भागवत सप्ताह के प्रथम दिन की कथा

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 भागवत सप्ताह के प्रथम दिन की कथा में भागवत पुराण की महिमा, रचना की पृष्ठभूमि, और प्रारंभिक घटनाएँ विस्तार से वर्णित होती हैं। यह दिन श्रोताओं को भागवत कथा के महत्व और भगवान की भक्ति के प्रभाव से परिचित कराता है।



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भागवत सप्ताह का प्रारंभ


भागवत कथा का श्रवण करने से पहले पूजन, संकीर्तन, और मंगलाचरण किया जाता है।


मंगलाचरण (श्लोक):


> नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।

देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्॥




अर्थ: "नारायण, नर, सरस्वती देवी, और महर्षि व्यास को प्रणाम करके कथा का आरंभ होता है।"



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भागवत महात्म्य की कथा


भागवत पुराण की कथा से पहले भागवत महात्म्य सुनाई जाती है, जो श्रोताओं को भागवत के महत्व का परिचय देती है। इसमें कहा गया है कि:


भागवत पुराण भगवान का ही स्वरूप है।


इसका श्रवण सभी पापों को नष्ट कर देता है।


भागवत कथा से वह मोक्ष प्राप्त होता है, जो यज्ञ, तप, और अन्य कर्मों से कठिनाई से मिलता है।



भागवत महात्म्य की दृष्टांत कथा


एक व्यक्ति ने जीवन भर पाप कर्म किए। मृत्यु के समय उसने अनजाने में "भागवत" शब्द कहा।


इसके प्रभाव से यमदूत नहीं आए, और वह विष्णुलोक गया।

यह दृष्टांत बताता है कि भागवत कथा का श्रवण और भगवान का नाम मनुष्य को भवसागर से पार करा सकता है।



श्लोक:


> कलेर्दोषनिधे राजन् अस्ति ह्येको महान् गुणः।

कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत्॥




अर्थ: "कलियुग में अनगिनत दोष हैं, पर एक महान गुण है कि भगवान कृष्ण का कीर्तन करने से मनुष्य सभी बंधनों से मुक्त होकर परम धाम को प्राप्त करता है।"



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नैमिषारण्य की कथा


दृष्टांत:


नैमिषारण्य एक ऐसा पवित्र स्थान है, जहां देवताओं ने यज्ञ के लिए पृथ्वी का सबसे शांत क्षेत्र चुना।


शौनक ऋषि और 88,000 ऋषियों ने कलियुग के प्रभाव को दूर करने के लिए यज्ञ आरंभ किया।



सूत जी का आगमन:


यज्ञ के दौरान सूत जी (उग्रश्रवाजी) पहुंचे।


ऋषियों ने सूत जी से प्रार्थना की कि वे भगवान श्रीकृष्ण की कथाओं को सुनाएँ, जो धर्म, भक्ति, और ज्ञान का प्रकाश फैलाती हैं।



श्लोक:


> कथं धर्मः सदा स्थितः कस्य हेतोः सदा भवेत्।

कथं ज्ञानं च भगवन् ब्रूहि नो महाद्युते॥




अर्थ: "हे महान ज्ञानी सूत जी, हमें बताइए कि धर्म कैसे स्थापित होगा, ज्ञान का क्या महत्व है, और कलियुग के लोगों का उद्धार कैसे होगा।"



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भागवत की रचना की पृष्ठभूमि


व्यासदेव की चिंता और नारद मुनि का उपदेश:


महर्षि व्यास ने वेदों का विभाजन किया और महाभारत की रचना की, लेकिन उन्हें संतोष नहीं मिला।


नारद मुनि ने बताया कि वे केवल धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष का वर्णन कर रहे हैं, लेकिन भगवान की भक्ति का प्रचार नहीं किया।



दृष्टांत:


नारद मुनि ने कहा, "जैसे भोजन में घी से स्वाद आता है, वैसे ही जीवन में भक्ति से शांति मिलती है। भगवान की लीलाओं और भक्ति पर आधारित ग्रंथ लिखें।"


