भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 10 का सार

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 10 में भगवान श्रीकृष्ण का हस्तिनापुर से द्वारका लौटने का वर्णन किया गया है। इस अध्याय में पांडवों और कुरु परिवार की भगवान के प्रति गहरी भक्ति, भगवान की अद्वितीय महिमा और उनके साथ जनता के प्रेम का भावपूर्ण वर्णन किया गया है।

अध्याय 10 का सारांश:

1. हस्तिनापुर में भगवान श्रीकृष्ण:

  • महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा बनाया।
  • भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर और पांडवों की सहायता की और हस्तिनापुर में कुछ समय व्यतीत किया।
  • अब जब राज्य व्यवस्था स्थिर हो गई, तो श्रीकृष्ण ने द्वारका लौटने की इच्छा प्रकट की।

2. युधिष्ठिर और पांडवों का प्रेम:

  • भगवान श्रीकृष्ण के द्वारका लौटने की सूचना से युधिष्ठिर और पांडव दुखी हो गए।
  • युधिष्ठिर ने भगवान से आग्रह किया कि वे कुछ और समय उनके साथ रहें। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण के बिना उन्हें जीवन व्यर्थ लगता है।

3. भगवान का हस्तिनापुर से प्रस्थान:

  • भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को धर्म और कर्तव्य का स्मरण कराया। उन्होंने कहा कि अब वे द्वारका लौटकर अपने परिवार और राज्य की देखभाल करेंगे।
  • हस्तिनापुर के सभी लोग, विशेषकर महिलाएँ, भगवान के दर्शन के लिए नगर की छतों और गलियों में उमड़ पड़ीं।

4. भगवान की महिमा और आकर्षण:

  • हस्तिनापुर के लोग भगवान के सौंदर्य, उनकी चाल, उनके प्रेममय व्यवहार, और उनके गुणों से अभिभूत थे।
  • भगवान को देखने और उनकी एक झलक पाने के लिए लोग अत्यंत उत्सुक थे। उनके प्रेम का वर्णन इस प्रकार किया गया है:
  • भगवान का सौंदर्य सभी लोकों को मोहित करता है।
  • उनकी कृपा और प्रेम से सभी लोग आनंदित रहते हैं।

5. पांडवों और द्रौपदी का विदाई भाव:

  • भगवान के प्रस्थान के समय पांडव और द्रौपदी अत्यंत भावुक हो गए। उन्होंने भगवान के चरणों में प्रणाम किया और उनकी रक्षा के लिए प्रार्थना की।
  • युधिष्ठिर और अर्जुन ने भगवान से उनके मार्ग में शुभता और सुरक्षा की कामना की।

6. कौरव वंश की स्त्रियाँ और जनता की भावनाएँ:

  • कौरव वंश की स्त्रियों ने भगवान को उनके महान कर्मों के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि भगवान ने हमेशा धर्म और सत्य की रक्षा की है।
  • नगर के लोग भगवान के प्रति अपने प्रेम और कृतज्ञता को व्यक्त करते रहे।

मुख्य श्लोक:

1. यद्यप्यस्ते भगवान् देही नामी गुणाश्रयः।

  • भगवान सबके लिए सुलभ हैं, लेकिन उनकी माया को पार करना कठिन है। केवल भक्त ही उनके वास्तविक स्वरूप को पहचान सकते हैं।

2. सर्वा दिशः पश्यतां मानवानाम् ।

  • भगवान का सौंदर्य और उनके दिव्य गुण समस्त दिशाओं में भक्तों को आनंद प्रदान करते हैं।

3. कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।

  • यह श्लोक भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति करता है और उन्हें सभी जीवों के परमात्मा के रूप में वर्णित करता है।

मुख्य संदेश:

1. भक्ति और प्रेम का महत्व: इस अध्याय में पांडवों, कौरव परिवार, और हस्तिनापुर की जनता द्वारा भगवान के प्रति गहरे प्रेम और भक्ति का वर्णन किया गया है।

2. भगवान का अद्वितीय स्वरूप: भगवान श्रीकृष्ण केवल दैवी शक्ति के स्वामी ही नहीं, बल्कि अपने भक्तों के लिए प्रेममय भगवान हैं।

3. धर्म का पालन: भगवान ने युधिष्ठिर को धर्म और कर्तव्य का स्मरण कराते हुए उन्हें अपने राज्य का संचालन करने के लिए प्रेरित किया।

4. संसार में भगवान का प्रभाव: भगवान जहां भी जाते हैं, अपने भक्तों को आनंद और शांति प्रदान करते हैं।

विशेषता:

 यह अध्याय भगवान श्रीकृष्ण के जीवन, उनकी महिमा, और उनके भक्तों के साथ उनके दिव्य प्रेम का वर्णन करता है। यह अध्याय भक्ति, भगवान के सौंदर्य, और उनके दिव्य गुणों का आदर्श उदाहरण है।

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