समवाय सन्निकर्ष (Samavaya Sannikarsa)

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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समवाय सन्निकर्ष न्याय दर्शन में प्रत्यक्ष प्रमाण (Perception) के अंतर्गत छह प्रकार के सन्निकर्षों में से एक है। यह उस स्थायी और अटूट संबंध को दर्शाता है, जो द्रव्य (Substance) और उसके गुण (Qualities), या द्रव्य और उसके अवयवों (Parts) के बीच होता है।



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परिभाषा


> "द्रव्यगुणयोः अथवा द्रव्य-अवयवयोः अनित्यसंबंधः समवायः।"




अर्थ:

जब द्रव्य और गुण, या द्रव्य और उसके अवयव (अंश) के बीच स्थायी और अटूट संपर्क होता है, तो उसे समवाय सन्निकर्ष कहते हैं। यह संपर्क इतना स्थायी होता है कि दोनों का अस्तित्व एक-दूसरे पर निर्भर करता है।



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समवाय सन्निकर्ष की विशेषताएँ


1. अटूट संबंध (Inseparable Connection):


द्रव्य और गुण, या अवयव और उनका संपूर्ण (Whole) हमेशा जुड़े रहते हैं और इन्हें अलग नहीं किया जा सकता।




2. स्थायित्व (Permanence):


यह संबंध स्थायी होता है और दोनों तत्त्वों (द्रव्य और गुण) के अस्तित्व के साथ बना रहता है।




3. अविभाज्यता (Indivisibility):


द्रव्य और गुण, या अवयव और संपूर्ण के बीच यह संबंध भौतिक रूप से अलग नहीं किया जा सकता।




4. प्रत्यक्ष ज्ञान का माध्यम:


समवाय सन्निकर्ष के माध्यम से गुणों और अवयवों का ज्ञान प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होता है।






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उदाहरण


1. द्रव्य और गुण का संबंध:


उदाहरण: वस्त्र (द्रव्य) और उसका रंग (गुण)।


वस्त्र का रंग उसके साथ स्थायी रूप से जुड़ा होता है और इसे अलग नहीं किया जा सकता।




2. अवयव और संपूर्ण का संबंध:


उदाहरण: पहिया और गाड़ी।


पहिया गाड़ी का हिस्सा है, और गाड़ी के बिना इसका अस्तित्व अधूरा है।




3. शब्द और ध्वनि का संबंध:


उदाहरण: शब्द (शब्दार्थ) और उसकी ध्वनि।


शब्द और ध्वनि का संबंध स्थायी होता है।





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समवाय सन्निकर्ष के घटक


1. द्रव्य (Substance):


वह तत्त्व, जिसमें गुण और कर्म निवास करते हैं।


उदाहरण: मिट्टी, धातु।




2. गुण (Quality):


द्रव्य के साथ जुड़ी विशेषताएँ।


उदाहरण: रंग, गंध।




3. अवयव (Parts):


किसी संपूर्ण वस्तु के अविभाज्य भाग।


उदाहरण: कुर्सी के पैर, गाड़ी के पहिए।




4. संपूर्ण (Whole):


अवयवों के संयोग से बना समग्र।


उदाहरण: गाड़ी, कुर्सी।






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समवाय सन्निकर्ष की प्रक्रिया


1. द्रव्य और गुण का संबंध:


द्रव्य और उसके गुणों के बीच संबंध स्थायी होता है।


उदाहरण: पृथ्वी (द्रव्य) और उसकी गंध (गुण)।




2. अवयव और संपूर्ण का संबंध:


किसी वस्तु के हिस्से और पूरे वस्तु के बीच स्थायी संबंध होता है।


उदाहरण: पेड़ और उसकी शाखाएँ।




3. ज्ञान का अनुभव:


समवाय सन्निकर्ष के माध्यम से व्यक्ति गुणों, अवयवों, और उनके संपूर्ण का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करता है।






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अन्य सन्निकर्षों से तुलना



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समवाय सन्निकर्ष का महत्व


1. गुण और द्रव्य की पहचान:


समवाय सन्निकर्ष के माध्यम से हम किसी वस्तु के गुणों को उसके द्रव्य से जोड़कर पहचान सकते हैं।


उदाहरण: पृथ्वी की गंध से उसे पहचाना जाता है।




2. संपूर्ण और अवयव का संबंध:


यह किसी संपूर्ण वस्तु और उसके हिस्सों के बीच के संबंध को स्पष्ट करता है।


उदाहरण: गाड़ी और उसके पहिए।




3. प्रत्यक्ष ज्ञान का आधार:


समवाय सन्निकर्ष के बिना द्रव्य और गुणों का प्रत्यक्ष ज्ञान संभव नहीं।




4. न्याय और वैशेषिक दर्शन में उपयोग:


न्याय दर्शन में समवाय सन्निकर्ष को द्रव्य-गुण और अवयव-संपूर्ण के अध्ययन में उपयोग किया गया है।






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सीमाएँ


1. भौतिक अनुभव तक सीमित:


समवाय सन्निकर्ष केवल भौतिक और स्थायी संपर्क तक सीमित है।


आत्मा और परमात्मा का संबंध इस सन्निकर्ष से नहीं जाना जा सकता।




2. भ्रम की संभावना:


कभी-कभी स्थायी संपर्क की गलत पहचान भ्रमित ज्ञान उत्पन्न कर सकती है।


उदाहरण: वस्त्र के असली और कृत्रिम रंग का भ्रम।






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अन्य दर्शनों में समवाय सन्निकर्ष


1. वैशेषिक दर्शन:


वैशेषिक दर्शन में समवाय को द्रव्य और गुण के बीच के स्थायी संबंध के रूप में वर्णित किया गया है।




2. सांख्य दर्शन:


सांख्य दर्शन में समवाय सन्निकर्ष प्रकृति और पुरुष के बीच स्थायी संबंध को स्पष्ट करता है।




3. वेदांत दर्शन:


वेदांत में इसे आत्मा और शरीर के संबंध के रूप में देखा जाता है।






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संदर्भ


1. न्यायसूत्र (गौतम मुनि):


समवाय सन्निकर्ष का वर्णन न्यायसूत्र के पहले अध्याय में किया गया है।




2. तर्कसंग्रह (अन्नंबट्ट):


समवाय सन्निकर्ष की सरल और व्यावहारिक व्याख्या।




3. वैशेषिक सूत्र (कणाद मुनि):


द्रव्य और गुण के स्थायी संबंध का विस्तृत वर्णन।




4. भारतीय दर्शन (डॉ. एस. राधाकृष्णन):


समवाय सन्निकर्ष और द्रव्य-गुण संबंध का विश्लेषण।






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निष्कर्ष


समवाय सन्निकर्ष न्याय दर्शन में प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। यह द्रव्य और गुण, या संपूर्ण और उसके अवयवों के बीच स्थायी और अविभाज्य संबंध को स्पष्ट करता है। यह ज्ञान की प्रक्रिया में स्थायित्व और स्पष्टता प्रदान करता है। हालांकि, यह भौतिक अनुभवों तक सीमित है, लेकिन दर्शन और तर्कशास्त्र में इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।



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