भास्कराचार्य (1114-1185 ई.) भारत के महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। वे भास्कर II के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। भास्कराचार्य को मध्यकालीन भारत में गणित और खगोलशास्त्र के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाना जाता है। उन्होंने गणित और खगोलशास्त्र पर कई ग्रंथ लिखे, जो उस समय की वैज्ञानिक उन्नति को दर्शाते हैं। उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ सिद्धांत शिरोमणि है।
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जीवन परिचय
जन्म: 1114 ई., महाराष्ट्र के बीजापुर जिले के पास स्थित विज्जलवाड़ा (वर्तमान बीजापुर क्षेत्र) में।
शिक्षा: भास्कराचार्य ने प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता महेश्वर के संरक्षण में ग्रहण की, जो स्वयं एक खगोलशास्त्री थे।
पद: वे उज्जैन के प्रसिद्ध खगोलशास्त्र केंद्र के प्रमुख थे, जो उस समय भारत का प्रमुख शिक्षण और शोध केंद्र था।
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भास्कराचार्य का योगदान
1. गणित में योगदान
भास्कराचार्य ने गणित के कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिनमें अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति और त्रिकोणमिति शामिल हैं।
अ. लीलावती (अंकगणित)
इस ग्रंथ में उन्होंने सरल भाषा और उदाहरणों के माध्यम से गणितीय सिद्धांत समझाए हैं।
इसमें समस्याओं और पहेलियों के माध्यम से शिक्षा दी गई है।
प्रमुख विषय:
अनुपात और समानुपात।
संख्याओं के गुणा-भाग।
वर्गमूल और घनमूल।
क्षेत्रफल और आयतन की गणना।
ब. बीजगणित
उन्होंने शून्य और अज्ञात संख्याओं (अज्ञात राशि) के उपयोग को स्पष्ट किया।
समीकरणों के हल के लिए विधियाँ विकसित कीं।
चक्रीय चतुर्भुजों के गुणों का वर्णन किया।
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2. खगोलशास्त्र में योगदान
भास्कराचार्य ने खगोलशास्त्र के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया और कई खगोलीय घटनाओं की व्याख्या की।
अ. सिद्धांत शिरोमणि
यह उनका प्रमुख ग्रंथ है, जो चार भागों में विभाजित है:
1. लीलावती: अंकगणितीय सिद्धांत।
2. बीजगणित: बीजगणितीय समीकरण।
3. गोलाध्याय: गोल पृथ्वी और खगोलीय गणनाएँ।
4. ग्रहनिताध्याय: ग्रहों और ग्रहणों की गति।
ब. पृथ्वी की गति
भास्कराचार्य ने बताया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और इसी के कारण दिन और रात होते हैं।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है।
सौर वर्ष की गणना
उन्होंने सौर वर्ष की लंबाई 365.2588 दिन बताई, जो आधुनिक मान (365.2563 दिन) के बहुत करीब है।
ग्रहों और चंद्रमा की गति
उन्होंने ग्रहों और चंद्रमा की गति का सटीक अनुमान लगाया और भविष्यवाणी की।
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भास्कराचार्य के प्रमुख ग्रंथ
1. सिद्धांत शिरोमणि (चार भाग: लीलावती, बीजगणित, गोलाध्याय, ग्रहगणिताध्याय)।
2. करण कुतूहल: खगोलीय गणनाओं पर आधारित।
3. विवेक-प्रकाश: ज्यामिति और खगोलशास्त्र पर।
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भास्कराचार्य का प्रभाव
1. उनकी रचनाएँ भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर भी पहुँचीं और अरबी तथा लैटिन भाषाओं में अनुवादित हुईं।
2. यूरोप के पुनर्जागरण काल में उनकी रचनाओं का प्रभाव दिखाई देता है।
3. गणित और खगोलशास्त्र में उनके योगदान ने आधुनिक विज्ञान की नींव मजबूत की।
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भास्कराचार्य के विचार और शिक्षाएँ
उन्होंने शून्य की महत्ता को स्थापित किया और इसे गणना का आधार बताया।
उन्होंने बताया कि खगोल विज्ञान और गणित का प्रयोग केवल सिद्धांत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यवहारिक जीवन में भी उपयोगी है।
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भास्कराचार्य का सम्मान
आज भास्कराचार्य को भारत के महानतम गणितज्ञों और वैज्ञानिकों में गिना जाता है।
उनके सम्मान में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 1981 में एक उपग्रह का नाम "भास्कर" रखा।
भास्कराचार्य की रचनाएँ और विचार आज भी प्रासंगिक हैं और आधुनिक विज्ञान और गणित को प्रेरित करते हैं।
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