आदि शंकराचार्य (788–820 ईस्वी) भारतीय दर्शन के महान आचार्य और अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक थे। वेदांत दर्शन को एक दार्शनिक और आध्यात्मिक ऊँचाई प्रदान करन
आदि शंकराचार्य और उनके वेदांत भाष्य: अद्वैत वेदांत के शिखर परमार्थ
आदि शंकराचार्य (788–820 ईस्वी) भारतीय दर्शन के महान आचार्य और अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक थे। वेदांत दर्शन को एक दार्शनिक और आध्यात्मिक ऊँचाई प्रदान करने के लिए उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की। उनकी वेदांत भाष्य उपनिषदों, ब्रह्मसूत्र, और भगवद्गीता पर लिखी गई टिप्पणियाँ हैं, जिनमें उन्होंने अद्वैत वेदांत के गहन सिद्धांतों को स्पष्ट और व्यवस्थित किया।
आदि शंकराचार्य की व्याख्याएँ वैदिक ज्ञान को तर्कसंगत और सार्वभौमिक बनाने के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। उनके वेदांत भाष्य भारतीय दर्शन की अमूल्य धरोहर हैं।
आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय
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जन्म और स्थान:
- शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में केरल के कालाडी गाँव में हुआ।
- उनके माता-पिता शिवगुरु और आर्यांबा वैष्णव ब्राह्मण थे।
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शिक्षा और दीक्षा:
- उन्होंने बाल्यकाल में ही वेद, उपनिषद, और शास्त्रों का अध्ययन किया।
- उनके गुरु गोविंद भगवत्पाद ने उन्हें अद्वैत वेदांत की शिक्षा दी।
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कार्य और उद्देश्य:
- उन्होंने पूरे भारत में भ्रमण कर धर्म, दर्शन, और सामाजिक व्यवस्था को पुनर्जीवित किया।
- अद्वैत वेदांत का प्रचार करते हुए उन्होंने जाति, पंथ, और भेदभाव को मिटाने की कोशिश की।
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मृत्यु:
- शंकराचार्य केवल 32 वर्ष की आयु में हिमालय में ब्रह्मलीन हो गए।
वेदांत भाष्य: परिचय
शंकराचार्य के वेदांत भाष्य वेदांत ग्रंथों (उपनिषद, ब्रह्मसूत्र, और भगवद्गीता) पर लिखी गई टिप्पणियाँ हैं। इन व्याख्याओं में उन्होंने अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को तर्कसंगत और सरल रूप में प्रस्तुत किया।
भाष्य लिखे गए प्रमुख ग्रंथ:
- प्रस्थानत्रयी:
- ब्रह्मसूत्र भाष्य
- उपनिषद भाष्य (मुख्य 10 उपनिषद)
- भगवद्गीता भाष्य
1. ब्रह्मसूत्र भाष्य
परिचय:
- ब्रह्मसूत्र, जिसे वेदांत सूत्र भी कहा जाता है, अद्वैत वेदांत का मुख्य ग्रंथ है। इसे बादरायण ने लिखा था।
- शंकराचार्य ने ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखकर अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को व्यवस्थित किया।
मुख्य सिद्धांत:
- ब्रह्म सत्य, जगत मिथ्या:
- ब्रह्म ही परम सत्य है। संसार (जगत) केवल माया का प्रक्षेपण है।
- जीव और ब्रह्म की एकता:
- आत्मा (जीव) और ब्रह्म भिन्न नहीं हैं। यह अज्ञान (अविद्या) के कारण अलग प्रतीत होते हैं।
- माया का सिद्धांत:
- माया वह शक्ति है, जो ब्रह्म को छिपाती है और संसार को वास्तविक प्रतीत कराती है।
- मुक्ति का मार्ग:
- आत्मा और ब्रह्म की एकता का ज्ञान ही मोक्ष है।
2. उपनिषद भाष्य
मुख्य उपनिषदों पर भाष्य:
शंकराचार्य ने 10 मुख्य उपनिषदों पर भाष्य लिखा:
- ईशावास्य उपनिषद
- कठ उपनिषद
- केन उपनिषद
- मुण्डक उपनिषद
- मांडूक्य उपनिषद
- तैत्तिरीय उपनिषद
- ऐतरेय उपनिषद
- छांदोग्य उपनिषद
- बृहदारण्यक उपनिषद
