भागवत पुराण के चतुर्थ स्कंध में कुल 31 अध्याय हैं। इन अध्यायों का सारांश इस प्रकार है: --- अध्याय 1: मनु और उनकी संतानों का वर्णन इस अध्याय...
भागवत पुराण के चतुर्थ स्कंध में कुल 31 अध्याय हैं। इन अध्यायों का सारांश इस प्रकार है:
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अध्याय 1: मनु और उनकी संतानों का वर्णन
इस अध्याय में मनु और उनकी संतानों के वंश का वर्णन है।
मनु के वंशजों में उत्तानपाद और प्रियव्रत का उल्लेख किया गया है।
उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव की कथा की पृष्ठभूमि तैयार की गई है।
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अध्याय 2-4: ध्रुव की कथा
ध्रुव बालक को विमाता द्वारा अपमानित किया जाता है।
वह अपनी माता सुनीति से मार्गदर्शन लेकर वन में तपस्या के लिए जाता है।
भगवान नारायण की कठोर तपस्या करता है।
नारायण उसे दर्शन देते हैं और ध्रुव को अमर ध्रुवतारा का वरदान देते हैं।
इस कथा में ध्रुव की भक्ति और दृढ़ संकल्प का महत्व बताया गया है।
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अध्याय 5-7: राजा अंग और राजा वेन की कथा
ध्रुव के वंशज राजा अंग का वर्णन किया गया है।
अंग के पुत्र वेन अधर्मी और दुराचारी राजा बनते हैं।
ऋषि उनके अत्याचारों से प्रजा को बचाने के लिए वेन का वध करते हैं।
ऋषि वेन के मृत शरीर से पृथु महाराज को उत्पन्न करते हैं।
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अध्याय 8-13: पृथु महाराज की कथा
पृथु महाराज को भगवान विष्णु का अंशावतार बताया गया है।
उन्होंने प्रजा की भलाई के लिए पृथ्वी का दोहन किया और कृषि का प्रारंभ किया।
पृथु ने पृथ्वी को "गो" के रूप में दुह कर प्रजा की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति की।
उनकी शासन व्यवस्था न्याय, धर्म और भक्ति पर आधारित थी।
पृथु ने यज्ञ किए और भगवद्भक्ति का आदर्श प्रस्तुत किया।
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अध्याय 14-15: महारानी अर्चि और पृथु का मोक्ष
पृथु महाराज के बाद उनकी पत्नी अर्चि का भी धर्म पालन और तप का वर्णन किया गया।
दोनों ने मोक्ष प्राप्त किया और भगवत धाम को प्राप्त हुए।
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अध्याय 16-22: दक्ष यज्ञ की कथा
दक्ष प्रजापति ने यज्ञ आयोजित किया लेकिन शिवजी का अपमान किया।
सती ने इस अपमान से व्यथित होकर योग अग्नि में अपने शरीर का त्याग कर दिया।
शिव के गणों ने यज्ञ को नष्ट कर दिया।
बाद में शिव की क्षमा से दक्ष को नया जीवन मिला और यज्ञ संपन्न हुआ।
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अध्याय 23-24: पृथ्वी पर पाप और पुण्य का वर्णन
इसमें पृथ्वी पर पाप और पुण्य के स्वरूप का वर्णन है।
धर्म और अधर्म के बीच अंतर बताया गया है।
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अध्याय 25-31: सनकादि ऋषि और महाराज प्राचीनबर्हि की कथा
सनकादि ऋषि ने महाराज प्राचीनबर्हि को "पंचीकरण" की कथा सुनाई।
उन्होंने संसार के माया जाल को समझाया और आत्मज्ञान का मार्ग बताया।
राजा ने सनकादि ऋषियों के उपदेशों को समझकर जीवन का त्याग कर मोक्ष प्राप्त किया।
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प्रमुख शिक्षाएँ
1. भक्ति, निष्ठा और तपस्या के माध्यम से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।
2. धर्म और अधर्म का स्पष्ट भेद जानना आवश्यक है।
3. प्रजा और राजा के बीच कर्तव्यों और अधिकारों का संतुलन।
4. संसार की माया और मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग।
चतुर्थ स्कंध भक्ति, धर्म, और आत्मज्ञान के महत्व को अध्याय दर अध्याय स्पष्ट करता है।
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