श्रीमद्भागवत पुराण में सृष्टि की रचना का वर्णन विस्तार से किया गया है। यह विवरण मुख्यतः द्वितीय स्कंध, तीसरे स्कंध, और चौथे स्कंध में दिया गया है। सृष्टि की रचना भगवान विष्णु की इच्छा और उनके विभिन्न रूपों द्वारा की जाती है। यहाँ संक्षेप में सृष्टि की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है:
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1. भगवान की प्रेरणा और प्राकृत प्रलय के बाद स्थिति
सृष्टि का आरंभ तब होता है जब प्राकृत प्रलय (महाप्रलय) के बाद संपूर्ण सृष्टि निष्क्रिय अवस्था में होती है। यह अवस्था "प्रलय" कहलाती है। भगवान नारायण उस समय योगनिद्रा में स्थित रहते हैं।
श्लोक:
> स यः पराननुशये जगदण्डशायो
गर्भं दधौ स्वमतिरात्मन्यतर्क्यमाणम्।
सोऽध्याक्षिपत्कपिलवत्स इत: स्वशक्त्या
यद्दत्तयो यदुरुगायवदन्ति सन्तः॥
(भागवत 2.10.10)
(अर्थ: भगवान विष्णु जब प्रलय के समय योगनिद्रा में होते हैं, तब वे अपने भीतर सृष्टि का गर्भ धारण करते हैं और अपनी शक्ति से इसे जागृत करते हैं।)
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2. महत्तत्त्व और सृष्टि का आरंभ
भगवान की इच्छा से महत्तत्त्व (ब्रह्मांडीय बुद्धि) की उत्पत्ति होती है। यही सृष्टि का पहला तत्व है। इसके बाद अन्य तत्त्वों की क्रमिक उत्पत्ति होती है:
1. महत्तत्त्व: सर्वप्रथम महत्तत्त्व उत्पन्न होता है, जो सृष्टि का मूल कारण है।
2. अहंकार: महत्तत्त्व से अहंकार (स्वयं का ज्ञान) उत्पन्न होता है, जो तीन प्रकार का होता है:
सात्विक अहंकार (मन और देवताओं का कारण)
राजसिक अहंकार (इंद्रियों का कारण)
तामसिक अहंकार (महाभूतों और तन्मात्राओं का कारण)
श्लोक:
> यदेतस्मात् त्रिविधोऽहङ्कृतिरभूत्स तु सत्त्वात्
मनः शब्दं च सात्विकं च स्रोत्रं च तत्र।
(भागवत 3.26.28)
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3. पंचमहाभूतों और तन्मात्राओं की उत्पत्ति
तामसिक अहंकार से पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) और पंच तन्मात्राएं (गंध, रस, रूप, स्पर्श, और शब्द) उत्पन्न होती हैं।
> अहंकाराद् भूतेषु वागादीनां च संस्थितिः।
तन्मात्राणि च श्रोत्रादि सह तैजः पृथग् यतः॥
(भागवत 3.26.31)
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4. ब्रह्मा की उत्पत्ति
भगवान विष्णु की नाभि से कमल उत्पन्न होता है, जिसमें ब्रह्मा जी का जन्म होता है। ब्रह्मा जी सृष्टि के निर्माणकर्ता (सृजक) हैं।
> नाभ्याब्जादासवोऽभवन्नभवद्यत्र विस्वसृक्।
स्वधाम्ना भगवान् विष्णुर्निश्श्वासवशवर्तिना॥
(भागवत 3.8.15)
ब्रह्मा जी को भगवान विष्णु से सृष्टि रचने का आदेश मिलता है।
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5. ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना
ब्रह्मा जी ध्यान और तपस्या के माध्यम से भगवान विष्णु की प्रेरणा प्राप्त करते हैं और सृष्टि की रचना आरंभ करते हैं। वे सबसे पहले चार सनकादि ऋषियों को उत्पन्न करते हैं। फिर, क्रोध से रुद्र (शिव) का जन्म होता है। इसके बाद देवता, असुर, मानव, पशु, पक्षी, और अन्य जीवों की रचना होती है।
श्लोक:
> सञ्जातः कर्तुमारेभे यदा लोकान्स भगवान्।
कालेनानुगृहीतोऽसौ वेदगर्भो महातपाः॥
(भागवत 3.10.4)
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6. चतुर्व्यूह और सृष्टि
भगवान के चतुर्व्यूह रूप (विष्णु, संकर्षण, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध) के माध्यम से सृष्टि चलती है।
विष्णु: पालनकर्ता।
संकर्षण: विनाशकर्ता।
प्रद्युम्न: सृष्टि का प्रारंभ।
अनिरुद्ध: समस्त जीवों के नियंता।
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7. जीवों की उत्पत्ति
सृष्टि के विभिन्न वर्ग:
1. देवता: सात्विक गुण से।
2. असुर: तामसिक गुण से।
3. मनुष्य: राजसिक गुण से।
4. अन्य जीव-जंतु: विभिन्न गुणों के संयोग से।
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8. सृष्टि के चक्र का पुनरावृत्ति
जब सृष्टि पूरी हो जाती है, तो यह भगवान की इच्छा से समय-समय पर प्रलय और सृजन के चक्र में घूमती रहती है।
> अव्यक्तं व्यक्तमापन्नं
व्यक्तं चैव पुनः स्मृतम्।
प्रकृतेः पुरुषस्यापि
सृष्टि च प्रलयस्तथा॥
(भागवत 12.4.35)
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सारांश
सृष्टि की रचना भगवान विष्णु के माध्यम से होती है। वे सर्वप्रथम महत्तत्त्व, पंचमहाभूत, और तन्मात्राओं को उत्पन्न करते हैं। ब्रह्मा जी, जो विष्णु से उत्पन्न हुए हैं, सभी जीवों और संसार की रचना करते हैं। भगवान विष्णु ही सृष्टि के मूल कारण और संचालनकर्ता हैं।
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