भागवत के दशम स्कंध के उत्तरार्ध की कथा। द्वारका लीला और विवाह,स्यमंतक मणि की कथा,उद्धव और गोपियों का संवाद,महाभारत में श्रीकृष्ण की भूमिका, प्रयाण।
भागवत के दशम स्कंध के उत्तरार्ध की कथा
भागवत के दशम स्कंध के उत्तरार्ध में भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका लीला, विवाह, मित्रों और भक्तों के साथ उनके व्यवहार, महाभारत युद्ध में उनकी भूमिका, और यदुवंश का विनाश शामिल है। यह स्कंध भगवान के जीवन के अंतिम भाग और उनकी शिक्षाओं पर केंद्रित है। इसका विस्तार निम्न प्रकार से प्रस्तुत किया गया है:
द्वारका लीला और विवाह
1. द्वारका नगरी की स्थापना:
- श्रीकृष्ण ने मथुरा को छोड़कर समुद्र के मध्य एक अद्भुत नगरी "द्वारका" की स्थापना की।
- भगवान विश्वकर्मा ने समुद्र से भूमि लेकर इसे बनाया।
- द्वारका भगवान श्रीकृष्ण के वैभव और धर्म के प्रतीक के रूप में स्थापित हुई।
2. विवाह प्रसंग:
रुक्मिणी विवाह:
- रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को पत्र भेजकर अपना हरण करने का अनुरोध किया।
- श्रीकृष्ण ने शिशुपाल से विवाह रोककर रुक्मिणी से विवाह किया।
सत्यभामा और अन्य विवाह:
- श्रीकृष्ण ने सत्यभामा, जाम्बवती और अन्य पत्नियों से भी विवाह किया।
नरकासुर वध:
- श्रीकृष्ण और सत्यभामा ने नरकासुर का वध किया और 16,100 राजकुमारियों को मुक्त कर उनसे विवाह किया।
- संदेश: श्रीकृष्ण का हर कार्य धर्म, न्याय और भक्तों की रक्षा के लिए होता है।
स्यमंतक मणि की कथा
सत्राजित और स्यमंतक मणि:
- सत्राजित को सूर्यदेव से स्यमंतक मणि प्राप्त हुई, जो द्वारका में कलह का कारण बनी।
- श्रीकृष्ण ने मणि को वापस लाकर द्वारका में शांति स्थापित की।
- संदेश: लोभ और मोह से मुक्ति ही शांति का मार्ग है।
उद्धव और गोपियों का संवाद
1. उद्धव का मथुरा से गोकुल आगमन:
- श्रीकृष्ण ने अपने मित्र उद्धव को गोकुल भेजा ताकि गोपियों को ज्ञान का उपदेश दिया जा सके।
- उद्धव ने योग और ज्ञान के माध्यम से उन्हें सांत्वना देने का प्रयास किया।
2. गोपियों का भक्ति भाव:
- गोपियों ने कहा कि उनका प्रेम आत्मिक है, जो किसी भी ज्ञान या योग से ऊपर है।
- उद्धव गोपियों की भक्ति देखकर अभिभूत हुए और समझ गए कि सच्ची भक्ति ज्ञान से श्रेष्ठ है।
- संदेश: निःस्वार्थ प्रेम और समर्पण ही भगवान को प्राप्त करने का मार्ग है।
महाभारत में श्रीकृष्ण की भूमिका
1. पांडवों के साथ संबंध:
- श्रीकृष्ण ने पांडवों को धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने का प्रेरणा दी।
- द्रौपदी चीरहरण में श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा की और कौरवों के अधर्म को उजागर किया।
2. गीता उपदेश:
- महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन के मोह को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिया।
- गीता का मुख्य संदेश है:
- कर्म योग: निःस्वार्थ भाव से कर्म करना।
- भक्ति योग: भगवान में समर्पण और प्रेम।
- ज्ञान योग: आत्मा और परमात्मा की एकता का बोध।
- संदेश: धर्म की रक्षा के लिए किया गया कार्य सबसे श्रेष्ठ है।
यदुवंश का विनाश
1. यदुवंशियों का पतन:
- यदुवंशियों में अहंकार और कलह बढ़ने लगा।
- ऋषियों के श्राप के कारण यदुवंशियों ने आपस में युद्ध करके एक-दूसरे का विनाश कर दिया।
- यह घटना बताती है कि अहंकार और अधर्म का अंत निश्चित है।
2. भगवान श्रीकृष्ण का महाप्रयाण:
- श्रीकृष्ण ने देखा कि उनका कार्य पूर्ण हो गया है।
- वे योगमुद्रा में बैठ गए और पृथ्वी पर अपने मानव रूप का त्याग किया।
- जरा नामक व्याध के तीर से उनके शरीर का अंत हुआ।
- यह दिखाता है कि भगवान भी अपने कार्य के अनुसार देह का त्याग करते हैं।
कथा का संदेश:
1. धर्म की स्थापना: श्रीकृष्ण का हर कार्य धर्म और सत्य की स्थापना के लिए था।
2. भक्ति का महत्व: गोपियों का प्रेम और उद्धव का अनुभव सिखाता है कि भक्ति ज्ञान से श्रेष्ठ है।
3. जीवन की नश्वरता: यदुवंश का विनाश और भगवान का महाप्रयाण दिखाता है कि संसार में सब नश्वर है, केवल आत्मा और परमात्मा शाश्वत हैं।
4. कर्म का सिद्धांत: गीता के उपदेश हमें सिखाते हैं कि निष्काम कर्म और ईश्वर में समर्पण ही मोक्ष का मार्ग है।
दशम स्कंध का उत्तरार्ध भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं, उनके जीवन के अंतिम चरण और धर्म की स्थापना की गाथा है। यह हमें भक्ति, कर्म, और धर्म के महत्व का मार्गदर्शन देता है।