सरकारी नौकरियों पर मंडराता संकट: कारण, प्रभाव और समाधान

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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सरकारी नौकरियाँ लंबे समय से भारतीय समाज में स्थिरता और प्रतिष्ठा का प्रतीक रही हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में और आगामी समय में सरकारी नौकरियों पर कई प्रकार के संकट उभर रहे हैं। ये संकट न केवल नई भर्तियों में कमी के रूप में दिख रहे हैं, बल्कि वर्तमान सरकारी कर्मचारियों के लिए भी चुनौतियाँ लेकर आ रहे हैं। नीचे इसका विस्तृत विश्लेषण किया गया है:



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1. सरकारी नौकरियों पर मंडराता संकट: मुख्य कारण


(i) निजीकरण का प्रभाव


सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण:

रेलवे, बीमा, बैंकिंग और बिजली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निजीकरण हो रहा है।


रेलवे में माल ढुलाई और यात्री सेवाओं के निजीकरण के कारण भर्ती की संख्या घट रही है।


बैंकों के विलय और निजीकरण के कारण नौकरियों के अवसर कम हो रहे हैं।




(ii) स्वचालन और डिजिटलीकरण


तकनीकी प्रगति का प्रभाव:

ई-गवर्नेंस और डिजिटल प्लेटफार्मों के बढ़ते उपयोग से श्रम आधारित कार्यों में कमी हो रही है।


ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के कारण ऐसे कार्य, जो पहले मैनुअल होते थे, अब स्वचालित हो रहे हैं।


इससे क्लर्क, डाक सेवक, और लोअर-लेवल प्रशासनिक नौकरियों की माँग घट रही है।




(iii) ठेका आधारित भर्ती का चलन


अनुबंधित रोजगार:

कई सरकारी विभाग अब स्थायी कर्मचारियों के बजाय ठेके पर काम करने वाले कर्मियों को प्राथमिकता दे रहे हैं।


इससे स्थायी नौकरियों की संख्या कम हो रही है।


अनुबंधित कर्मियों को कम वेतन और सीमित अधिकार मिलते हैं।




(iv) वित्तीय दबाव


राज्यों और केंद्र पर वित्तीय बोझ:

सरकारों को अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ रही है, जिससे नई नौकरियाँ निकालने में संकोच हो रहा है।


पेंशन योजनाओं का बढ़ता बोझ।


कोविड-19 के बाद राजकोषीय घाटे में वृद्धि।




(v) नई पेंशन योजना (NPS)


पुरानी पेंशन योजना (OPS) का समाप्त होना:

NPS के लागू होने के बाद सरकारी नौकरियों में पेंशन सुरक्षा खत्म हो गई।


नई पीढ़ी के लिए सरकारी नौकरियाँ उतनी आकर्षक नहीं रही हैं।


स्थायी सुरक्षा की कमी के कारण नौकरियों का आकर्षण घट रहा है।




(vi) नई भर्ती में कमी


पदों का लंबा समय तक खाली रहना:

सरकारें कई वर्षों तक पदों को रिक्त रख रही हैं।


उदाहरण: रेलवे में लाखों पद खाली हैं, लेकिन नई भर्तियाँ सीमित हैं।


शिक्षकों और पुलिसकर्मियों के पदों पर भर्ती धीमी गति से हो रही है।





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2. सरकारी नौकरियों पर संकट का प्रभाव


(i) युवाओं में असंतोष


बेरोजगारी दर में वृद्धि और सरकारी नौकरियों में कटौती के कारण युवाओं में निराशा बढ़ रही है।


प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाले अभ्यर्थियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, लेकिन रिक्तियों की संख्या घट रही है।



(ii) सामाजिक असंतुलन


सरकारी नौकरियाँ अब केवल एक छोटे वर्ग तक सीमित होती जा रही हैं, जिससे आर्थिक और सामाजिक असमानता बढ़ रही है।