- प्रश्न उपनिषद
प्रमुख विचार:
- आत्मा की प्रकृति:
- आत्मा अनादि, अनंत, और अपरिवर्तनीय है। आत्मा का वास्तविक स्वरूप ब्रह्म है।
- माया और अज्ञान:
- संसार माया के कारण उत्पन्न होता है। अज्ञान ही आत्मा और ब्रह्म की भिन्नता का कारण है।
- साधना का मार्ग:
- ज्ञान, भक्ति, और ध्यान के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
- तत्वमसि (तू वह है):
- यह महावाक्य आत्मा और ब्रह्म की एकता को इंगित करता है।
3. भगवद्गीता भाष्य
परिचय:
- भगवद्गीता को अद्वैत वेदांत के दृष्टिकोण से शंकराचार्य ने व्याख्यायित किया।
- गीता में कर्म, भक्ति, और ज्ञान के माध्यम से मोक्ष का मार्ग दिखाया गया है।
प्रमुख विचार:
- कर्म, भक्ति, और ज्ञान का समन्वय:
- शंकराचार्य ने ज्ञान को सर्वोपरि माना, लेकिन भक्ति और कर्म को भी मोक्ष प्राप्ति में सहायक बताया।
- निष्काम कर्म:
- गीता के अनुसार, कर्म करना आवश्यक है, लेकिन फल की आसक्ति छोड़नी चाहिए।
- आत्मा की अमरता:
- आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। यह शाश्वत और अमर है।
- ब्रह्मज्ञान का महत्व:
- आत्मा और ब्रह्म की एकता का ज्ञान ही मोक्ष का वास्तविक मार्ग है।
अद्वैत वेदांत के प्रमुख सिद्धांत
- ब्रह्म सत्य, जगत मिथ्या:
- ब्रह्म ही वास्तविकता है। संसार केवल माया का भ्रम है।
- जीव और ब्रह्म की अद्वैतता:
- जीवात्मा और परमात्मा भिन्न नहीं हैं। यह अज्ञान के कारण अलग प्रतीत होते हैं।
- माया का सिद्धांत:
- माया वह शक्ति है, जो सत्य और असत्य के बीच भ्रम उत्पन्न करती है।
- मोक्ष का मार्ग:
- आत्मज्ञान (ब्रह्मज्ञान) प्राप्त करने से अज्ञान का नाश होता है और मोक्ष प्राप्त होता है।
- महावाक्य:
- "अहं ब्रह्मास्मि" (मैं ब्रह्म हूँ), "तत्वमसि" (तू वह है), "प्रज्ञानं ब्रह्म" (ज्ञान ही ब्रह्म है) आदि।
आदि शंकराचार्य के वेदांत भाष्य की विशेषताएँ
- सरल और स्पष्ट शैली:
- उनकी रचनाएँ तर्कसंगत और व्यावहारिक हैं, जो साधकों के लिए सरल हैं।
- तर्क और विवेक का उपयोग:
- शंकराचार्य ने अपने भाष्यों में तर्क और विवेक का अद्भुत उपयोग किया है।
- भक्ति और ज्ञान का समन्वय:
- अद्वैत वेदांत में भक्ति और ज्ञान को समान रूप से महत्व दिया गया है।
- विरोधी दर्शनों का खंडन:
- उन्होंने बौद्ध, जैन, और अन्य दर्शनों का खंडन कर अद्वैत वेदांत की श्रेष्ठता स्थापित की।
- आधुनिक प्रासंगिकता:
- उनके सिद्धांत आज भी भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता का आधार हैं।
आदि शंकराचार्य का प्रभाव
- भारतीय दर्शन पर प्रभाव:
- उन्होंने अद्वैत वेदांत को भारतीय दर्शन का मुख्य प्रवाह बनाया।
- सामाजिक और धार्मिक सुधार:
- उन्होंने जाति और पंथ के भेदभाव को मिटाने का प्रयास किया।
- भक्ति आंदोलन पर प्रभाव:
- उनकी शिक्षाओं ने भक्ति आंदोलन को गहराई और दिशा दी।
- वैश्विक प्रभाव:
- उनके विचार आज भी विश्वभर में अद्वैत वेदांत के अध्ययन का मुख्य आधार हैं।
निष्कर्ष
आदि शंकराचार्य के वेदांत भाष्य भारतीय दर्शन की एक अमूल्य धरोहर हैं। उनकी रचनाएँ अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को स्पष्ट और व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करती हैं।
उनकी शिक्षाएँ यह संदेश देती हैं कि आत्मा और ब्रह्म की एकता को समझकर ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। उनकी रचनाएँ आज भी मानवता के लिए आत्मज्ञान और शांति का मार्गदर्शक हैं।
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