श्रीविष्णुपद मंदिर, गया (बिहार)

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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Vishnupad मंदिर का Full HD इमेज
Vishnupad मंदिर का Full HD इमेज,गया (बिहार)


निकटतम रेलवे स्टेशन--    गया (3.9KM)
निर्माण पूर्ण -----               18वी शताब्दी
निर्माता----                        इंदौर की रानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा पुनर्निर्माण


विशेषताएं


  • माना जाता है विश्व में यही एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान विष्णु के चरण चिन्ह की पूजा होती है।
  • भगवान विष्णु के चरण चिन्ह यहां सतयुग काल से ही है।
  • भगवान विष्णु ने अपने पैरों से दबाया था शिला को विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु का चरण चिह्न ऋषि मरीची की पत्नी माता धर्मवत्ता की शिला पर है। 
  • राक्षस गयासुर को स्थिर करने के लिए धर्मपुरी से माता धर्मवत्ता शिला को लाया गया था, जिसे गयासुर पर रख भगवान विष्णु ने अपने पैरों से दबाया। इसके बाद शिला पर भगवान के चरण चिह्न है। 
  • माना जाता है कि विश्व में विष्णुपद ही एक ऐसा स्थान है, जहां भगवान विष्णु के चरण का साक्षात दर्शन कर सकते हैं।


 कसौटी पत्थर से बना मंदिर

  • विष्णुपद मंदिर सोने को कसने वाला पत्थर कसौटी से बना है, जिसे जिले के अतरी प्रखंड के पत्थरकट्‌टी से लाया गया था। 
  • इस मंदिर की ऊंचाई करीब सौ फीट है। 
  • सभा मंडप में 44 पीलर हैं।
  • 54 वेदियों में से 19 वेदी विष्णपुद में ही हैं, जहां पर पितरों के मुक्ति के लिए पिंडदान होता है। 
  • यहां सालों भर पिंडदान होता है।  यहां भगवान विष्णु के चरण चिन्ह के स्पर्श से ही मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं।


अरण्य वन बना सीताकुंड


  विष्णुपद मंदिर के ठीक सामने फल्गु नदी के पूर्वी तट पर स्थित है सीताकुंड। यहां स्वयं माता सीता ने महाराज दशरथ का पिंडदान किया था। प्रबंधकारिणी समिति के सचिव गजाधरलाल पाठक ने बताया कि पौराणिक काल में यह स्थल अरण्य वन जंगल के नाम से प्रसिद्ध था। भगवान श्रीराम, माता सीता के साथ महाराज दशरथ का पिंडदान करने आए थे, जहां माता सीता ने महाराज दशरथ को बालू फल्गु जल से पिंड अर्पित किया था, जिसके बाद से यहां बालू से बने पिंड देने का महत्व है।  


18वीं शताब्दी में हुआ था जीर्णोद्वार

  • विष्णुपद मंदिर के शीर्ष पर 50 किलो सोने का कलश और 50 किलो सोने की ध्वजा लगी है। 
  • गर्भगृह में 50 किलो चांदी का छत्र और 50 किलो चांदी का अष्टपहल है, जिसके अंदर भगवान विष्णु की चरण पादुका विराजमान है। 
  • इसके अलावे गर्भगृह का पूर्वी द्वार चांदी से बना है। वहीं भगवान विष्णु के चरण की लंबाई करीब 40 सेंटीमीटर है। 
  • बता दें कि 18 वीं शताब्दी में महारानी अहिल्याबाई ने मंदिर का जीर्णोद्वार कराया था,  लेकिन यहां भगवान विष्णु का चरण सतयुग काल से ही है।

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