओर प्रेरित करने पर केंद्रित है।
अध्याय 13 का सारांश:
1. विदुर का हस्तिनापुर आगमन:
- महाभारत युद्ध के बाद विदुर तीर्थयात्रा पर चले गए थे। उन्होंने कई पवित्र स्थानों की यात्रा की और ऋषियों-मुनियों से सत्संग किया।
- तीर्थयात्रा के दौरान विदुर को आत्मज्ञान और भक्ति का मार्ग प्राप्त हुआ।
- वे हस्तिनापुर लौटे और अपने बड़े भाई धृतराष्ट्र से मिलने गए।
2. विदुर का धृतराष्ट्र को उपदेश:
- विदुर ने देखा कि धृतराष्ट्र अब भी हस्तिनापुर में रह रहे हैं और पांडवों की कृपा पर निर्भर हैं।
- उन्होंने धृतराष्ट्र को बताया कि अब समय आ गया है कि वे सांसारिक मोह और राजभवन का त्याग कर आत्मज्ञान और मोक्ष का मार्ग अपनाएँ।
- विदुर ने धृतराष्ट्र को उनके जीवन की वास्तविकता और मृत्यु के निकट होने का स्मरण कराया:
- वृद्धावस्था और मृत्यु: विदुर ने कहा कि शरीर वृद्ध हो चुका है और मृत्यु निकट है। यह संसार नश्वर है।
- सांसारिक मोह: राजमहल में रहकर धृतराष्ट्र अपने विरोधियों (पांडवों) पर निर्भर हैं, जो उनकी गरिमा के अनुरूप नहीं है।
- मोह का त्याग: विदुर ने कहा कि संसारिक मोह, परिवार, और संपत्ति को त्यागना ही मोक्ष का मार्ग है।
3. धृतराष्ट्र का आत्मबोध:
- विदुर के उपदेशों ने धृतराष्ट्र को झकझोर दिया। उन्होंने अपने जीवन की नश्वरता को समझा और सांसारिक बंधनों को त्यागने का निर्णय लिया।
- धृतराष्ट्र अपनी पत्नी गांधारी के साथ विदुर के मार्गदर्शन में वन की ओर प्रस्थान कर गए।
4. युधिष्ठिर का शोक:
- धृतराष्ट्र और गांधारी के गुप्त रूप से वन में जाने की सूचना युधिष्ठिर को बाद में मिली। इससे वे और पांडव अत्यंत दुखी हो गए।
- युधिष्ठिर ने विदुर के पास जाकर उनके वनगमन का कारण पूछा। विदुर ने युधिष्ठिर को धर्म का उपदेश देकर शांत किया।
5. विदुर का धृतराष्ट्र को मोक्षमार्ग पर प्रेरित करना:
- विदुर ने धृतराष्ट्र को भगवान की भक्ति, तपस्या, और ध्यान के माध्यम से आत्मा की मुक्ति का मार्ग बताया।
- उन्होंने कहा कि भगवान की भक्ति ही जीव को संसार के बंधनों से मुक्त कर सकती है।
मुख्य श्लोक:
1. तस्मात्सर्वात्मना राजन् हृषीकेशं ईश्वरे।
- विदुर ने धृतराष्ट्र को उपदेश दिया कि वे भगवान श्रीकृष्ण की शरण में जाएं, क्योंकि वे ही मोक्ष का मार्ग हैं।
2. जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
- जो जन्मा है, उसकी मृत्यु निश्चित है। जो मरा है, उसका पुनर्जन्म भी निश्चित है।
3. विमुक्तसंगः शान्तात्मा विचरत्यपि नाग्रही।
- जिसने संसार के बंधनों को त्याग दिया है, वह शांत और मुक्त रहता है।
मुख्य संदेश:
1. सांसारिक बंधनों का त्याग: विदुर के उपदेश यह सिखाते हैं कि जीवन का अंतिम लक्ष्य सांसारिक बंधनों को त्याग कर आत्मा की मुक्ति प्राप्त करना है।
2. मृत्यु की अनिवार्यता: मृत्यु एक शाश्वत सत्य है। इसे स्वीकार कर भगवान की भक्ति में लगना ही जीवन का उद्देश्य है।
3. धर्म और मोक्ष का मार्ग: विदुर ने दिखाया कि जीवन में धर्म का पालन और भगवान का स्मरण ही आत्मा को शांति और मुक्ति प्रदान करता है।
4. भक्ति और तपस्या का महत्व: भगवान की भक्ति और तपस्या से ही आत्मा को शुद्ध किया जा सकता है।
विशेषता:
यह अध्याय सांसारिक मोह से ऊपर उठकर मोक्ष के पथ पर चलने की प्रेरणा देता है। विदुर का धृतराष्ट्र को आत्मबोध कराना और उन्हें जीवन के अंतिम समय में धर्म और तपस्या के मार्ग पर प्रेरित करना, एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है।
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