भागवत सप्ताह के छठे दिन की कथा

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 भागवत सप्ताह के छठे दिन की कथा में मुख्यतः षष्ठ और सप्तम स्कंध का वर्णन किया जाता है। इसमें भगवान की भक्तवत्सलता, प्रह्लाद चरित्र, और भगवान के नृसिंह अवतार की कथा सुनाई जाती है। यह दिन श्रोताओं को सिखाता है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा हर स्थिति में करते हैं, चाहे परिस्थिति कितनी ही कठिन क्यों न हो।



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छठे दिन की कथा:



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1. अजेय भक्ति: अजामिल की कथा


कथा:


अजामिल एक ब्राह्मण पुत्र था, लेकिन बुरे संगत में पड़कर अधर्म के मार्ग पर चल पड़ा।


मृत्यु के समय उसने अपने पुत्र "नारायण" को पुकारा।


भगवान का नाम लेने मात्र से यमदूत उसके पास नहीं आ सके और विष्णुदूतों ने उसकी रक्षा की।


अजामिल ने अपनी भूल को समझा और जीवन का शेष भाग भक्ति में लगा दिया।



श्लोक:


> सङ्कीर्तनं भगवतो गुणकर्मनामाम्,

संसारबन्धनममोघशरणं विनश्येत्॥




अर्थ: "भगवान के नाम का संकीर्तन संसार के बंधनों को समाप्त करता है।"


गीत:


"नारायण नाम पुकारा, हर संकट मिट गया सारा।

नाम में है शक्ति अपार, यह सिखाए अजामिल का विचार।" *




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2. प्रह्लाद चरित्र: भक्ति और विश्वास


कथा:


हिरण्यकशिपु ने भगवान विष्णु से बदला लेने के लिए कठोर तप किया और वरदान प्राप्त किया।


उसने स्वयं को भगवान घोषित कर दिया और विष्णु-भक्तों को दंडित करने लगा।


हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद बाल्यकाल से ही भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था।


प्रह्लाद ने विष्णु भक्ति का प्रचार किया और अपने पिता के अधर्म के सामने झुका नहीं।



श्लोक:


> नैवोध्वेति परं स्थानं संसाराच्छिन्नसंशयः।

सदा भक्त्या परं विष्णुं, भक्तानां भक्तवत्सलम्॥




अर्थ: "भक्त विष्णु में अटूट विश्वास रखते हैं और संसार के मोह से मुक्त होकर भगवान का स्मरण करते हैं।"


दृष्टांत:


जैसे सूर्य की किरणें अंधकार को मिटा देती हैं, वैसे ही भक्ति अज्ञान को नष्ट करती है।



गीत:


"प्रह्लाद की भक्ति देखो, हरि नाम में सबकुछ देखो।

पिता का क्रोध झेल लिया, पर भक्ति से मुंह न मोड़ा।" *




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3. हिरण्यकशिपु का अधर्म और अत्याचार


कथा:


हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने के लिए अनेक प्रयास किए, लेकिन भगवान ने हर बार उनकी रक्षा की।


1. अग्नि में जलाना: प्रह्लाद को होलिका के साथ आग में बैठाया गया, लेकिन वह सुरक्षित रहे।



2. सर्पों से डसवाना: सर्प भी उन्हें नुकसान नहीं पहुंचा सके।



3. पर्वत से गिराना: पर्वत से गिराने पर भी भगवान ने उनकी रक्षा की।





श्लोक:


> सर्वत्र मां पश्यति पाण्डवैनं,

सर्वं च मयि पश्यति।

तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥




अर्थ: "जो भक्त हर जगह मुझे देखता है, मैं उससे कभी दूर नहीं होता और वह मुझसे दूर नहीं होता।"


गीत:


"भगवान ने रक्षा की, हर संकट से बचा लिया।

प्रह्लाद की सच्ची भक्ति ने, हिरण्यकशिपु को हरा दिया।" *




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4. भगवान नृसिंह अवतार


कथा:


हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा, "तेरे भगवान कहां हैं?"


