deepawali celibration of sooraj krishna shastri with laddu gopal gopal |
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। दीपावली दीप और प्रकाश का पर्व है। साथ ही, यह दिन आराधना के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है जिस प्रकार आध्यात्मिक साधना में ज्योति बिंदु तक पहुंचकर साधक मन के आकाश में छाए जन्म जन्मांतर के अंधकार को दूर करता है, उसी तरह दीपावली में दीप जलाकर अमावस्या के अंधियारे को मिटाने की कोशिश लोग करते हैं। क्योंकि, सनातन के सदग्रंथों में दीप ज्योति को साक्षात परब्रह्म और जनार्दन अर्थात विष्णु माना गया है। इसलिए दीपावली आत्मा को जागृत करने का पर्व है। यही वजह है कि सनातन धर्म के चारों युगों में दीपावली मनाने के कारण मिलते हैं। तो चलिए जानते हैं चारों युगों में दीपावली की क्या कथाएं हैं।
सतयुग की पौराणिक दीपावली कथा
मान्यताओं के अनुसार, सतयुग में जब देवताओं ने दानवों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया तो उससे हलाहल विष के साथ अमृत घट लिए धन्वंतरि देव भी प्रकट हुए और संयोग से ये तिथि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की थी. मान्यता है की तभी से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन धनतेरस मनाने की परंपरा चल पड़ी।
समुद्र मंथन
से ही कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन कमल पर विराजमान मां लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ और तब देवताओं ने उनके प्राकट्य होने की खुशी में पहली बार दीपावली मनाई और तब से ये महान त्योहार अस्तित्व में है।
त्रेतायुग की दीपावली कथा
वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास की रामचरितमानस के मुताबिक, त्रेता में भगवान राम जब चौदह वर्ष का वनवास काट कर अपनी पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे तो अयोध्यावासियों ने उस रात पूरे राज्य में दीप प्रज्वलित कर खुशियां मनाई। क्योंकि भगवान राम बुराई के प्रतीक रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे इसलिए तब से बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में दीपावली मनाई जाने लगी।
द्वापरयुग की दीपावली कथा
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, द्वापरयुग में नरकासुर नाम का एक पापी दानव था। उसे वरदान मिला था भूदेवी के अलावा उसे कोई मार नहीं सकता। अपने इसी वरदान का फायदा उठाकर नरकासुर ने देवताओं पर अत्याचार शुरू कर दिए। नरकासुर के आतंक से बचने के लिए सारे देवता त्राहिमाम करते हुए भगवान कृष्ण के पास पहुंचे क्योंकि श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा भू देवी की ही अवतार थी इसीलिए भगवान कृष्ण सत्यभामा के साथ रथ पर सवार होकर नरकासुर से युद्ध करने पहुंचे।
लेकिन, नरकासुर का एक तीर श्रीकृष्ण को जा लगा. अपने पति परमेश्वर को जख्मी देख सत्यभामा अत्यंत क्रोधित हो गई और उन्होंने तीर का संधान कर नरकासुर का वध कर दिया. संयोग से उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का था. इसलिए, नरकासुर के वध की खुशी में उस दिन नरक चतुर्दशी और उसके अगले दिन से दिवाली का त्योहार मनाया जाने लगा।
कलयुग की दीपावली कथाएं
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ही अपने नश्वर शरीर का त्याग किया था. इसलिए, इस दिन को भगवान महावीर के निर्वाण उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा क्योंकि महावीर के अनुयायियों ने उनके देह त्याग के बाद ये माना की अंतर ज्योति चली गई इसलिए उनके निर्वाण के दिन दीपक जलाकर उसकी भरपाई करने की कोशिश की जाती है।
बौद्ध धर्म में भी दिवाली का बहुत ज्यादा महत्व है. दरअसल, कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही भगवान बुद्ध 18 वर्ष बाद अपनी जन्मभूमि कपिलवस्तु लौटे थे. बौद्ध ग्रंथों के मुताबिक, जब गौतम बुद्ध कपिलवस्तु आए तो वहां के लोगों ने घर-घर दीप जलाकर उनका स्वागत किया. उसी समय बुद्ध ने अपने शिष्यों को अप्प दीपो भव का उपदेश भी दिया था और तब से ही उनकी याद में दिवाली का त्योहार मनाया जाता है।
वहीं, ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में रचित कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी कार्तिक मास की अमावस्या को मंदिरों और नदी के घाटों पर बड़े पैमाने पर दीप प्रज्वलित करने का वर्णन मिलता है।
इसके अलावा, दीपावली का दिन सिख धर्म के अनुयायियों में भी काफी अहमियत रखता है. दरअसल, सन् 1618 में कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही सिखों के छठे गुरु गुरु हरगोविंद सिंह साहब को बावन अन्य कैदियों के साथ रिहा किया गया था. तब गुरु की आजादी का जश्न दीप जलाकर मनाया गया था. इसलिए, सिख समुदाय के लोग इस दिन को बंदी छोड़ दिवस यानी आजादी के दिन के रूप में भी मनाते हैं।
मुगल सम्राट और दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक अकबर के भी दिवाली मनाने का जिक्र कई इतिहासकारों ने किया है। कहा जाता है की अकबर के शासनकाल में दीपावली के दिन दौलत खाने के सामने चालीस गज ऊंचे बास पर एक बड़ा आकाश दीप लटकाया जाता था।
इन सभी कथाओं से पता चलता है कि कार्तिक मास की अमावस्या का दिन पौराणिक और ऐतिहासिक दोनों नजरिए से काफी महत्व रखता है।
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