"धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं" का गहन विश्लेषण

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 "धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं" का गहन विश्लेषण:

शब्द विभाजन और अर्थ:

1. "धाम्ना":

  • "धाम" का अर्थ है "प्रकाश," "तेज," "शक्ति," या "स्थान।"
  • यहाँ "धाम्ना" भगवान की दिव्य शक्ति और उनके धाम (निवास स्थान) को संदर्भित करता है।
  • यह उनके परम तेजस्वी और शुद्ध स्वरूप को व्यक्त करता है।

2. "स्वेन":

  • "स्व" का अर्थ है "स्वयं का।"
  • "स्वेन" का अर्थ है "अपनी स्वयं की शक्ति या तेज से।"
  • यह दर्शाता है कि भगवान अपनी दिव्य शक्ति से स्वतः ही पूर्ण हैं।

3. "सदा":

  • "सदा" का अर्थ है "सदा," "हमेशा," या "नित्य।"
  • यह भगवान की शक्ति और तेजस्वरूप को शाश्वत और अपरिवर्तनीय बताता है।

4. "निरस्तकुहकं":

  • "निरस्त" का अर्थ है "दूर करना" या "समाप्त करना।"
  • "कुहकं" का अर्थ है "माया," "छल," "भ्रम," या "असत्य।"
  • "निरस्तकुहकं" का अर्थ है "जिसमें माया या छल का कोई स्थान न हो।"

पूर्ण वाक्यांश का अर्थ:

  • "धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं" का अर्थ है "भगवान अपनी दिव्य शक्ति से सदा ही माया (असत्य, भ्रम) को समाप्त करते हैं, और उनका धाम (निवास स्थान) पूर्ण रूप से शुद्ध और माया से रहित है।"

गहन व्याख्या:

1. भगवान का धाम और उनकी शक्ति (धाम्ना स्वेन):

  • "धाम" भगवान का प्रकाश और उनकी दिव्य सत्ता को दर्शाता है।
  • उनका धाम (वैदिक दृष्टि में वैकुंठ या गोलोक) पूर्णत: शुद्ध, दिव्य, और माया से रहित है।
  • "स्वेन" यह स्पष्ट करता है कि भगवान अपनी शक्ति से स्वतः ही इस दिव्यता को बनाए रखते हैं।

2. "निरस्तकुहकं" – माया का अभाव:

  • भगवान के धाम में किसी भी प्रकार की माया, छल, या असत्य का स्थान नहीं है।
  • माया, जो जीवों को भ्रमित करती है, भगवान के दिव्य क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकती।
  • उनका धाम शुद्ध सत्य और दिव्यता का निवास स्थान है।

3. भगवान की शक्ति से कुहक (माया) का नाश:

  • भगवान अपनी दिव्य शक्ति से इस संसार में भी माया और अज्ञान को नष्ट कर सकते हैं।
  • जो व्यक्ति भगवान की शरण लेता है, वह उनकी कृपा से माया के बंधनों से मुक्त हो सकता है।

भागवत महापुराण में संदर्भ:

  • यह वाक्यांश भागवत महापुराण के पहले श्लोक का हिस्सा है।
  • यहाँ भगवान की शक्ति और उनके धाम को सर्वोच्च बताया गया है।
  • "धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं" यह दर्शाता है कि भगवान का धाम और उनका स्वरूप सत्य, शुद्धता, और दिव्यता का प्रतीक है, जहाँ माया का कोई प्रभाव नहीं है।

आध्यात्मिक संदेश:

1. भगवान का धाम – शुद्धता और दिव्यता का केंद्र:

  • भगवान का धाम (वैकुंठ, गोलोक) केवल एक स्थान नहीं, बल्कि शुद्ध चेतना का प्रतीक है।
  • यह वाक्यांश हमें सिखाता है कि भगवान का धाम माया, छल, और अज्ञान से मुक्त है।

2. माया पर विजय:

  • "निरस्तकुहकं" यह दर्शाता है कि भगवान अपनी शक्ति से माया (भ्रम) को समाप्त करते हैं।
  • जो व्यक्ति भगवान की भक्ति में लीन होता है, वह उनकी कृपा से माया के प्रभाव से मुक्त हो सकता है।

3. शाश्वत सत्य:

  • भगवान की शक्ति और उनका धाम शाश्वत और अचल हैं।
  • यह वाक्यांश सिखाता है कि हमें असत्य और माया से बचकर भगवान के सत्य और भक्ति की ओर बढ़ना चाहिए।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तुलना:

1. प्रकाश और सत्य:

  • भगवान के "धाम" को प्रकाश और ऊर्जा के रूप में देखा जा सकता है।
  • जैसे भौतिक प्रकाश अंधकार को दूर करता है, वैसे ही भगवान का दिव्य प्रकाश (ज्ञान) अज्ञान और भ्रम (माया) को समाप्त करता है।

2. माया का अर्थ:

  • माया का अर्थ भौतिक संसार की नश्वरता और अस्थिरता से है।
  • भगवान का धाम इस नश्वरता से परे है और शाश्वत सत्य का प्रतीक है।

आधुनिक जीवन के लिए उपयोगिता:

1. असत्य और छल से बचें:

  • "निरस्तकुहकं" यह सिखाता है कि भगवान का स्मरण और उनकी भक्ति हमें जीवन के असत्य, छल, और भ्रम से बचा सकता है।

2. दिव्यता की ओर बढ़ें:

  • यह वाक्यांश हमें प्रेरित करता है कि हम अपने जीवन को शुद्ध और दिव्य बनाने का प्रयास करें।
  • भगवान के धाम को प्राप्त करना केवल भक्ति और सत्य के मार्ग पर चलने से संभव है।

3. माया पर विजय:

  • जीवन में माया (भ्रम, असत्य) से घिरना स्वाभाविक है, लेकिन भगवान की शरण और उनकी भक्ति हमें इससे मुक्त कर सकती है।

सारांश:

"धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं" यह दर्शाता है कि भगवान अपनी दिव्य शक्ति से सदा माया (असत्य, भ्रम) को समाप्त करते हैं। उनका धाम (निवास स्थान) पूर्ण रूप से शुद्ध, सत्य, और माया से रहित है। यह वाक्यांश हमें भगवान के प्रति समर्पण और उनकी भक्ति के माध्यम से माया से मुक्त होने की प्रेरणा देता है।

यदि आप इस वाक्यांश के किसी और पहलू पर चर्चा या गहन विश्लेषण चाहते हैं, तो बताएं!



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