सन्निकर्ष (Contact)

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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सन्निकर्ष न्याय दर्शन का एक महत्वपूर्ण तत्त्व है, जिसका संबंध इंद्रियों और उनके विषयों (वस्तुओं) के बीच संपर्क से है। यह प्रत्यक्ष प्रमाण (Perception) की प्रक्रिया का आधार है। न्याय दर्शन के अनुसार, प्रत्यक्ष ज्ञान तभी संभव है, जब इंद्रियों और उनके विषयों के बीच उचित संपर्क (सन्निकर्ष) हो।



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सन्निकर्ष की परिभाषा


> "इन्द्रियस्यार्थेन सन्निकर्षः"




अर्थ: सन्निकर्ष वह संपर्क है, जो इंद्रियों और उनके विषयों के बीच होता है और जिसके परिणामस्वरूप प्रत्यक्ष ज्ञान उत्पन्न होता है।



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सन्निकर्ष के प्रकार


न्याय दर्शन में सन्निकर्ष को मुख्य रूप से छह प्रकारों में विभाजित किया गया है। ये सभी इंद्रियों और विषयों के बीच भौतिक या मानसिक संपर्क के प्रकार हैं:



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1. संयोग (Samyoga)


परिभाषा:


जब इंद्रिय और विषय के बीच सीधा भौतिक संपर्क हो, तो इसे संयोग कहते हैं।



उदाहरण:


आँख और वस्तु का संपर्क, जैसे: किसी फूल को देखना।


त्वचा और किसी वस्तु का संपर्क, जैसे: ठंडे पानी को छूना।



विशेषताएँ:


यह प्रत्यक्ष और स्पष्ट है।


यह बाह्य इंद्रियों (आँख, कान, त्वचा आदि) के माध्यम से होता है।





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2. समवाय (Samavaya)


परिभाषा:


जब इंद्रिय और विषय के बीच संपर्क स्थायी हो, जैसे द्रव्य और उसके गुणों का संपर्क।



उदाहरण:


वस्त्र और उसके रंग का संपर्क।


फूल और उसकी गंध का संपर्क।



विशेषताएँ:


यह द्रव्य और गुण के बीच अटूट संबंध को दर्शाता है।





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3. साक्षात् (Sakshat)


परिभाषा:


जब मन किसी आंतरिक विषय से सीधे संपर्क में आता है, तो इसे साक्षात् सन्निकर्ष कहते हैं।



उदाहरण:


सुख, दुख, इच्छा, द्वेष आदि का अनुभव।


जैसे: खुशी महसूस करना या दुख का अनुभव करना।



विशेषताएँ:


यह बाहरी इंद्रियों पर निर्भर नहीं करता।


यह आत्मा और मन के अनुभव का आधार है।





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4. परिच्छेद (Parichheda)


परिभाषा:


जब इंद्रिय और वस्तु के बीच संपर्क उनके स्वरूप को सीमित करता है।


यह वस्तु की स्थिति और गुणों को पहचानने में सहायक होता है।



उदाहरण:


आँख से किसी वस्तु का आकार और रंग देखना।



विशेषताएँ:


यह प्रत्यक्ष ज्ञान का आवश्यक घटक है।





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5. विकल्प (Vikalpa)


परिभाषा:


जब मन किसी वस्तु के विभिन्न पहलुओं को पहचानता है।


यह ज्ञान को स्पष्ट और सटीक बनाने में सहायक होता है।



उदाहरण:


वस्तु के रंग, आकार, और गंध को अलग-अलग पहचानना।



विशेषताएँ:


यह इंद्रियों और मन के समन्वय से उत्पन्न होता है।





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6. अप्रत्यक्ष (Apratyaksha)


परिभाषा:


जब इंद्रियों और विषय के बीच कोई भौतिक संपर्क न हो, लेकिन मन के माध्यम से वस्तु का अनुभव किया जाए।



उदाहरण:


किसी याद या स्मृति के माध्यम से वस्तु का अनुभव।


जैसे: पिछली बार देखे गए फूल की स्मृति।



विशेषताएँ:


यह प्रत्यक्ष ज्ञान का हिस्सा नहीं है, लेकिन मानसिक अनुभव का आधार है।





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सन्निकर्ष की प्रक्रिया


1. इंद्रिय और विषय का संपर्क:


बाह्य इंद्रियाँ (जैसे आँख, कान, नाक) अपने विषय (रंग, ध्वनि, गंध) के संपर्क में आती हैं।




2. मन का समन्वय:


मन इंद्रियों से प्राप्त जानकारी को आत्मा तक पहुँचाता है।




3. ज्ञान का उत्पन्न होना:


इंद्रियों और विषय के संपर्क से उत्पन्न जानकारी को आत्मा अनुभव करती है और उसे ज्ञान का रूप देती है।






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सन्निकर्ष के उपयोग और महत्व


1. प्रत्यक्ष ज्ञान का आधार:


सन्निकर्ष के बिना प्रत्यक्ष ज्ञान संभव नहीं है। इंद्रियाँ और उनके विषयों का संपर्क ज्ञान उत्पन्न करता है।




2. तर्क और प्रमाण में उपयोग:


तर्क और अन्य प्रमाण (जैसे अनुमान, उपमान) भी प्रत्यक्ष ज्ञान पर आधारित होते हैं, जो सन्निकर्ष से उत्पन्न होता है।




3. आध्यात्मिक अनुभव में भूमिका:


सन्निकर्ष केवल भौतिक अनुभवों तक सीमित नहीं है; यह आंतरिक अनुभवों (जैसे सुख-दुख) का भी आधार है।




4. ज्ञान और भ्रम का भेद:


सन्निकर्ष सही संपर्क और अनुभव को सुनिश्चित करता है, जिससे भ्रम और सत्य का अंतर स्पष्ट होता है।






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सन्निकर्ष की सीमाएँ


1. इंद्रियों की अपूर्णता:


यदि इंद्रियाँ ठीक से कार्य नहीं करतीं, तो सन्निकर्ष असत्य ज्ञान उत्पन्न कर सकता है।


उदाहरण: आँख का कमजोर होना।




2. भ्रम का कारण:


गलत सन्निकर्ष भ्रमित ज्ञान का कारण बन सकता है।


उदाहरण: मृगतृष्णा में पानी का भ्रम।




3. सूक्ष्म या दूर की वस्तुएँ:


सन्निकर्ष उन वस्तुओं का अनुभव नहीं कर सकता जो बहुत सूक्ष्म (जैसे परमाणु) या बहुत दूर हों।






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संदर्भ


1. न्यायसूत्र (गौतम मुनि):


प्रत्यक्ष प्रमाण और सन्निकर्ष की विस्तृत व्याख्या।




2. तर्कसंग्रह (अन्नंबट्ट):


सन्निकर्ष के प्रकार और उनके महत्व का वर्णन।




3. वैशेषिक सूत्र (कणाद मुनि):


सन्निकर्ष और द्रव्य-गुण के संबंध पर विचार।




4. भारतीय दर्शन (डॉ. एस. राधाकृष्णन):


सन्निकर्ष और प्रत्यक्ष ज्ञान का विश्लेषण।






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निष्कर्ष


सन्निकर्ष न्याय दर्शन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जो प्रत्यक्ष ज्ञान की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है। यह इंद्रियों और उनके विषयों के बीच संपर्क को परिभाषित करता है और ज्ञान के विभिन्न रूपों (बाह्य और आभ्यंतर) को संभव बनाता है। सन्निकर्ष भौतिक और मानसिक दोनों स्तरों पर ज्ञान का आधार है और तर्क, विवेक, और आत्मज्ञान में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।



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