तर्कभाषा (केशव मिश्र)

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 तर्कभाषा (केशव मिश्र): प्रत्येक बिंदु का विस्तृत वर्णन


तर्कभाषा भारतीय तर्कशास्त्र और न्याय दर्शन का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो न्याय दर्शन के मूल सिद्धांतों को सरल और व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करता है। यह ग्रंथ न्याय, तर्क, प्रमाण, और ज्ञान के सिद्धांतों का संपूर्ण रूप में वर्णन करता है।



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1. ज्ञान (Knowledge)


ज्ञान तर्कशास्त्र का मूल आधार है। तर्कभाषा में इसे दो प्रकारों में विभाजित किया गया है:


(i) यथार्थ ज्ञान (Valid Knowledge):


वह ज्ञान जो वास्तविकता से मेल खाता है और प्रमाणों के आधार पर सत्य माना जाता है।


उदाहरण: सूर्य का उगना।



(ii) अयथार्थ ज्ञान (Invalid Knowledge):


वह ज्ञान जो वास्तविकता से मेल नहीं खाता और भ्रम पर आधारित होता है।


उदाहरण: पानी में परावर्तित चंद्रमा को वास्तविक चंद्रमा मान लेना।




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2. प्रमाण (Means of Valid Knowledge)


तर्कभाषा में चार प्रकार के प्रमाणों का वर्णन किया गया है, जो ज्ञान प्राप्ति के साधन हैं:


(i) प्रत्यक्ष (Perception):


प्रत्यक्ष प्रमाण का अर्थ है वह ज्ञान जो इंद्रियों के माध्यम से सीधे अनुभव किया जाता है।


उदाहरण: अग्नि को देखकर उसकी गर्मी का अनुभव।



(ii) अनुमान (Inference):


अनुमान वह ज्ञान है जो तर्क और निष्कर्ष के माध्यम से प्राप्त होता है।


उदाहरण: धुएँ को देखकर आग का अनुमान लगाना।



(iii) उपमान (Comparison):


उपमान समानता के आधार पर ज्ञान प्राप्त करने का साधन है।


उदाहरण: वन में एक जीव को देखकर उसे गाय के समान बताना।



(iv) शब्द (Testimony):


शब्द प्रमाण वह ज्ञान है जो किसी विश्वसनीय स्रोत, जैसे गुरु, शास्त्र या वेद, से प्राप्त होता है।


उदाहरण: शास्त्रों में वर्णित मोक्ष का ज्ञान।




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3. तर्क (Logic)


तर्क तर्कभाषा का मुख्य तत्व है। इसमें सही ज्ञान प्राप्त करने और उसे स्थापित करने की प्रक्रिया दी गई है।


(i) सत्य ज्ञान की खोज:


तर्क सत्य को स्थापित करने का माध्यम है।


इसमें प्रमाण, अनुमान, और उदाहरणों का उपयोग किया जाता है।



(ii) तर्क की विधियाँ:


तर्क को तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है:


1. वाद (Debate):


सत्य की खोज के लिए मित्रतापूर्ण और रचनात्मक तर्क।


उदाहरण: गुरु और शिष्य के बीच का संवाद।




2. जल्प (Disputation):


अपने पक्ष को सिद्ध करने और विरोधी के पक्ष को खंडित करने के लिए तर्क।


उदाहरण: दो विद्वानों के बीच शास्त्रार्थ।




3. वितंडा (Destructive Argumentation):


केवल विरोध करने के लिए तर्क, सत्य की खोज का उद्देश्य नहीं।


उदाहरण: विरोधाभास उत्पन्न करने वाला विवाद।






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4. पञ्चावयव तर्क (Five Components of Logical Argument)


तर्कभाषा में तर्क को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करने के लिए पाँच अवयवों का उल्लेख किया गया है:


1. प्रतिज्ञा (Proposition):


विचार या दावा प्रस्तुत करना।


उदाहरण: पर्वत पर आग है।




2. हेतु (Reason):


दावे का कारण या प्रमाण।


उदाहरण: क्योंकि पर्वत पर धुआँ है।




3. उदाहरण (Example):


