ध्रुव चरित्र की कथा An artistic depiction of King Uttanapada from Indian mythology, seated on a royal throne. The king is shown with his son dhruva pr
An artistic depiction of King Uttanapada from Indian mythology, seated on a royal throne. The king is shown with his son dhruva praying to sitting on his lap. |
ध्रुव चरित्र की कथा भारतीय पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह कथा विष्णु पुराण और भागवत पुराण में विस्तार से वर्णित है। यह कहानी भक्ति, तपस्या और ईश्वर में अटूट विश्वास की मिसाल है।
ध्रुव की कथा
राजा उत्तानपाद की दो पत्नियाँ थीं – सुनीति और सुरुचि। सुनीति धर्मपरायण थीं, लेकिन सुरुचि स्वार्थी और ईर्ष्यालु थीं। राजा का झुकाव सुरुचि की ओर अधिक था।
ध्रुव, सुनीति का पुत्र था। एक बार जब वह अपने पिता की गोद में बैठने का प्रयास कर रहा था, सुरुचि ने उसे यह कहकर डांटा कि वह राजा की गोद में बैठने योग्य नहीं है, क्योंकि वह सुरुचि का पुत्र नहीं है। उसने कहा कि यदि वह भगवान नारायण की कृपा प्राप्त करेगा, तभी उसे ऐसा अधिकार मिल सकता है।
ध्रुव इस अपमान से बहुत आहत हुआ और अपनी मां के पास जाकर रोते हुए पूरी बात बताई। सुनीति ने ध्रुव को ईश्वर की भक्ति का मार्ग दिखाया और कहा कि केवल भगवान विष्णु ही उसे न्याय दिला सकते हैं।
तपस्या और भगवान विष्णु की कृपा
ध्रुव ने दृढ़ निश्चय किया और केवल पाँच वर्ष की आयु में जंगल में भगवान विष्णु की भक्ति करने चला गया। वहाँ उसने कठोर तपस्या की। पहले उसने कुछ दिनों तक फल-फूल खाए, फिर जल का त्याग कर दिया और अंततः वायु का भी त्याग कर दिया। उसकी तपस्या इतनी कठोर थी कि तीनों लोक हिल उठे।
भगवान विष्णु उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उसे दर्शन दिए। विष्णु ने उसे आशीर्वाद दिया कि वह ध्रुव तारे के रूप में अमर होगा और सभी लोकों में पूजनीय बनेगा।
ध्रुव तारा
भगवान विष्णु के आशीर्वाद से ध्रुव को स्थायी स्थान प्राप्त हुआ और वह आकाश में एक अचल तारा (ध्रुव तारा) बन गया, जो सदा एक स्थान पर स्थिर रहता है।
कथा का संदेश
ध्रुव चरित्र यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति, तपस्या, और धैर्य से असंभव भी संभव हो सकता है। ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास और समर्पण हमें जीवन में हर कठिनाई पर विजय दिला सकता है।
भागवत पुराण में ध्रुव प्रसंग (स्कंध 4, अध्याय 8-12) में विस्तार से वर्णित है। इसमें ध्रुव की भक्ति, तपस्या, और भगवान विष्णु से उनकी भेंट का वर्णन है। यहाँ कुछ प्रमुख श्लोक और उनका सार प्रस्तुत है:
ध्रुव का अपमान और सुनीति का उपदेश
ध्रुव को जब अपनी सौतेली माँ सुरुचि ने राजा की गोद में बैठने से रोका, तब वह अपनी माँ सुनीति के पास गया। सुनीति ने उसे ईश्वर भक्ति का मार्ग बताया।
श्लोक
तत्स वै परमा देवी स्वपत्युरनिशं प्रियं।
कृत्वा तन्मन आदाय शोकमाहात्म्यशांतये।।
(भागवत पुराण 4.8.21)
भावार्थ:
माँ सुनीति ने ध्रुव से कहा कि भगवान विष्णु ही तुम्हारी रक्षा कर सकते हैं। अपने मन को उनकी भक्ति में लगाओ और संसार के शोक से मुक्त हो जाओ।
ध्रुव की कठोर तपस्या
ध्रुव ने नारद मुनि से उपदेश प्राप्त कर तपस्या प्रारंभ की। उनकी तपस्या की कठोरता का वर्णन इन श्लोकों में हुआ है:
श्लोक
एकैकस्यां तु मासस्य कृतो निर्वेद आत्मनः।
कृष्णपादाम्बुजं बाले ध्यायता स्वान्त उन्मनाः।।
(भागवत पुराण 4.8.78)
भावार्थ:
हर मास में ध्रुव अपनी तपस्या को और कठोर करते गए। पहले उन्होंने केवल फल खाया, फिर जल का त्याग कर दिया और अंत में केवल वायु पर निर्भर रहे। उनका मन भगवान कृष्ण के चरण कमलों में स्थिर हो गया।
भगवान विष्णु का ध्रुव को दर्शन
भगवान विष्णु, ध्रुव की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन देते हैं और उनका मनोबल बढ़ाते हैं।
श्लोक
प्रीतोऽहम् ते प्रजाद्रव्यकालेन्द्रियगुणात्मभिः।
उपस्थितस्य भक्तस्य ददामि वद वरं विभो।।
(भागवत पुराण 4.9.29)
भावार्थ:
भगवान विष्णु ने कहा, "हे ध्रुव, मैं तुम्हारी तपस्या और भक्ति से प्रसन्न हूँ। तुम मुझसे जो भी वरदान चाहो, माँग सकते हो।"
ध्रुव तारे का वरदान
भगवान विष्णु ने ध्रुव को आकाश में स्थायी स्थान का वरदान दिया।
श्लोक
ध्रुवमधिष्ठितं स्थानं सर्वलोकनमस्कृतम्।
रूपं चात्यरिचिर्दिव्यं ददामि भवतः सुतम्।।
(भागवत पुराण 4.9.33)
भावार्थ:
भगवान विष्णु ने ध्रुव को वरदान दिया कि वह ध्रुव तारे के रूप में अमर रहेगा। सभी लोग उसकी पूजा करेंगे और वह सदा अडिग रहेगा।
कथा का सार
ध्रुव प्रसंग यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति और तपस्या से भगवान को प्राप्त किया जा सकता है। भगवान विष्णु अपने भक्त की निष्ठा से प्रसन्न होते हैं और उसे दिव्य स्थान प्रदान करते हैं।
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