व्यासदेव ने नारद मुनि की प्रेरणा से भागवत पुराण की रचना की।



श्लोक:


> स वै पुंसां परो धर्मो यतो भक्तिरधोक्षजे।

अहैतुक्यप्रतिहता ययात्मा सुप्रसीदति॥




अर्थ: "सर्वोच्च धर्म वह है, जो भगवान के प्रति अनन्य और निरंतर भक्ति उत्पन्न करता है।"



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कलियुग के लक्षण और समाधान


कलियुग के दोष:


सत्य, दया, तप, और शौच (पवित्रता) समाप्त हो जाएगी।


लोग स्वार्थी, कपटी, और लोभी हो जाएंगे।


धर्म केवल "सत्य" के एक चरण पर टिका रहेगा।



समाधान:


भगवान के नाम का जप और उनकी कथाओं का श्रवण ही मानवता का उद्धार करेगा।



श्लोक:


> नाम संकीर्तनं यस्य सर्व पाप प्रणाशनम्।

प्रणामो दुःख शमनस्तं नमामि हरिं परम्॥




अर्थ: "भगवान के नाम का संकीर्तन सभी पापों का नाश करता है और दुखों को हरता है।"



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सृष्टि की उत्पत्ति


भगवान विष्णु का नाभि कमल और ब्रह्मा जी का प्राकट्य:


भगवान विष्णु के नाभि से कमल का प्रादुर्भाव हुआ।


इस कमल से ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उन्हें सृष्टि रचने का आदेश दिया गया।



दृष्टांत:


जैसे सूर्य के प्रकाश से जीवन चलता है, वैसे ही भगवान विष्णु के आदेश से सृष्टि का संचालन होता है।



श्लोक:


> आद्यो नारायणः स्वयम्।

सृष्टि-स्थित्यन्त-कर्तारं ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मकम्॥




अर्थ: "भगवान नारायण ही सृष्टि के आरंभ, पालन, और संहार के कर्ता हैं।"



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राजा परीक्षित का शाप और भागवत श्रवण


दृष्टांत:


राजा परीक्षित ने शमीक ऋषि का अपमान किया। ऋषि के पुत्र ने उन्हें सात दिन में तक्षक नाग के द्वारा मृत्यु का शाप दिया।


परीक्षित ने अपने पाप के प्रायश्चित्त के लिए भागवत कथा सुनने का निश्चय किया।


शुकदेव जी ने उन्हें सात दिनों में भागवत की कथा सुनाई।



श्लोक:


> तस्मात् भारत सर्वात्मन् भगवान् ईश्वरो हरिः।

श्रोतव्यः कीर्तितव्यश्च स्मर्तव्यश्चेच्छताभयम्॥




अर्थ: "हे भारत, भगवान हरि की कथा सुनो, गुणगान करो और स्मरण करो। यही सभी भय से मुक्त होने का मार्ग है।"



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प्रथम दिन की कथा से शिक्षाएँ


1. भक्ति का महत्व: भगवान की भक्ति से ही जीवन में शांति और मोक्ष संभव है।



2. भगवत कथा का प्रभाव: भगवान की कथाएँ सुनने और उनका नाम जपने से पाप नष्ट होते हैं।



3. मृत्यु का स्मरण: मृत्यु अटल है, लेकिन भगवान का स्मरण मोक्ष का मार्ग है।



4. धर्म का पालन: सत्य, दया, और तप का पालन जीवन को सफल बनाता है।





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गीत:


"कृष्ण कथा सुन लो रे भाई, पापों का भार उतर जाएगा।

हरे नाम की महिमा गाओ, भवसागर पार हो जाएगा।" *



निष्कर्ष:

भागवत सप्ताह के प्रथम दिन की कथा श्रोताओं को भक्ति, ज्ञान, और वैराग्य की ओर प्रेरित करती है। यह दिन भागवत कथा का आधारभूत स्वरूप प्रस्तुत करता है।



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