भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 11 का सार

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 11 में भगवान श्रीकृष्ण के द्वारका आगमन का भावपूर्ण वर्णन किया गया है। इस अध्याय में द्वारका के निवासियों का अपने प्रिय भगवान के प्रति प्रेम और उनकी आराधना का विस्तार से वर्णन है।

अध्याय 11 का सारांश:

1. द्वारका में श्रीकृष्ण का स्वागत:

  • भगवान श्रीकृष्ण हस्तिनापुर से द्वारका लौटते हैं। उनके द्वारका पहुंचने की सूचना पूरे नगर में फैल जाती है।
  • द्वारका के लोग अत्यंत हर्षित होते हैं और भगवान के स्वागत के लिए नगर के द्वार पर एकत्र होते हैं।
  • उन्होंने अपने प्रिय भगवान को देखने के लिए अपने घरों और कामों को छोड़ दिया।

2. नगर का उत्सवमय वातावरण:

  • द्वारका नगर को सजाया गया। रास्तों पर पुष्प बिछाए गए और भगवान के स्वागत में मंगल गीत गाए गए।
  • नगरवासियों ने भगवान के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम प्रकट करते हुए उत्साहपूर्वक आरती और पूजन किया।

3. भगवान के प्रति प्रेम का प्रदर्शन:

  • भगवान के आगमन पर द्वारका की स्त्रियों ने छतों से भगवान के दर्शन किए। वे उनकी सुंदरता और सौम्यता पर मोहित हो गईं।
  • भगवान का सौंदर्य, उनकी वेशभूषा, और उनकी मनोहर चाल सभी को आनंदित करती है।

4. यदुवंशियों का स्वागत:

  • यदुवंश के सदस्य भगवान श्रीकृष्ण से मिलने के लिए उत्सुक थे। उन्होंने भगवान को प्रणाम किया और उनसे उनके कुशलक्षेम के बारे में पूछा।
  • भगवान ने सभी को प्रेमपूर्वक अभिवादन किया और उनकी कुशलक्षेम पूछी।

5. भगवान का महल में प्रवेश:

  • भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका में प्रवेश किया और अपने महल की ओर बढ़े।
  • उनके परिवार के सदस्य, उनकी पटरानियाँ, और अन्य प्रियजन उनके स्वागत में खड़े थे।
  • भगवान ने अपनी प्रत्येक रानी के महल में जाकर उनसे व्यक्तिगत रूप से भेंट की।

6. भगवान का सबके प्रति समान प्रेम:

  • भगवान ने सभी रानियों और परिवारजनों के साथ एक समान प्रेमपूर्ण व्यवहार किया।
  • उन्होंने सभी को प्रेमपूर्वक स्वीकार किया, चाहे वे कितने भी निकट या दूर क्यों न हों।

मुख्य श्लोक:

1. श्रीभगवानुवाच:

  • भगवान ने प्रेम और करुणा से यदुवंशियों को संबोधित किया और उनकी कुशलक्षेम पूछी।

2. यस्यं श्रीर्मन्यते लोकं गुणसंयोगमीश्वरम्।

  • भगवान की लीला और उनके गुण सभी लोकों को मोह लेते हैं।

3. तं दृष्ट्वा परमं ब्रह्म सर्वानन्दकरं प्रभुम्।

  • भगवान श्रीकृष्ण, जो परब्रह्म हैं, अपने भक्तों को आनंद प्रदान करते हैं।

मुख्य संदेश:

1. भक्ति और प्रेम का महत्व: द्वारका के निवासियों ने भगवान के प्रति अपार प्रेम और भक्ति का प्रदर्शन किया। यह दर्शाता है कि भगवान अपने भक्तों की भक्ति का आदर करते हैं।

2. भगवान की करुणा: भगवान सभी के प्रति समान प्रेम रखते हैं और उनकी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न होते हैं।

3. भगवान का सौंदर्य: श्रीकृष्ण का सौंदर्य और उनकी लीलाएं उनके भक्तों को मोहित और आनंदित करती हैं।

4. समर्पण का आदर्श: द्वारका के लोगों ने भगवान के स्वागत में पूर्ण समर्पण और आनंद का प्रदर्शन किया, जो भक्ति का आदर्श है।

विशेषता:

 यह अध्याय भगवान श्रीकृष्ण के प्रति द्वारका के निवासियों के प्रेम और उनकी भक्ति का जीवंत चित्रण करता है। भगवान की महिमा और उनके भक्तों के साथ उनका प्रेमपूर्ण संबंध भक्ति मार्ग के आदर्श को प्रस्तुत करता है।


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