भागवत पुराण सप्तम स्कंध का सार

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 भागवत पुराण का सप्तम स्कंध मुख्य रूप से भक्त प्रह्लाद की कथा पर आधारित है। यह स्कंध धर्म, भक्ति, और भगवान के प्रति निष्ठा का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है। इसमें भगवान के नृसिंह अवतार का भी वर्णन है। सप्तम स्कंध का सार इस प्रकार है:



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प्रमुख विषय और कथाएँ


1. युद्ध और भक्ति का संतुलन: धर्म के पालन के लिए भगवान के विभिन्न अवतारों की महिमा।



2. प्रह्लाद की कथा: भक्ति और भगवान पर पूर्ण विश्वास का आदर्श।



3. धर्म का स्वरूप: धर्म के चार चरणों (सत्य, दया, तप, और शौच) का महत्व।



4. नृसिंह अवतार: भगवान का भक्तों की रक्षा के लिए अवतार लेना।





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सप्तम स्कंध का अध्यायवार सारांश


अध्याय 1-2: धर्म और अधर्म का भेद


युधिष्ठिर के एक प्रश्न के उत्तर में नारद मुनि धर्म और अधर्म का वर्णन करते हैं।


धर्म और अधर्म के चार चरणों का विस्तारपूर्वक वर्णन।


असुरों और देवताओं के बीच अंतर: असुर अधर्म के मार्ग पर चलते हैं, जबकि देवता धर्म का पालन करते हैं।




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अध्याय 3-6: प्रह्लाद की कथा


1. अध्याय 3:


हिरण्यकशिपु ने भगवान विष्णु से शत्रुता रखी और स्वयं को भगवान घोषित कर दिया।


प्रह्लाद, हिरण्यकशिपु के पुत्र, बचपन से ही भगवान विष्णु के प्रति अटूट भक्ति रखते थे।




2. अध्याय 4:


प्रह्लाद ने अपने पिता के अत्याचारों के बावजूद भगवान विष्णु की भक्ति जारी रखी।


हिरण्यकशिपु ने उन्हें मारने के कई प्रयास किए, लेकिन भगवान ने हर बार उनकी रक्षा की।




3. अध्याय 5:


प्रह्लाद ने अपनी शिक्षाओं में "नवधा भक्ति" (भक्ति के नौ प्रकार) का वर्णन किया:


1. श्रवण (भगवान की कथाएँ सुनना)



2. कीर्तन (भगवान का गुणगान)



3. स्मरण (भगवान का स्मरण)



4. पादसेवन (भगवान की सेवा)



5. अर्चन (पूजा करना)



6. वंदन (प्रार्थना करना)



7. दास्य (भगवान की सेवा करना)



8. साख्य (भगवान को मित्र मानना)



9. आत्मनिवेदन (अपना सब कुछ भगवान को अर्पण करना)।






4. अध्याय 6:


हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने के लिए तरह-तरह की यातनाएँ दीं, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने उनकी रक्षा की।






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अध्याय 7-8: नृसिंह अवतार


1. अध्याय 7:


हिरण्यकशिपु ने भगवान विष्णु की शक्ति को चुनौती दी।


उसने प्रह्लाद से पूछा, "क्या तुम्हारे भगवान हर जगह हैं?"


भगवान नृसिंह स्तंभ से प्रकट हुए।




2. अध्याय 8:


भगवान नृसिंह ने हिरण्यकशिपु का वध किया।


उन्होंने प्रह्लाद को आशीर्वाद दिया और अपने भक्त की भक्ति से प्रसन्न हुए।


इस कथा में भगवान का "भक्त वत्सल" स्वरूप प्रकट होता है।






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अध्याय 9-10: धर्म का पालन


1. अध्याय 9:


नारद मुनि ने धर्म के पालन के महत्व पर प्रकाश डाला।


उन्होंने बताया कि धर्म सभी प्राणियों के लिए समान है।




2. अध्याय 10:


नारद मुनि ने युधिष्ठिर को भगवान के भक्तों की महिमा बताई।


उन्होंने बताया कि भगवान के भक्त हर परिस्थिति में धर्म का पालन करते हैं।






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अध्याय 11-13: धर्म, भक्ति, और ज्ञान का महत्व


1. अध्याय 11:


धर्म का सार बताया गया है।


गृहस्थ जीवन में रहकर भी भगवान की भक्ति की जा सकती है।




2. अध्याय 12:


ब्रह्मा, विष्णु, और शिव के कार्य और उनकी भूमिकाएँ।


भगवान विष्णु को "पालनकर्ता" के रूप में महिमा दी गई।




3. अध्याय 13:


युधिष्ठिर को भगवान के भक्तों की कथाएँ सुनाई गईं।


भक्तों की निष्ठा और उनके उद्धार का वर्णन।






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सप्तम स्कंध की प्रमुख शिक्षाएँ


1. भक्तवत्सल भगवान: भगवान अपने भक्तों की हर परिस्थिति में रक्षा करते हैं।



2. नवधा भक्ति: भक्ति के नौ रूपों को अपनाकर कोई भी भगवान को प्राप्त कर सकता है।



3. धर्म का पालन: धर्म और अधर्म का स्पष्ट भेद जानकर धर्म का पालन करना आवश्यक है।



4. भक्ति का महत्व: प्रह्लाद की भक्ति सिखाती है कि भगवान के प्रति अटूट विश्वास से बड़े से बड़ा संकट टल सकता है।



5. अहंकार का नाश: हिरण्यकशिपु की कथा यह सिखाती है कि अहंकार भगवान के सामने टिक नहीं सकता।




सप्तम स्कंध धर्म, भक्ति, और भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है।



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