भागवत सप्ताह के चतुर्थ दिन की कथा

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 भागवत सप्ताह के चतुर्थ दिन की कथा में मुख्य रूप से राजा पृथु की कथा, प्राचीनबर्हि और नारद संवाद, और राजा वेन की कथा का वर्णन होता है। इसमें धर्म, भक्ति, और लोक-कल्याणकारी शासन के आदर्श सिद्धांतों को बताया गया है। यह दिन श्रोताओं को यह सिखाता है कि शासक को अपनी प्रजा के कल्याण के लिए समर्पित होना चाहिए और भगवान की भक्ति से ही जीवन सफल होता है।



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चतुर्थ दिन की कथा:



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1. राजा वेन की कथा (अधर्म का अंत)


कथा:


राजा वेन एक अधर्मी और अहंकारी राजा था। उसने यज्ञ और भगवान की पूजा पर रोक लगा दी।


ऋषियों ने उसे धर्म की शिक्षा दी, लेकिन वह नहीं माना। अंततः ऋषियों ने उसे श्राप देकर नष्ट कर दिया।


राजा वेन के शरीर से मंथन कर पृथु महाराज का प्राकट्य हुआ।



श्लोक:


> धर्मं तु साक्षाद् भगवत्प्रणीतं,

न वै विदुर्ऋषयो नाव देवाः।

अहंकारी वेन त्यक्तो धर्ममार्गात्,

पृथुराजो धर्मं स्थापयिष्यति॥




अर्थ: "धर्म भगवान द्वारा निर्देशित है, जो इसे त्यागते हैं, उनका पतन होता है। पृथु महाराज धर्म की पुनः स्थापना करेंगे।"


गीत:


"वेन अधर्मी राजा था, धर्म को उसने भुलाया।

ऋषियों ने किया अंत उसका, पृथु ने धर्म को बचाया।" *




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2. राजा पृथु की कथा (आदर्श राजा का स्वरूप)


कथा:


पृथु महाराज भगवान विष्णु के अंशावतार थे।


उन्होंने प्रजा के कल्याण के लिए शासन किया और पृथ्वी से अन्न का उत्पादन करवाया।


उनकी पत्नी अर्चि ने भी उनके साथ धर्म का पालन किया।


उन्होंने कृषि, व्यापार, और शासन की व्यवस्था करके प्रजा को सुखी बनाया।



श्लोक:


> राजा पृथुर्महीपालो धर्मपालनतत्परः।

अन्नं सृजति लोकेऽस्मिन् धर्मेन प्रजया सह॥




अर्थ: "राजा पृथु ने धर्म का पालन करते हुए प्रजा को अन्न और सुख प्रदान किया।"


दृष्टांत:


जैसे सूर्य अपने प्रकाश से सबको जीवन देता है, वैसे ही पृथु महाराज ने प्रजा को जीवन का आधार दिया।


गीत:


"पृथु ने धर्म का दीप जलाया, प्रजा को सच्चा सुख दिलाया।

धरती से उपजाई फसलें, जीवन का आधार बढ़ाया।" *




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3. राजा प्राचीनबर्हि और नारद संवाद (आत्मज्ञान)


कथा:


राजा प्राचीनबर्हि भोग में लिप्त थे। नारद मुनि ने उन्हें आत्मज्ञान और भक्ति का उपदेश दिया।


नारद जी ने पंचीकरण दृष्टांत द्वारा समझाया कि कैसे आत्मा माया में फंसी रहती है।


नारद जी ने राजा को सांसारिक मोह से मुक्त होकर भगवान की भक्ति में लीन होने का मार्ग बताया।



श्लोक:


> नारद उवाच:

मोहं जहि महामते, आत्मा नित्यः सनातनः।

भज भगवंतं धीरं, संसारसागरं तर॥




अर्थ: "हे महामति! मोह का त्याग करो। आत्मा नित्य और शाश्वत है। भगवान की भक्ति करो और संसार सागर से पार हो जाओ।"


दृष्टांत:


जैसे पक्षी पिंजरे में कैद रहता है, वैसे ही आत्मा मोह के बंधन में फंसी रहती है। भक्ति से ही वह मुक्त होती है।



गीत:


"नारद ने दिया संदेश, भक्ति ही जीवन का वेश।

संसार की माया को छोड़, हरि का नाम सदा है श्रेष्ठ।" *




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4. भगवान विष्णु का पृथु महाराज को आशीर्वाद


कथा:


पृथु महाराज ने 100 यज्ञ करके भगवान विष्णु को प्रसन्न किया।


भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वह प्रजा के पालन में धर्म का आदर्श प्रस्तुत करें।



श्लोक:


> विष्णुरुवाच:

पृथो तव च धर्मेण लोकपालनतत्परः।

सदा मां स्मर लोकनाथं, भवसागरं तर॥




अर्थ: "भगवान विष्णु ने कहा, 'पृथु, धर्म से प्रजा का पालन करो। मेरा स्मरण करते रहो और भवसागर से पार हो जाओ।'"


गीत:


"पृथु को विष्णु ने आशीष दिया, धर्म का दीप जलाया।

प्रजा को सुख का मार्ग दिखाया, जीवन का सत्य समझाया।" *




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5. पृथ्वी का दोहन (धरती को मां मानने का संदेश)


कथा:


पृथु महाराज ने धरती को गाय के रूप में दुहकर प्रजा के लिए अन्न उत्पन्न किया।


यह शिक्षा दी गई कि पृथ्वी हमारी मां है, उसका सम्मान करना चाहिए।



श्लोक:


> गावोर्विवर्धनं कृत्वा पृथ्वीमाता कृपां वह।

पालयेत् प्रजास्त्वं धर्मेण, रक्ष्यतां भूधरं सदा॥




अर्थ: "पृथ्वी को माता मानकर उसका पालन करो। धर्म से प्रजा का पालन करो।"


गीत:


"धरती मां का किया सम्मान, पृथु ने सिखाया सच्चा ज्ञान।

अन्न और जल सबको दिया, धर्म का सच्चा रूप दिया।" *




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चतुर्थ दिन की शिक्षाएँ


1. अधर्म का नाश: राजा वेन की कथा सिखाती है कि अधर्म और अहंकार का अंत निश्चित है।



2. आदर्श शासन: पृथु महाराज ने धर्म और प्रजा कल्याण का आदर्श स्थापित किया।



3. आत्मज्ञान: नारद मुनि ने सिखाया कि भक्ति और वैराग्य से संसार के बंधनों से मुक्त हुआ जा सकता है।



4. धरती का सम्मान: पृथु महाराज की कथा सिखाती है कि धरती हमारी माता है, उसका संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है।





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चतुर्थ दिन का उपसंहार (गीत):


"सुनो पृथु की ये कथा, जो सिखाए धर्म का मार्ग।

भक्ति में है शक्ति अपार, जीवन का यही आधार।" *




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चतुर्थ दिन की कथा का महत्व


यह दिन श्रोताओं को भक्ति, धर्म, और आदर्श शासन के महत्व को सिखाता है। यह बताता है कि जीवन में ईश्वर की भक्ति और लोक कल्याणकारी कार्यों से ही सच्चा सुख और शांति प्राप्त होती है। चतुर्थ दिन की कथा हमें धरती और धर्म के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का बोध कराती है।



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