भागवत सप्ताह के द्वितीय दिन की कथा

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 भागवत सप्ताह के द्वितीय दिन की कथा में भागवत पुराण के प्रारंभिक अध्यायों की विस्तृत चर्चा की जाती है। इस दिन राजा परीक्षित के जीवन, उनके शाप, और शुकदेव जी के आगमन की कथा सुनाई जाती है। साथ ही सृष्टि की उत्पत्ति, मनु-स्वायंभुव वंश, और भक्त ध्रुव की कथा का वर्णन होता है। कथा को श्लोकों, गीतों, और दृष्टांतों से सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया जाता है।



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द्वितीय दिन की कथा:


1. राजा परीक्षित का जीवन और शाप


राजा परीक्षित का जन्म अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु और उत्तरा के गर्भ से हुआ। भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से परीक्षित की रक्षा की।


राजा परीक्षित धर्मराज के आदर्श थे, परंतु एक दिन जंगल में तपस्वी शमीक ऋषि का अपमान कर बैठे।


ऋषि के पुत्र श्रंगी ने उन्हें तक्षक नाग के डंस से सात दिन में मृत्यु का शाप दिया।



श्लोक:


> अथ ततः सर्पराजो भुजंगो निगडो भयम्।

राजा परीक्षि तं मृत्युम् तक्षकः कालरूपिणा॥




अर्थ: "तक्षक नामक सर्प राजा परीक्षित के लिए मृत्यु का कारण बनेगा।"


दृष्टांत:

जैसे मृत्यु अटल है, वैसे ही भगवान का स्मरण मृत्यु के भय से मुक्त करता है।



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2. राजा परीक्षित का समाधान और शुकदेव जी का आगमन


शाप के बाद, राजा परीक्षित ने सांसारिक मोह त्याग दिया और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग पूछने के लिए गंगा तट पर तपस्या आरंभ की।


शुकदेव जी, जो 16 वर्ष के ब्रह्मज्ञानी बालक थे, राजा परीक्षित को भागवत कथा सुनाने आए।



श्लोक:


> श्रीशुक उवाच:

अर्थयं भवसंसारं मोहत्वात्तदुपायकम्।

श्रुत्वा हृष्यति चेतस्तं भक्त्या गत्वा हरिं परम्॥




अर्थ: "शुकदेव जी ने कहा, 'भगवान की कथा सुनने से संसार का मोह मिटता है और भक्त को मोक्ष प्राप्त होता है।'"


गीत:


"श्रीहरि कथा सुन लो भाई, जन्म-मृत्यु से मुक्ति पाओ।

शरण में जाओ श्यामसुंदर की, भवसागर पार लगाओ।" *




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3. सृष्टि की उत्पत्ति और ब्रह्मा जी की रचना


भगवान विष्णु के नाभि से कमल उत्पन्न हुआ, जिससे ब्रह्मा जी प्रकट हुए।


ब्रह्मा जी ने तपस्या कर भगवान विष्णु के दर्शन किए और सृष्टि रचना का कार्य आरंभ किया।



श्लोक:


> एको नारायणो देवः पूर्वं सृष्ट्वा जगत् स्थितम्।

नाभिकमले ब्रह्मा जायते सृष्टिकारिणः॥




अर्थ: "सृष्टि के आरंभ में केवल नारायण थे। उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए।"


दृष्टांत:


जैसे बीज से वृक्ष उत्पन्न होता है, वैसे ही भगवान विष्णु से सृष्टि की रचना होती है।




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4. ध्रुव की कथा (भक्ति और दृढ़ संकल्प)


राजा उत्तानपाद की पत्नी सुनीति के पुत्र ध्रुव का अपनी विमाता सुरुचि से अपमान हुआ।


दुखी होकर ध्रुव ने अपनी माता से पूछा, "मुझे सम्मान कैसे मिलेगा?"


माता सुनीति ने भगवान विष्णु की भक्ति का मार्ग बताया।


बालक ध्रुव ने वन में जाकर कठोर तप किया।



श्लोक:


> यं नाथं स्वजनो हन्ति मदल्पज्ञेन मोहिता।

तं हृदये सदा ध्यायन् विष्णुमाराधयाम्यहम्॥




अर्थ: "जब अपने ही अपमान करें, तब भगवान विष्णु का ध्यान करके उनकी भक्ति करनी चाहिए।"


दृष्टांत:


जैसे सूर्य की किरणें कमल को खिलाती हैं, वैसे ही भक्ति मानव जीवन को सम्मान और मोक्ष प्रदान करती है।



गीत:


"ध्रुव ने जब तप किया, मिला भगवान का प्यार।

छोटा बालक बन गया, ध्रुवतारा अपार।" *




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5. भगवान विष्णु के दर्शन और ध्रुव का मोक्ष


भगवान विष्णु ने ध्रुव की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर दर्शन दिए।


भगवान ने कहा, "तुम्हें स्थायी स्थान (ध्रुवतारा) मिलेगा, जो हमेशा अमर रहेगा।"


ध्रुव की कथा हमें सिखाती है कि निष्ठा और भक्ति से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।



श्लोक:


> त्वं ध्रुवो लोकपालानां श्रेष्ठो भूत्वा भविष्यसि।

सर्वलोकैः सदा पूज्यं स्थानं ध्रुवं प्राप्स्यसि॥




अर्थ: "भगवान ने कहा, 'तुम लोकपालों में श्रेष्ठ बनोगे और ध्रुवतारा के रूप में पूजनीय रहोगे।'"



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6. कलियुग के प्रभाव और भागवत भक्ति का उपाय


कलियुग में धर्म का केवल एक चरण (सत्य) शेष रहेगा।


भगवान के नाम का जप और उनकी कथा का श्रवण ही मानवता का उद्धार करेगा।



श्लोक:


> नाम संकीर्तनं यस्य सर्व पाप प्रणाशनम्।

प्रणामो दुःख शमनस्तं नमामि हरिं परम्॥




अर्थ: "भगवान का नाम जप सभी पापों को नष्ट करता है और सभी दुखों को हरता है।"


गीत:


"हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे।

हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे।" *




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द्वितीय दिन की शिक्षाएँ


1. भक्ति का महत्व: ध्रुव की कथा सिखाती है कि भक्ति और निष्ठा से असंभव कार्य भी संभव हैं।



2. धैर्य और तप: ध्रुव के दृढ़ संकल्प से यह सीख मिलती है कि हर कठिनाई को सहन करके भगवान को प्रसन्न किया जा सकता है।



3. भागवत श्रवण का प्रभाव: शुकदेव जी ने कहा कि भगवान की कथा सुनने से पाप नष्ट होते हैं और भक्ति जागृत होती है।



4. सत्य और धर्म: कलियुग में सत्य और भक्ति ही मोक्ष का मार्ग हैं।





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द्वितीय दिन का उपसंहार


द्वितीय दिन की कथा हमें सिखाती है कि भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति से जीवन की कठिनाइयों को दूर किया जा सकता है। यह दिन भक्तों को भक्ति और तपस्या की महिमा से प्रेरित करता है।


अंतिम गीत:


"सुनो भागवत की ये कथा, जो है जीवन का आधार।

ध्रुव ने पाया मोक्ष प्रभु से, भक्ति का है यही उपहार।" *




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