DALL·E 2024-11-21 20.14.38 - An artistic depiction of King Uttanapada from Indian mythology, seated on a royal throne. The king is shown with his son
An artistic depiction of King Uttanapada from Indian mythology, seated on a royal throne. The king is shown with his son Uttama sitting on his lap. |
उत्तानपाद के वंश का वर्णन भागवत पुराण के चतुर्थ स्कंध में किया गया है। राजा उत्तानपाद स्वयं स्वायंभुव मनु के पुत्र थे। उनके वंशजों की कथा भगवान विष्णु की भक्ति और धर्म के प्रचार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
उत्तानपाद के वंश का विवरण
1. उत्तानपाद
उत्तानपाद, स्वायंभुव मनु के दो पुत्रों में से एक थे। उनके दो पत्नियाँ थीं:
- सुनीति (धर्मपरायण और विनम्र)
- सुरुचि (स्वार्थी और राजा की प्रिय)
उत्तानपाद के दो पुत्र हुए:
- ध्रुव (सुनीति के पुत्र)
- उत्तम (सुरुचि के पुत्र)
2. ध्रुव का जीवन और वंश
ध्रुव, भगवान विष्णु की भक्ति से ध्रुव तारे के रूप में अटल स्थान प्राप्त करने वाले प्रसिद्ध राजा बने। उन्होंने आगे अपना वंश चलाया:
ध्रुव के पुत्र:
श्लोक:
श्रद्धया तत्परं धीरं सुतं ध्रुव उत्कलः।
गृहमेधि यथार्हं वै प्रियव्रतपितुर्गुणैः।।
(भागवत पुराण 4.11.18)
भावार्थ: ध्रुव का पुत्र उत्कल हुआ। उत्कल गृहस्थ जीवन में रुचि न रखते हुए विरक्त और योग साधना में लीन हो गए। ध्रुव के अन्य पुत्र वात्सर ने राज्य संभाला।
वात्सर के पुत्र:
- वात्सर के वंश में आगे पुष्पार्ण हुए।
3. उत्तम का जीवन और वंश
- उत्तम, उत्तानपाद के दूसरे पुत्र थे। वे अपने धर्म और शौर्य के लिए प्रसिद्ध थे। परन्तु गन्धर्वों के साध युद्ध में मारे गए। अतः इनका वंश आगे नहीं बढ़ा।
वंश की विशेषता और महत्व
उत्तानपाद के वंश की कथा में प्रमुख रूप से ध्रुव और उनकी भक्ति का वर्णन किया गया है। इस वंश की विशेषता यह है कि:
1. ध्रुव ने विष्णु भक्ति के कारण अटल स्थान प्राप्त किया।
2. उनके वंशजों ने धर्म और भक्ति का प्रचार किया।
3. यह कथा हमें यह सिखाती है कि ईश्वर की भक्ति और धर्म पालन से वंश और व्यक्ति दोनों महान बनते हैं।
भागवत पुराण इस वंश को धर्म और भक्ति का प्रतीक मानता है।
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