दावे को प्रमाणित करने वाला उदाहरण।


उदाहरण: जहाँ-जहाँ धुआँ होता है, वहाँ आग होती है, जैसे रसोई।




4. उपनय (Application):


तर्क को प्रस्तुत संदर्भ पर लागू करना।


उदाहरण: पर्वत पर धुआँ है, इसलिए वहाँ आग है।




5. निगमन (Conclusion):


तर्क का अंतिम निष्कर्ष।


उदाहरण: अतः पर्वत पर आग है।






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5. पदार्थ (Categories of Reality)


तर्कभाषा न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन के सात पदार्थों को प्रस्तुत करती है, जो सृष्टि के आधारभूत तत्व हैं:


1. द्रव्य (Substance):


नौ प्रकार के द्रव्य: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, काल, दिशा, आत्मा, मन।




2. गुण (Quality):


24 प्रकार के गुण: रूप, रस, गंध, स्पर्श, संख्या, परिमाण, संयोग आदि।




3. कर्म (Action):


द्रव्य में होने वाली गतिविधियाँ।


उदाहरण: चलना, उठना, फैलना।




4. सामान्य (Universality):


समानता या सामान्य लक्षण।


उदाहरण: मनुष्यता।




5. विशेष (Particularity):


प्रत्येक वस्तु की अद्वितीयता।


उदाहरण: अलग-अलग व्यक्तियों की पहचान।




6. समवाय (Inherence):


गुण और द्रव्य का अटूट संबंध।


उदाहरण: कपड़े और उसके रंग का संबंध।




7. अभाव (Negation):


किसी वस्तु की अनुपस्थिति।


उदाहरण: मेज पर पुस्तक का न होना।






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6. वाक्य (Propositions)


तर्कभाषा में वाक्यों को चार प्रकारों में विभाजित किया गया है:


1. प्रतिज्ञा वाक्य:


जिसमें दावा किया जाता है।


उदाहरण: जल में आग नहीं है।




2. संदेह वाक्य:


जिसमें संदेह व्यक्त होता है।


उदाहरण: क्या यह धुआँ जल से निकल रहा है?




3. विपरीत वाक्य:


जिसमें विपरीत दावा किया जाता है।


उदाहरण: धुआँ बिना आग के भी हो सकता है।




4. सिद्धांत वाक्य:


जिसमें तर्क और प्रमाण के आधार पर सत्य स्थापित होता है।


उदाहरण: जहाँ धुआँ है, वहाँ आग है।






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7. ज्ञान के प्रकार


तर्कभाषा में ज्ञान को विभिन्न प्रकारों में विभाजित किया गया है:


1. स्मृति (Memory):


पूर्व अनुभव का स्मरण।


उदाहरण: किसी पुरानी घटना को याद करना।




2. प्रत्यभिज्ञा (Recognition):


पहले देखी गई वस्तु को पहचानना।


उदाहरण: किसी पुराने मित्र को पहचानना।




3. अनुमान (Inference):


तर्क और निष्कर्ष के आधार पर ज्ञान।




4. कल्पना (Imagination):


मानसिक कल्पना।


उदाहरण: भविष्य में होने वाली घटना की कल्पना।






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8. संसार और मोक्ष (World and Liberation)


तर्कभाषा संसार और मोक्ष के विषय को भी स्पष्ट करती है:


1. संसार (World):


यह कर्म और अज्ञान के कारण उत्पन्न होता है।


आत्मा शरीर और इंद्रियों के माध्यम से संसार के सुख-दुख का अनुभव करती है।




2. मोक्ष (Liberation):


आत्मा का अज्ञान, कर्म, और संसार के बंधनों से मुक्त होना।


तर्क और ज्ञान के माध्यम से यह प्राप्त किया जा सकता है।






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निष्कर्ष


तर्कभाषा न्याय दर्शन और तर्कशास्त्र का एक उत्कृष्ट ग्रंथ है, जो भारतीय तात्त्विक परंपरा में तर्क, प्रमाण, और ज्ञान के महत्व को स्पष्ट करता है। इसके प्रत्येक बिंदु न्याय और वैशेषिक दर्शन के गहन सिद्धांतों को सरलता से समझाते हैं। यह ग्रंथ आज भी भारतीय तर्कशास्त्र की गहराई और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझने का आधार है।


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