श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार, मनु (स्वायंभुव मनु) और उनकी पत्नी शतरूपा से संपूर्ण मानव जाति की उत्पत्ति हुई। इन दोनों के द्वारा कई संतानें हुईं, जो संसार के विभिन्न वंशों की आधारशिला बनीं। इस वर्णन का मुख्य विवरण तीसरे स्कंध और चौथे स्कंध में मिलता है।
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1. मनु और शतरूपा की संतानों के नाम
स्वायंभुव मनु और शतरूपा की पाँच संतानें थीं:
1. प्रियव्रत (पुत्र)
2. उत्तानपाद (पुत्र)
3. आकूति (कन्या)
4. देवहूति (कन्या)
5. प्रसूति (कन्या)
इन संतानों से ही मानव, देवता, ऋषि, और असुरों के विभिन्न वंशों का विस्तार हुआ।
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2. प्रियव्रत और उत्तानपाद का वर्णन
(i) प्रियव्रत
प्रियव्रत मनु के बड़े पुत्र थे। वे महान तपस्वी और धर्मात्मा राजा थे। उनका विवाह बार्हिष्मती से हुआ। उनसे दस संतानें उत्पन्न हुईं:
आग्नीध्र, इद्धम, और अन्य पुत्र।
उनके वंश से ही सप्तद्वीपों और ब्रह्मांड का विस्तार हुआ।
(ii) उत्तानपाद
उत्तानपाद मनु के छोटे पुत्र थे। उनकी दो पत्नियाँ थीं:
1. सुनीति
2. सुरुचि
उनके दो पुत्र थे:
ध्रुव: सुनीति के पुत्र, जो अपनी तपस्या के कारण ध्रुवलोक (नक्षत्र) को प्राप्त हुए।
उत्तम: सुरुचि के पुत्र।
ध्रुव जी का जीवन कथा भागवत में बहुत प्रसिद्ध है, जिसमें उनके बाल्यकाल की कठिन तपस्या और भगवान नारायण से प्राप्त वरदान का वर्णन है।
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3. आकूति, देवहूति, और प्रसूति का वर्णन
(i) आकूति
आकूति का विवाह प्रजापति रुचि से हुआ। उनके दो पुत्र हुए:
1. यज्ञ (भगवान विष्णु के अवतार)
2. दक्षिणा
यज्ञ और दक्षिणा से देवताओं का जन्म हुआ, और यज्ञ ने मनु के स्थान पर शासन किया।
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(ii) देवहूति
देवहूति का विवाह कर्दम ऋषि से हुआ। उनके नौ कन्याएँ और एक पुत्र (भगवान कपिल) हुए:
1. भगवान कपिल ने सांख्य दर्शन का उपदेश दिया।
2. उनकी नौ कन्याओं का विवाह ब्रह्मा के विभिन्न पुत्रों (ऋषियों) से हुआ।
कन्याएँ थीं:
कला, अनसूया, श्रद्धा, हविर्भू, गीति, कृया, अरुंधती, शांति, और लीलावती।
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(iii) प्रसूति
प्रसूति का विवाह प्रजापति दक्ष से हुआ। उनके साठ पुत्रियाँ हुईं।
इनमें से दस का विवाह धर्म से हुआ।
तेरह का विवाह कश्यप ऋषि से हुआ, जिनसे देवता, असुर, नाग, और अन्य प्राणियों का जन्म हुआ।
शेष पुत्रियों का विवाह अन्य ऋषियों से हुआ।
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4. मनु के वंश का विस्तार
स्वायंभुव मनु और शतरूपा की संतानों और उनके वंशजों से संसार में मानव, देवता, असुर, और अन्य जातियों का विस्तार हुआ। भागवत में यह वर्णन सृष्टि की क्रमिक प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसमें सभी प्रमुख वंश और उनके कार्य बताए गए हैं।
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भागवत में इस वंश का महत्व
यह वंश सृष्टि के संचालन और धर्म की स्थापना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। मनु और शतरूपा को संसार के पहले मानव युगल के रूप में माना गया है, और उनकी संतानों ने ब्रह्मांड की संरचना में योगदान दिया।
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