परिच्छेद सन्निकर्ष न्याय दर्शन में प्रत्यक्ष ज्ञान (Perception) के अंतर्गत आने वाले सन्निकर्ष के प्रकारों में से एक है। यह सन्निकर्ष इंद्रियों और उनके विषय (वस्तु) के बीच उस संपर्क को दर्शाता है, जो वस्तु के आकार, स्थिति, और सीमा (Boundary) को स्पष्ट रूप से समझने में सहायक होता है।
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परिभाषा
> "इन्द्रियार्थयोः परिच्छेदक संपर्कः परिच्छेद सन्निकर्षः।"
अर्थ:
जब इंद्रियाँ किसी वस्तु की स्थिति, आकार, और सीमाओं को स्पष्ट रूप से समझने में सक्षम होती हैं, तो इसे परिच्छेद सन्निकर्ष कहते हैं।
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परिच्छेद सन्निकर्ष की विशेषताएँ
1. आकार और सीमा का ज्ञान:
यह इंद्रियों और उनके विषय के बीच संपर्क के माध्यम से वस्तु की सीमा और माप का ज्ञान प्रदान करता है।
उदाहरण: किसी चौकोर वस्तु को देखकर उसका आकार और किनारे पहचानना।
2. स्थिति और दिशा का ज्ञान:
यह वस्तु की स्थिति (Location) और दिशा (Direction) को समझने में सहायक होता है।
उदाहरण: किसी पेड़ की ऊँचाई और उसकी दिशा को देखना।
3. इंद्रियों का संपर्क:
परिच्छेद सन्निकर्ष केवल उन विषयों पर लागू होता है, जिनका इंद्रियों से संपर्क संभव हो।
उदाहरण: आँख से देखी जाने वाली वस्तुओं की सीमा का ज्ञान।
4. स्पष्टता और सटीकता:
यह ज्ञान भ्रमरहित और स्पष्ट होता है, जिससे वस्तु की सीमाएँ सही तरीके से समझी जा सकती हैं।
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परिच्छेद सन्निकर्ष का उदाहरण
1. दृश्य वस्तुओं का ज्ञान:
आँखों से किसी वर्गाकार वस्तु का आकार और सीमाएँ देखना।
उदाहरण: एक इमारत को देखकर उसकी चौड़ाई और ऊँचाई का ज्ञान।
2. दिशा का ज्ञान:
किसी वस्तु की स्थिति और दिशा को पहचानना।
उदाहरण: एक पेड़ का दक्षिण दिशा में झुका होना।
3. आकार का अनुभव:
किसी वस्तु के गोल, चौकोर, या अन्य आकार को पहचानना।
उदाहरण: गेंद को देखकर उसका गोल आकार समझना।
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परिच्छेद सन्निकर्ष की प्रक्रिया
1. इंद्रियों और विषय का संपर्क:
इंद्रियाँ अपने विषय के साथ संपर्क स्थापित करती हैं।
उदाहरण: आँख और वस्तु का संपर्क।
2. आकार और सीमा का अनुभव:
इंद्रियाँ वस्तु की सीमा, स्थिति, और आकार को पहचानती हैं।
3. ज्ञान उत्पन्न होना:
इंद्रियों और विषय के संपर्क से वस्तु का स्पष्ट ज्ञान उत्पन्न होता है।
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परिच्छेद सन्निकर्ष का महत्व
1. सटीक ज्ञान का स्रोत:
परिच्छेद सन्निकर्ष वस्तु की सीमा और माप का सटीक ज्ञान प्रदान करता है।
2. वस्तु की पहचान:
यह वस्तु की स्थिति और आकार को स्पष्ट रूप से समझने में सहायक है, जिससे वस्तु की पहचान संभव होती है।
3. तर्क और प्रमाण में उपयोग:
यह तर्कशास्त्र और वैज्ञानिक विश्लेषण के लिए आवश्यक आधार प्रदान करता है।
4. दैनिक जीवन में उपयोगिता:
दैनिक जीवन में वस्तुओं की पहचान, उनकी दिशा और आकार को समझने में परिच्छेद सन्निकर्ष आवश्यक है।
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सीमाएँ
1. इंद्रियों की सीमा:
परिच्छेद सन्निकर्ष केवल उन वस्तुओं पर लागू होता है, जिन्हें इंद्रियाँ पहचान सकती हैं। सूक्ष्म या बहुत दूर की वस्तुओं का ज्ञान इससे संभव नहीं।
उदाहरण: किसी छोटे सूक्ष्म जीव का आकार प्रत्यक्ष रूप से देखना मुश्किल है।
2. भ्रम का खतरा:
यदि इंद्रियाँ कमजोर हैं या ठीक से कार्य नहीं कर रही हैं, तो भ्रमित ज्ञान उत्पन्न हो सकता है।
उदाहरण: धुंध में किसी वस्तु का आकार और सीमा ठीक से न देख पाना।
3. भौतिक ज्ञान तक सीमित:
यह सन्निकर्ष आत्मा, परमात्मा, या अन्य आध्यात्मिक तत्त्वों का ज्ञान प्रदान नहीं कर सकता।
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अन्य सन्निकर्षों से तुलना
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संदर्भ
1. न्यायसूत्र (गौतम मुनि):
परिच्छेद सन्निकर्ष का वर्णन न्यायसूत्र के पहले अध्याय में किया गया है।
2. तर्कसंग्रह (अन्नंबट्ट):
सन्निकर्ष के प्रकारों और उनके महत्व की व्याख्या।
3. वैशेषिक सूत्र (कणाद मुनि):
द्रव्य और गुणों के संपर्क और ज्ञान के प्रकार।
4. भारतीय दर्शन (डॉ. एस. राधाकृष्णन):
परिच्छेद सन्निकर्ष और प्रत्यक्ष ज्ञान का विश्लेषण।
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निष्कर्ष
परिच्छेद सन्निकर्ष न्याय दर्शन का एक महत्वपूर्ण तत्त्व है, जो इंद्रियों और उनके विषयों के बीच संपर्क से उत्पन्न ज्ञान को आकार, सीमा, और स्थिति के रूप में स्पष्ट करता है। यह तर्क, विज्ञान, और दैनिक अनुभवों में वस्तुओं को पहचानने और समझने का आधार प्रदान करता है। हालांकि यह भौतिक अनुभवों तक सीमित है, लेकिन इसका उपयोग ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया में अनिवार्य है।
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