प्रह्लाद ने उत्तर दिया, "भगवान सर्वत्र हैं।"


क्रोध में आकर हिरण्यकशिपु ने खंभे को तोड़ा, और भगवान नृसिंह अवतार में प्रकट हुए।


भगवान ने हिरण्यकशिपु को संध्या के समय, द्वार पर, नाखूनों से मारकर अपने भक्त की रक्षा की।



श्लोक:


> सत्यं विदातुं निजभृत्यभाषितं,

व्याप्तिं च भूतैः अखिलैः चात्मनः।

अदृष्टात्त्यद्भुतरूपमुद्वहन्,

स्तम्भे सभायां नृहरिं नमामि॥




अर्थ: "भगवान ने अपने भक्त के वचनों को सत्य सिद्ध करने के लिए खंभे से प्रकट होकर हिरण्यकशिपु का वध किया।"


गीत:


"नृसिंह रूप में आए भगवान, भक्त के लिए किए प्रकट भगवान।

हिरण्यकशिपु का अंत किया, धर्म का दीप जलाया।" *




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5. प्रह्लाद की भक्ति और भगवान का आशीर्वाद


कथा:


भगवान नृसिंह ने प्रह्लाद को आशीर्वाद दिया कि वे सदा धर्म का पालन करेंगे।


प्रह्लाद ने भगवान से प्रार्थना की कि वे अपने पिता को भी मोक्ष प्रदान करें।



श्लोक:


> तप्तं तप्यति यत्प्राणाः, पितुः पापमपाकुरु।

भक्तानां भक्तवत्सलं, हरिं नित्यमनुस्मर॥




अर्थ: "प्रह्लाद ने भगवान से प्रार्थना की कि उनके पिता के पाप नष्ट कर उन्हें मोक्ष प्रदान करें।"


गीत:


"प्रह्लाद ने की प्रार्थना भारी, भगवान ने सुन ली पुकार।

पिता को भी दी मुक्ति, सिखाया धर्म का आधार।" *




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6. भक्ति का महत्व और शिक्षाएँ


यह कथा सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों की हर परिस्थिति में रक्षा करते हैं।


निस्वार्थ भक्ति और विश्वास से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।


भक्तवत्सल भगवान अपने भक्तों के प्रति सदा दयालु रहते हैं।



श्लोक:


> तस्मात्सर्वात्मना राजन् हरिः सर्वत्र पूज्यते।

भक्त्या श्रीकृष्णनामानि संकीर्तयेत् भवाब्धितः॥




अर्थ: "इसलिए, हर स्थिति में भगवान की पूजा करें। कृष्ण के नाम का संकीर्तन ही भवसागर से पार करने का साधन है।"



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छठे दिन का उपसंहार (गीत):


"प्रह्लाद ने भक्ति दिखाई, विष्णु के चरणों में आस लगाई।

नृसिंह ने भक्त को बचाया, धर्म का दीप फिर से जलाया।" *




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छठे दिन की शिक्षाएँ:


1. भक्ति की शक्ति: प्रह्लाद ने सिखाया कि सच्ची भक्ति से हर कठिनाई पर विजय पाई जा सकती है।



2. भगवान की सर्वव्यापकता: भगवान हर जगह विद्यमान हैं और हर पल अपने भक्तों के साथ हैं।



3. धर्म की विजय: अधर्म और अहंकार का अंत निश्चित है, धर्म ही सदा विजयी होता है।



4. भगवत्स्वरूप: भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी रूप में प्रकट हो सकते हैं।





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छठे दिन की कथा भगवान की भक्तवत्सलता, धर्म की स्थापना, और भक्ति की महिमा को समझाती है। यह दिन श्रोताओं को भक्ति और विश्वास के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।



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