भागवत पुराण के पंचम स्कंध में कुल 26 अध्याय हैं। इसमें मुख्यतः सृष्टि, भूगोल, लोक-लोकांतरों, और भगवान की महिमा का वर्णन किया गया है। इसमें ...
भागवत पुराण के पंचम स्कंध में कुल 26 अध्याय हैं। इसमें मुख्यतः सृष्टि, भूगोल, लोक-लोकांतरों, और भगवान की महिमा का वर्णन किया गया है। इसमें राजा प्रियव्रत, ऋषभदेव और भरत की कथाएँ भी हैं। यह भक्ति और ज्ञान का संगम प्रस्तुत करता है। पंचम स्कंध का अध्यायवार सार इस प्रकार है:
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अध्याय 1-4: राजा प्रियव्रत और उनके वंश का वर्णन
1. अध्याय 1:
स्वायंभुव मनु के पुत्र प्रियव्रत का वर्णन।
प्रियव्रत ने गृहस्थ जीवन और धर्म के कर्तव्यों का पालन किया।
उनके शासन में प्रजा सुखी और समृद्ध थी।
2. अध्याय 2:
प्रियव्रत के पुत्रों का वर्णन।
उन्होंने सात द्वीपों और सात महासागरों का निर्माण किया, जो भौगोलिक दृष्टि से पृथ्वी का विस्तार है।
3. अध्याय 3:
प्रियव्रत के वंश में अग्निध्र का वर्णन।
अग्निध्र ने अपनी संतानों के माध्यम से भू-मंडल को नौ खंडों में विभाजित किया।
4. अध्याय 4:
अग्निध्र के पुत्र नाभि और उनकी पत्नी मेरु देवी का वर्णन।
उनके पुत्र ऋषभदेव का जन्म, जो भगवान विष्णु के अवतार हैं।
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अध्याय 5-7: ऋषभदेव की कथा और उपदेश
5. अध्याय 5:
ऋषभदेव ने अपने सौ पुत्रों को ज्ञान और धर्म का उपदेश दिया।
उन्होंने जीवन के चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) का महत्व बताया।
संसार को त्यागने और भगवान में मन लगाने की शिक्षा दी।
6. अध्याय 6:
ऋषभदेव ने राजपद त्यागकर सन्यास लिया और आत्म-साक्षात्कार के लिए कठोर तप किया।
उनका जीवन वैराग्य और तपस्या का उदाहरण है।
7. अध्याय 7:
ऋषभदेव ने योगाग्नि द्वारा शरीर का त्याग किया और मोक्ष को प्राप्त हुए।
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अध्याय 8-15: भरत महाराज की कथा
8. अध्याय 8:
ऋषभदेव के पुत्र भरत ने राजपद संभाला।
उनका शासन धर्म पर आधारित था।
9. अध्याय 9-11:
भरत ने राजपद त्यागकर वन में तपस्या की।
तपस्या के दौरान वह एक हिरण के प्रति आसक्त हो गए, जिससे उनका पुनर्जन्म हिरण के रूप में हुआ।
10. अध्याय 12-14:
हिरण से पुनः मानव जन्म में आए।
इस जन्म में वह "जड़भरत" के नाम से जाने गए।
उन्होंने भक्ति और ज्ञान का प्रचार किया।
11. अध्याय 15:
राजा रहूगण को जड़भरत ने आत्मा और शरीर के भेद का ज्ञान दिया।
मोक्ष का मार्ग बताया।
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अध्याय 16-20: भूगोल और ब्रह्मांड का वर्णन
12. अध्याय 16-19:
जंबूद्वीप का वर्णन और उसमें स्थित विभिन्न लोकों का विवरण।
सप्तद्वीपों और सप्तसिंधुओं का वर्णन।
भू-मंडल के पर्वत, नदियों, और जंगलों का विस्तार से वर्णन।
13. अध्याय 20:
लोकालोक पर्वत का वर्णन।
सूर्य, चंद्रमा, और नक्षत्रों की गति का विवरण।
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अध्याय 21-26: सृष्टि, लोक, और भगवान की महिमा
14. अध्याय 21-23:
सूर्यलोक, चंद्रलोक, और सप्तर्षि लोक का वर्णन।
ब्रह्मांडीय संरचना और समय चक्र का विवरण।
15. अध्याय 24-25:
नरक लोकों का वर्णन और पापों के अनुसार मिलने वाली यातनाएँ।
इस अध्याय में भक्ति और धर्म से मुक्ति का उपाय बताया गया है।
16. अध्याय 26:
भगवान विष्णु के गुण और उनकी महिमा का वर्णन।
भक्ति मार्ग से मोक्ष प्राप्ति का उपदेश दिया गया।
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पंचम स्कंध की प्रमुख शिक्षाएँ
1. वैराग्य और भक्ति: ऋषभदेव और जड़भरत की कथाएँ आत्मज्ञान और वैराग्य का महत्व बताती हैं।
2. कर्तव्य और धर्म पालन: राजा प्रियव्रत और भरत का जीवन आदर्श शासन और धर्म पालन को दर्शाता है।
3. सृष्टि और ब्रह्मांड का ज्ञान: भूगोल और ब्रह्मांडीय संरचना के माध्यम से भगवान की सृष्टि की महिमा।
4. मोक्ष का मार्ग: पाप और पुण्य के प्रभाव, और भक्ति द्वारा मोक्ष प्राप्ति का उपाय।
पंचम स्कंध भक्ति, ज्ञान, और धर्म का समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है।
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