भागवत पुराण का दशम स्कंध सार

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 भागवत पुराण का दशम स्कंध सबसे महत्वपूर्ण और विस्तृत है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण के जन्म, बाल लीलाओं, युवावस्था, कंस वध, द्वारका की स्थापना, व...

 भागवत पुराण का दशम स्कंध सबसे महत्वपूर्ण और विस्तृत है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण के जन्म, बाल लीलाओं, युवावस्था, कंस वध, द्वारका की स्थापना, विवाह, और उनके दिव्य कार्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन है। यह 90 अध्यायों में विभाजित है। यहाँ प्रत्येक अध्याय का विस्तृत सारांश प्रस्तुत है:



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अध्याय 1-3: श्रीकृष्ण के प्राकट्य की भूमिका


1. अध्याय 1:


पृथ्वी देवी, अधर्म और अत्याचार से पीड़ित होकर ब्रह्मा जी के पास जाती हैं।


ब्रह्मा देव उन्हें भगवान विष्णु के पास लेकर जाते हैं।


भगवान विष्णु पृथ्वी पर अवतार लेने का आश्वासन देते हैं।




2. अध्याय 2:


कंस का अत्याचार, वासुदेव और देवकी का विवाह।


नारद मुनि बताते हैं कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा।


कंस ने देवकी के सभी पुत्रों की हत्या करने का प्रण लिया।




3. अध्याय 3:


श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में।


वासुदेव श्रीकृष्ण को गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के पास छोड़ते हैं।


यशोदा के पास कन्या रूप में योगमाया जन्म लेती हैं।






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अध्याय 4-12: श्रीकृष्ण की बाल लीलाएँ


4. अध्याय 4:


कंस ने अपने सेवकों को आदेश दिया कि गोकुल के सभी नवजात शिशुओं को मार दिया जाए।


पूतना राक्षसी गोकुल में आई और बालकृष्ण को विष पिलाने का प्रयास किया।


श्रीकृष्ण ने पूतना का वध किया।




5. अध्याय 5:


तृणावर्त नामक राक्षस ने गोकुल पर आक्रमण किया।


श्रीकृष्ण ने उसे वध करके गोकुलवासियों की रक्षा की।




6. अध्याय 6:


बालकृष्ण ने शकटासुर नामक राक्षस को मार गिराया।




7. अध्याय 7:


श्रीकृष्ण ने यशोदा को ब्रह्मांड का दर्शन कराया।


यशोदा ने बालकृष्ण के मुख में पूरे ब्रह्मांड को देखा।




8. अध्याय 8:


दामोदर लीला: यशोदा ने श्रीकृष्ण को उखल से बांधा।


इस लीला के माध्यम से भगवान ने अपनी शरणागत भक्तवत्सलता को प्रकट किया।




9. अध्याय 9:


यमलार्जुन वृक्ष का उद्धार।


भगवान ने अपने भक्त कुबेर के दोनों पुत्रों को मुक्ति प्रदान की।




10. अध्याय 10:


श्रीकृष्ण की नई बाल लीलाएँ: गोप-बालकों और बछड़ों के साथ क्रीड़ा।




11. अध्याय 11:


अघासुर राक्षस का वध।


श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को राक्षस के आतंक से मुक्त किया।




12. अध्याय 12:


ब्रह्मा-विमोह लीला: ब्रह्मा ने गोप-बालकों और बछड़ों की परीक्षा ली।


भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माया से ब्रह्मा जी को पराजित किया।






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अध्याय 13-22: रासलीला और अन्य लीलाएँ


13. अध्याय 13:


गोवर्धन पर्वत की पूजा।


इंद्र ने अपने अहंकार में गोकुलवासियों पर वज्रपात और वर्षा की।




14. अध्याय 14:


श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर सात दिन तक गोकुलवासियों की रक्षा की।




15. अध्याय 15:


कालिय नाग का दमन।


कालिय नाग ने यमुना नदी को विषाक्त कर दिया था।


भगवान ने उसे हराकर यमुना को शुद्ध किया।




16. अध्याय 16:


ब्रजवासियों ने श्रीकृष्ण के अद्भुत कार्यों को देखकर उनकी भक्ति में और प्रगाढ़ता पाई।




17. अध्याय 17:


गोपियों के प्रति श्रीकृष्ण का प्रेम।


गोपियों ने भगवान के प्रति अपनी अनन्य भक्ति प्रकट की।




18. अध्याय 18:


गोपियों की व्रजोत्सव लीला और रासलीला का आरंभ।




19. अध्याय 19:


रासलीला: भगवान और गोपियों के प्रेम का दिव्य प्रदर्शन।




20. अध्याय 20-22:


भगवान ने गोपियों को भक्ति का मार्ग दिखाया।


प्रेम और समर्पण के महत्व को स्पष्ट किया।






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अध्याय 23-40: कंस का वध और मथुरा की स्थापना


23. अध्याय 23:


कंस ने अक्रूर को गोकुल भेजा।




24. अध्याय 24:


अक्रूर ने श्रीकृष्ण और बलराम को मथुरा आने के लिए कहा।




25. अध्याय 25-27:


कंस द्वारा मल्लयुद्ध का आयोजन।


श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया।




26. अध्याय 28:


वसुदेव और देवकी का उद्धार।


मथुरा में धर्म की स्थापना।




27. अध्याय 29-40:


श्रीकृष्ण का गुरुकुल गमन और शिक्षा ग्रहण।


गुरु दक्षिणा के रूप में संदीपनि मुनि के पुत्र का उद्धार।






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अध्याय 41-70: द्वारका और विवाह


41. अध्याय 41-50:


श्रीकृष्ण का द्वारका गमन।


द्वारका नगरी की स्थापना।


रुक्मिणी का हरण और उनसे विवाह।




42. अध्याय 51-60:


स्यमंतक मणि की कथा।


नरकासुर वध और सोलह हजार कन्याओं का उद्धार।




43. अध्याय 61-70:


अन्य रानियों से विवाह।


पांडवों की सहायता।






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अध्याय 71-90: भक्ति, धर्म और श्रीकृष्ण का प्रस्थान


71. अध्याय 71-80:


उधव संदेश और गोपियों को भक्ति का उपदेश।


भक्ति को जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य बताया।




72. अध्याय 81-85:


धर्म और न्याय की पुनर्स्थापना।




73. अध्याय 86-90:


भगवान का पृथ्वी पर अपने कार्य पूरे करना।


श्रीकृष्ण का द्वारका से प्रस्थान।






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दशम स्कंध की शिक्षाएँ


1. भक्ति और प्रेम का महत्व: गोपियों और ब्रजवासियों की निष्ठा अनन्य भक्ति का उदाहरण है।



2. धर्म की पुनर्स्थापना: कंस वध, गोवर्धन पूजा, और द्वारका स्थापना।



3. भगवान की लीलाएँ: प्रत्येक लीला में जीवन के महत्वपूर्ण संदेश छिपे हैं।



4. जीवन का लक्ष्य: भक्ति, प्रेम, और समर्पण द्वारा भगवान को प्राप्त करना।




दशम स्कंध भक्ति, प्रेम, और धर्म का सबसे उत्कृष्ट ग्रंथ है। श्रीकृष्ण की लीलाएँ मानव जीवन को प्रेरणा देने के लिए हैं।



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