भागवत सप्ताह के पंचम दिन की कथा

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 भागवत सप्ताह के पंचम दिन की कथा में मुख्यतः पांचवें स्कंध का वर्णन किया जाता है। इस दिन भगवान के भक्ति मार्ग का महत्व, ब्रह्मांड का भौगोलिक वर्णन, राजा भरत की कथा, और जड़भरत का उपदेश सुनाया जाता है। यह दिन श्रोताओं को आत्मज्ञान, भक्ति, और वैराग्य की गहराई से प्रेरित करता है।



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पंचम दिन की कथा:



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1. प्रियव्रत और उनके वंशज


कथा:


प्रियव्रत स्वायंभुव मनु के पुत्र थे। वे एक आदर्श राजा और भगवान के भक्त थे।


उन्होंने अपने पुत्रों के माध्यम से सात द्वीपों और समुद्रों के साथ पृथ्वी का विभाजन किया।


उनकी तपस्या और भक्ति से संसार को अनुशासन और धर्म का मार्गदर्शन मिला।



श्लोक:


> प्रियव्रतो महान् राजा विष्णुभक्तो महाद्युतिः।

लोकपालन धर्मेण संप्राप्तो भगवत्पदम्॥




अर्थ: "प्रियव्रत एक महान विष्णु भक्त थे, जिन्होंने लोक कल्याण के लिए धर्म का पालन किया और भगवत पद प्राप्त किया।"



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2. भरत महाराज की कथा


कथा:


प्रियव्रत के वंश में राजा नाभि और उनकी पत्नी मेरु देवी के पुत्र भरत महाराज का जन्म हुआ।


उन्होंने धर्मपूर्वक राजपद संभाला।


भरत महाराज ने राज्य का त्याग कर वन में भगवान की भक्ति में लीन हो गए।


तपस्या के दौरान उनका मन एक हिरण के प्रति आसक्त हो गया।


इसी मोह के कारण उन्होंने अगले जन्म में हिरण का शरीर धारण किया।



श्लोक:


> तं मोहं जहि धीरात्मन् भज भक्त्या जनार्दनम्।

संसार बंधनं मर्त्यं मोक्षद्वारं प्रभुर्हरिः॥




अर्थ: "हे धीर आत्मन्! मोह को त्यागकर जनार्दन (भगवान विष्णु) की भक्ति करो। वही मोक्ष का द्वार है।"


गीत:


"भरत ने जब मोह किया, हिरण बना फिर जन्म लिया।

भक्ति में ही जीवन है, यही पाठ उन्होंने दिया।" *




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3. जड़भरत की कथा


कथा:


हिरण के जीवन के बाद भरत ने जड़भरत के रूप में जन्म लिया।


इस जन्म में उन्होंने संसार के प्रति पूर्ण वैराग्य अपनाया और भगवान की भक्ति में लीन हो गए।


राजा रहूगण ने जड़भरत को अपमानित किया, लेकिन जड़भरत ने उन्हें आत्मज्ञान और भक्ति का उपदेश दिया।



उपदेश:


आत्मा अमर और शाश्वत है।


संसार माया है, इससे मुक्त होकर भगवान में मन लगाना चाहिए।



श्लोक:


> न जायते म्रियते वा कदाचिन्,

नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।

अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो,

न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥




अर्थ: "आत्मा न जन्म लेती है और न मरती है। यह अमर, शाश्वत और नित्य है। शरीर नष्ट होने पर भी आत्मा नष्ट नहीं होती।"


गीत:


"जड़भरत ने दिया उपदेश, आत्मा ही है सत्य।

मोह माया से ऊपर उठो, हरि भक्ति में है सबकुछ व्यर्थ।" *




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4. भूगोल और ब्रह्मांड का वर्णन


कथा:


इस दिन भागवत पुराण के पंचम स्कंध में ब्रह्मांड का विस्तृत भूगोलिक विवरण सुनाया जाता है।


जंबूद्वीप, सप्तद्वीप, सप्तसिंधु, और लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल) का वर्णन।


यह बताया गया कि भगवान विष्णु की शक्ति से ही सृष्टि का संचालन होता है।



श्लोक:


> जम्बूद्वीपे भरतखण्डे नारायणः परो भवः।

सर्वलोकाधिपः साक्षात् सत्यं ज्ञानं अनन्तकम्॥




अर्थ: "जंबूद्वीप के भारतखंड में भगवान नारायण सर्वशक्तिमान, सत्यस्वरूप और ज्ञान के प्रतीक हैं।"


गीत:


"जंबूद्वीप का वर्णन सुनो, सबकुछ है भगवान की माया।

सृष्टि का पालन करते विष्णु, सबको देते सुख की छाया।" *




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5. भक्ति और वैराग्य का महत्व


कथा:


भरत और जड़भरत की कथा सिखाती है कि भगवान की भक्ति से ही जीवन सार्थक होता है।


मोह, लोभ, और संसार के बंधनों को त्यागकर आत्मा को भगवान में लीन करना चाहिए।



श्लोक:


> तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।

आसक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः॥




अर्थ: "आसक्ति रहित होकर अपने कर्तव्यों का पालन करो। इससे परमात्मा की प्राप्ति होती है।"



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6. पंचम दिन की कथा का उपसंहार


भरत महाराज की कथा बताती है कि सांसारिक मोह से मुक्ति ही मोक्ष का मार्ग है।


जड़भरत की कथा आत्मा की शाश्वतता और भक्ति की महिमा को समझाती है।


भूगोल और ब्रह्मांड का वर्णन भगवान की महिमा और उनकी सृष्टि की जटिलता को दर्शाता है।



गीत:


"भरत ने भक्ति का पाठ पढ़ाया, मोह को छोड़ हरि को अपनाया।

जड़भरत का संदेश सुनो, आत्मा को प्रभु से जोड़ो।" *




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पंचम दिन की शिक्षाएँ


1. मोह का त्याग: भरत महाराज और जड़भरत की कथा यह सिखाती है कि मोह और आसक्ति से मुक्त होकर भगवान की भक्ति करनी चाहिए।



2. आत्मा की शाश्वतता: आत्मा अमर है, इसे संसार की माया में फँसाने के बजाय भगवान में लगाना चाहिए।



3. भक्ति का प्रभाव: भक्ति जीवन को शुद्ध और पवित्र बनाती है।



4. भगवान की महिमा: भूगोल और ब्रह्मांड का वर्णन हमें भगवान की असीम शक्ति का अनुभव कराता है।





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पंचम दिन का उपसंहार (गीत):


"सुनो भरत की ये कथा, जो सिखाए भक्ति का मार्ग।

आत्मा को प्रभु में लीन करो, छोड़ दो माया का भार।" *




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महत्व:


पंचम दिन की कथा आत्मा के सत्यस्वरूप और भगवान की भक्ति की महिमा को समझाने पर केंद्रित है। यह दिन श्रोताओं को मोह और संसार के बंधनों से मुक्त होकर भक्ति और वैराग्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।



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