(iii) सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता पर असर


स्थायी कर्मचारियों की कमी से सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।


ठेके पर रखे गए कर्मचारी कम अनुभव और अधिकारों के कारण बेहतर सेवाएँ नहीं दे पाते।



(iv) युवाओं का निजी क्षेत्र की ओर झुकाव


सरकारी नौकरियों की घटती संख्या और आकर्षण के कारण युवा निजी क्षेत्र की ओर रुख कर रहे हैं।


हालांकि, निजी क्षेत्र में स्थायित्व और सुरक्षा की कमी होती है।




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3. संभावित समाधान


(i) निजीकरण की सीमाएँ तय करना


संवेदनशील क्षेत्रों (जैसे रेलवे, बैंकिंग और शिक्षा) में निजीकरण को सीमित करना।


सार्वजनिक उपक्रमों को बेहतर प्रबंधन के माध्यम से लाभदायक बनाना।



(ii) ठेका आधारित भर्ती को नियंत्रित करना


ठेका प्रणाली को सीमित करके स्थायी पदों पर नियुक्ति को प्राथमिकता देना।


ठेका कर्मचारियों के लिए उचित वेतन और अधिकार सुनिश्चित करना।



(iii) रिक्त पदों को भरना


शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे प्राथमिक क्षेत्रों में रिक्त पदों को शीघ्र भरना।


लंबित भर्तियों को तेज़ी से पूरा करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता।



(iv) पुरानी पेंशन योजना (OPS) पर पुनर्विचार


पुरानी पेंशन योजना को पुनः लागू करने पर विचार करना, ताकि सरकारी नौकरियाँ युवाओं के लिए आकर्षक बनें।



(v) नई तकनीकों में कुशलता बढ़ाना


युवाओं को डिजिटल और तकनीकी कौशल प्रदान करने के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम।


सरकारी सेवाओं में तकनीकी प्रगति के साथ रोजगार के नए अवसर उत्पन्न करना।



(vi) छोटे व्यवसायों और स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन


सरकारी नौकरियों पर निर्भरता कम करने के लिए युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित करना।


स्टार्टअप इंडिया और स्किल इंडिया जैसी योजनाओं को और प्रभावी बनाना।




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4. भविष्य का परिदृश्य


(i) स्थिरता और सुधार का प्रयास


सरकारी नौकरियों में सुधार के प्रयास जारी रहेंगे, लेकिन तकनीकी प्रगति और निजीकरण के कारण परंपरागत नौकरियाँ धीरे-धीरे घट सकती हैं।


नए क्षेत्रों, जैसे साइबर सुरक्षा, ग्रीन जॉब्स और डिजिटल सेवाओं में सरकारी नौकरियाँ बढ़ सकती हैं।



(ii) ग्रामीण क्षेत्रों में फोकस


ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी सेवाओं के विस्तार के लिए नई नौकरियाँ पैदा की जा सकती हैं।


जैसे कि ग्राम पंचायत, स्वास्थ्य सेवाएँ, और ग्रामीण विकास योजनाएँ।



(iii) सरकारी और निजी क्षेत्र का संतुलन


सरकारी और निजी क्षेत्रों में संतुलन बनाना आवश्यक होगा।


सरकार को निजी क्षेत्र में रोजगार सृजन के लिए नीतियाँ बनानी होंगी।




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निष्कर्ष


सरकारी नौकरियों पर मंडराता संकट भारतीय समाज और युवाओं के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। हालाँकि, यह संकट निजीकरण, तकनीकी प्रगति, और प्रशासनिक सुधारों का परिणाम है, लेकिन इसे नीतिगत हस्तक्षेप और संरचनात्मक सुधारों के माध्यम से हल किया जा सकता है। सरकार को नौकरियों में स्थायित्व, पेंशन सुरक्षा, और पारदर्शिता बढ़ाने के साथ-साथ नई तकनीकों और डिजिटलीकरण से रोजगार के अवसर सृजित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।


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