भारतीय दर्शन: एक संक्षिप्त परिचय

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 भारतीय दर्शन: एक संक्षिप्त परिचय


भारतीय दर्शन (Indian Philosophy) विश्व के प्राचीनतम और व्यापक दार्शनिक प्रणालियों में से एक है। यह न केवल आध्यात्मिक और धार्मिक चिंतन का एक समृद्ध क्षेत्र है, बल्कि इसमें जीवन, ब्रह्मांड, और सत्य के प्रश्नों का तर्कपूर्ण विश्लेषण भी किया गया है। भारतीय दर्शन का मुख्य उद्देश्य आत्मा, ब्रह्मांड, और परम सत्य (मोक्ष) के बीच के संबंध को समझना है।


भारतीय दर्शन मुख्यतः दो भागों में विभाजित है:


1. आस्तिक दर्शन (जिनमें वेदों की प्रमाणिकता को स्वीकार किया गया है)।



2. नास्तिक दर्शन (जिनमें वेदों की प्रमाणिकता को अस्वीकार किया गया है)।





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1. आस्तिक दर्शन


आस्तिक दर्शन में वेदों को प्रमाण माना गया है। इसके अंतर्गत छह मुख्य दर्शनों को षड्दर्शन कहा जाता है:


(i) सांख्य दर्शन (Kapila Muni)


सृष्टि और उसके तत्वों का विश्लेषण करता है।


दो मूल तत्त्वों को मान्यता देता है:


पुरुष (चेतन, आत्मा)।


प्रकृति (अचेतन, भौतिक)।



मोक्ष का अर्थ है, आत्मा का प्रकृति से पूर्ण अलगाव।



(ii) योग दर्शन (पतंजलि)


सांख्य दर्शन का व्यावहारिक रूप है।


आठ अंग (अष्टांग योग) के माध्यम से आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग।


यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि।




(iii) न्याय दर्शन (गौतम)


तर्क, प्रमाण, और न्याय के माध्यम से सत्य को जानने की प्रक्रिया।


प्रमाण (सत्य जानने के साधन) चार प्रकार के:


प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द।




(iv) वैशेषिक दर्शन (कणाद)


भौतिक जगत के गुणों और पदार्थों का विश्लेषण।


सात पदार्थ:


द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय, अभाव।




(v) मीमांसा दर्शन (जैमिनि)


वेदों के कर्मकांड (यज्ञ) पर आधारित।


यज्ञ, अनुष्ठान, और धर्म का पालन मोक्ष का मार्ग है।



(vi) वेदांत दर्शन (बादरायण/शंकराचार्य)


वेदों के अंतिम भाग उपनिषद पर आधारित।


ब्रह्म और आत्मा के एकत्व का सिद्धांत।


तीन प्रमुख भेद:


अद्वैत वेदांत (शंकराचार्य) – ब्रह्म और आत्मा अभिन्न हैं।


विशिष्ट अद्वैत (रामानुजाचार्य) – ब्रह्म और आत्मा अलग होते हुए भी जुड़ाव रखते हैं।


द्वैत वेदांत (मध्वाचार्य) – ब्रह्म और आत्मा पूरी तरह अलग हैं।





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2. नास्तिक दर्शन


नास्तिक दर्शन वेदों को प्रमाण नहीं मानते। इनमें तीन मुख्य प्रणालियाँ हैं:


(i) जैन दर्शन


महावीर स्वामी द्वारा प्रवर्तित।


आत्मा की शुद्धि और मोक्ष पर बल।


पंचमहाव्रत: अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य।


सिद्धांत: अनैकांतवाद, स्याद्वाद।



(ii) बौद्ध दर्शन


बुद्ध द्वारा प्रवर्तित।


चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग।


कर्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत।


मुख्य शाखाएँ:


हीनयान (थेरवाद)।


महायान।




(iii) चार्वाक दर्शन


भौतिकवादी और नास्तिक विचारधारा।


केवल प्रत्यक्ष अनुभव को सत्य मानता है।


आत्मा, परमात्मा, और पुनर्जन्म का खंडन।




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भारतीय दर्शन की विशेषताएँ


1. आध्यात्मिकता: भारतीय दर्शन आत्मा, मोक्ष, और ब्रह्म की गहन व्याख्या करता है।



2. सामंजस्य: विरोधी विचारधाराओं के होते हुए भी इनका उद्देश्य मानव कल्याण है।



3. व्यवहारिकता: हर दर्शन जीवन के किसी न किसी पहलू से जुड़ा है और मनुष्य को सही मार्ग दिखाता है।



4. धार्मिक और लौकिक ज्ञान का समन्वय: भौतिक और आध्यात्मिक जीवन को संतुलित करता है।





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निष्कर्ष


भारतीय दर्शन जीवन और ब्रह्मांड को समझने का एक ऐसा मार्ग है, जो मनुष्य को आत्मसाक्षात्कार और मोक्ष की ओर प्रेरित करता है। चाहे वह आस्तिक हो या नास्तिक, प्रत्येक दर्शन का उद्देश्य मानव जीवन के गूढ़ प्रश्नों का समाधान प्रदान करना और मनुष्य को शाश्वत सत्य के निकट ले जाना है। भारतीय दर्शन न केवल प्राचीन है, बल्कि आज भी यह उतना ही प्रासंगिक और प्रेरणादायक है।


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